जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज दुनिया के लिए चुनौती बनता जा रहा है. अभी से खेती पर क्लाइमेंट चेंज का असर दिखने भी लगा है. मौजूदा साल में अल नीनो का प्रभाव इसका एक उदाहरण है. वहीं देश में मॉनसून की अनिश्चितता और बारिश का असमान वितरण भी क्लाइमेट चेंज का ही असर है, जिसे देखते हुए बीते दो साल पहले असम सरकार ने केंद्र से खरीफ सीजन का समय बदलने तक की मांग कर दी थी. क्लाइमेट चेंज की इन चुनौतियों से किसानों की मुश्किल बढ़ी हुई हैं.
माना जा रहा है कि आने वाले सालों में क्लाइमेंट चेंज का असर और अधिक दिखाई देगा. ये भी कहा जा रहा है कि क्लाइमेंट चेंज की वजह से कई अनाजों के साथ ही सब्जियों का भी अस्तित्व ही मिट जाएगा. ऐसे में सवाल ये है कि आलू पर क्लाइमेट चेंज का असर कितना पड़ेगा.
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क्लाइमेट चेंज का आलू पर क्या असर पड़ेगा. आलू की बात इसलिए क्योंकि कि अनाजों के बाद दुनियाभर में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की बड़ी जिम्मेदारी आलू पर है. ऐसे में, जब आने वाले समय में क्लाइमेट चेंज की चुनौती गंभीर होने जा रही है, तो आलू पर पड़ने वाले इसके असर और इसे बचाने के प्रयासों पर चर्चा लाजिमी हो जाती है. सवाल ये है कि क्या क्लाइमेंट चेंज आलू को खत्म कर देगा और इसका जवाब है कि आलू को बचाने के लिए वैज्ञानिक जंगलों की छान चुके हैं.
भारत में आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है. इस बात के साथ भारत में आलू के साम्राज्य की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है. वहीं वैश्विक में आलू की महिमा के बारे में चर्चा करें तो ग्लोबल फूड सिक्योरिटी सुनिश्चित करने में आलू की भूमिका हीरो वाली है. विश्व की 50% खाद्य ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति आलू, चावल, गेहूं और मक्का से होती है.
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इसे आंकड़ों से समझा जा सकता है. आलू वर्तमान में, वैश्विक स्तर पर उत्पादित होने वाली तीसरी सबसे बड़ी फसल है, जिसका कुल उत्पादन 359 मिलियन मीट्रिक टन है, जिसकी खेती दुनिया के 158 देशों में की जाती है.
आलू का सबसे अधिक उत्पादन चीन में होता है, जबकि आलू उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरा स्थान रखता है. मसलन, भारत में यूपी, पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार प्रमुख उत्पादक राज्य हैं. वहीं दुनिया में भारत के बाद रूस, यूक्रेन, अमेरिका, जर्मनी, पोलेंड, बांग्लादेश आलू के प्रमुख उत्पादक देश हैं.
सीधे से शब्दों में दुनियाभर में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में आलू की भूमिका अहम है. इसके पीछे का मुख्य कारण ये है कि आलू कम समय और कम क्षेत्र में अधिक उपज देता है तो वहीं इसमें पाए जाने वाले प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड समेत अन्य मिनरल्स और विटामिन्स कुपोषण को दूर करने में अहम है. इसे सीधे शब्दों में समझा जाए तो आलू दुनिया की बड़ी आबादी की भूख मिटाने के साथ कुपोषण दूर करने का बड़ा हथियार है. ये ही आलू का साम्राज्य है. नतीजतन, मौजूदा वक्त में वैश्विक स्तर पर सालाना एक आदमी 35 किलो आलू खा जाता है.
क्लाइमेट चेंज क्या आलू का निगल जाएगा. ये सवाल दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. इस पूरे गणित को समझने की कोशिश करते हैं. दुनिया में आलू का शीर्ष संगठन इंटरनेशन पोटेटो सेंटर यानी CIP क्लाइमेट चेंज को आलू के लिए खतरनाक मानता है. CIP के वैज्ञानिक क्लाइमेट चेंज से आलू को बचाने के लिए काम कर रहे हैं, जिसके लिए वह जंगलों की छाक जान चुके हैं.
CIP का मानना है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से साल 2060 तक आलू का उत्पादन 32 फीसदी गिर जाएगा. ये तब होगा, जब क्लाइमेट चेंज की वजह से मांग अपने पीक पर होगी. वहीं CIP ने पूर्वानुमान जारी करते हुए कहा कि क्लाइमेट चेंज की इस चुनौती में साल 2060 तक आलू का उत्पादन 32 फीसदी तक गिर सकता है.
क्लाइमेंट चेंज की वजह से अगर आलू के उत्पादन में इतनी बड़ी गिरावट होती है तो इससे दुनियाभर में गंभीर खाद्य संकट पैदा हो सकता है. मतलब, बड़ी आबादी आधे पेट और पोषण का संकट. ऐसे में CIP के वैज्ञानिक आलू को क्लाइमेट चेंज से बचाने के लिए अभी से काम कर रहे हैं. इसी कड़ी में CIP के वैज्ञानिक जंगलों की खाक छान रहे हैं, जिसमें वैज्ञानिकों को सफलता भी मिली है.
CIP के वैज्ञानिकों को 2018 में पेरु से 337 जंगली आलू के सैंपल कलेक्ट किए थे, जिसमें से आलू की 80 जंगली किस्में पेरु में पाई जाती हैं तो वहीं 155 जंगली आलू की इन किस्मों से संबंधित किस्में अमेरिका के पर्यावरण में उग रही है. इसमें से 140 जंगली किस्मों को CIP ने अपने जीन बैंक में सुरक्षित कर लिया है, जिनसे अब आलू की ऐसी किस्में बनाई जा रही हैं, जो क्लाइमेट चेंज का सामना करने में सक्षम हो.
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