देश में खेती-किसानी पर रिसर्च करने वाली सबसे बड़ी संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से जुड़े संस्थानों में बड़े पदों पर नियुक्तियों और वैज्ञानिकों की भर्तियों में अनियमितता के आरोप लगने के बाद घमासान मचा हुआ है. आईसीएआर की गवर्निंग बॉडी के सदस्य वेणुगोपाल बदरवाड़ा ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) यानी पूसा के नए निदेशक डॉ. सीएच. श्रीनिवास राव की नियुक्ति और पिछले पांच साल के दौरान हुईं भर्तियों को लेकर जो आरोप लगाए थे उसका आईसीएआर की ओर से जवाब देकर उसे बेबुनियाद करार दिया गया है. हालांकि, उनके जवाब में आईसीएआर की ओर से जो कुछ भी गया है उसमें किसी सक्षम अधिकारी का नाम नहीं दिया गया है.
आईसीएआर के जवाब पर बदरवाड़ा ने उससे कुछ मुद्दों को लेकर दोबारा सवाल पूछे हैं. मूल रूप से आंध्र प्रदेश के रहने वाले बदरवाड़ा ज़ेबू मवेशियों की नस्लों के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम करते हैं. उन्हें पिछले वर्ष तीन साल के लिए आईसीएआर गवर्निंग बॉडी का सदस्य बनाया गया था. बदरवाड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर आईसीएआर में हुईं भर्तियों और नियुक्तियों में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. इसके बाद आईसीएआर ने सोमवार को प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो की ओर से जारी एक बयान में कहा कि वास्तव में, हाल ही में की गई सभी भर्तियां सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित मॉडल योग्यता के अनुसार की गई हैं.
आईसीएआर ने अपने बयान में कहा है कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली के निदेशक के पद के लिए आवश्यक योग्यता (EQs) में कोई बदलाव नहीं हुआ है, क्योंकि EQs को पहले संशोधित किया गया था और IARI, नई दिल्ली के पिछले निदेशक (डॉ. ए. के. सिंह) जो जून 2024 में सेवानिवृत्त हुए थे, उन्हें 2019 में उन्हीं योग्यताओं के साथ नियुक्त किया गया था जो वर्तमान भर्ती प्रक्रिया के लिए विज्ञापित की गई हैं.
परिषद की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि वास्तव में, पिछले पांच वर्षों में ICAR के किसी भी वैज्ञानिक पद के लिए आवश्यक योग्यता (EQs) में कोई बदलाव नहीं हुआ है. IARI यानी पूसा के निदेशक पद के लिए वर्तमान विज्ञापन को कभी भी गलत तरीके से विकृत तथ्यों के साथ उल्लेखित करके अमान्य नहीं किया गया था. इसलिए, जैसा कि आरोप लगाया गया है, उस तरह की कोई प्रक्रियात्मक खामियां नहीं हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ असंतुष्ट तत्व अपने स्वार्थों के लिए गवर्निंग बॉडी के सदस्य को गुमराह करने के लिए अनावश्यक रूप से अफवाहें फैला रहे हैं.
जहां तक डॉ. सीएच श्रीनिवास राव के आईएआरआई के निदेशक पद पर कार्यभार ग्रहण करने का सवाल है, यह बताया गया है कि आईएआरआई के निदेशक के रूप में उनके चयन के समय वे पहले से ही राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी (एनएएआरएम), हैदराबाद के निदेशक के रूप में कार्यरत थे. ऐसे प्रावधान हैं जो दौरे पर रहने वाले किसी अधिकारी को कार्यमुक्त करने की अनुमति देते हैं, क्योंकि दौरे पर जाने वाला कर्मचारी आधिकारिक ड्यूटी पर रहता है.
स्पष्ट रूप से, डॉ. श्रीनिवास राव ने आईएआरआई के निदेशक का कार्यभार तभी संभाला जब वे एनएएआरएम के निदेशक पद से औपचारिक रूप से कार्यमुक्त हुए. इस मामले में कोई प्रक्रियागत विसंगतियां नहीं हैं, क्योंकि इस तरह की मंजूरी निर्धारित कार्यालय प्रक्रियाओं के अनुसार ई-मेल या ई-ऑफिस मोड के माध्यम से दी जा सकती है. ऐसी प्रक्रियाओं को "अचानक" और "अभूतपूर्व" कहना अनुचित, अपमानजनक है और अफवाह फैलाने वालों की ओर से ज्ञान की कमी को दर्शाता है.
बदरवाड़ा ने कहा कि आईसीएआर ने स्वीकार किया है कि पूसा निदेशक के पद के लिए एक अन्य आवेदक डॉ. कल्याण के. मंडल ने जाली प्रमाणपत्र का इस्तेमाल किया, लेकिन उनके या डॉ. प्रोबीर कुमार घोष के खिलाफ कोई सार्थक कार्रवाई नहीं की, जिन्होंने इस जालसाजी को संभव बनाया. यह निष्क्रियता उच्चतम स्तर पर मिलीभगत को दर्शाती है. किसी भी परिस्थिति में, न्यायालयों ने जाली प्रमाणपत्रों के संबंध में थोड़ी भी नरमी नहीं दिखाई है, जैसा कि इस मामले में है.
आईसीएआर गवर्निंग बॉडी के सदस्य बदरवाड़ा ने आरोप लगाया कि आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक और सचिव संजय गर्ग द्वारा डॉ. प्रोबीर कुमार घोष और डॉ. कल्याण के. मंडल जैसे व्यक्तियों को दी गई असाधारण सुरक्षा आईसीएआर के भीतर पक्षपात की संस्कृति के बारे में चिंता पैदा करती है. आरोप है कि पूसा कॉम्प्लेक्स में पदों को “प्रीमियम कीमतों पर बेचा जा रहा है” और इसकी स्वतंत्र अधिकारियों द्वारा तत्काल जांच की जानी चाहिए. हमारे आरोपों पर आईसीएआर का वर्तमान खंडन अस्पष्ट और प्रासंगिक साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं है.
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