लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती सामने आ रही है. भले ही विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने किसानों को लुभाने के लिए कई तरह वादे किए हैं, लेकिन खेती-किसानी की सुस्त रफ्तार लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर सकती है. जी हां हम बात कर रहे हैं कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर की, यानी जीडीपी में कृषि और उससे जुड़े सेक्टरों के विकास दर की. दूसरी तिमाही में इसका प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक है. दूसरी तिमाही के आंकड़े बीते रोज जारी हुए हैं, जिसमें कृषि विकास दर 3.5 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 1.2 प्रतिशत रह गई है. बृहस्पतिवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, एक साल पहले की इसी अवधि में कृषि क्षेत्र की विकास दर 2.5 प्रतिशत थी. जीडीपी में एग्री सेक्टर की विकास दर प्रभावित होने का सीधा असर किसानों की जेब पर पड़ेगा.
जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद यह आंकने के लिए एक महत्वपूर्ण पैमाना है कि कोई अर्थव्यवस्था कितना अच्छा या बुरा प्रदर्शन कर रही है. जब कोई अर्थव्यवस्था बढ़ रही होती है, तो प्रत्येक तिमाही जीडीपी का आंकड़ा पिछले तीन महीने की अवधि की तुलना में थोड़ा बड़ा होता है लेकिन जब जीडीपी गिर रही होती है, तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है. कृषि क्षेत्र के आंकड़ों में गिरावट यह बता रही है कि कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन पहले जैसा नहीं है. हालांकि सरकार ने कई मौकों पर किसानों की मदद करके खेती-किसानी को आगे बढ़ाने की कोशिश की है.
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कृषि क्षेत्र के ऐसे हालात तब हैं जब आर्थिक मोर्च पर देश के लिए बड़ी खुशखबरी आई है. जुलाई से सितंबर की तिमाही में सभी सेक्टरों की आर्थिक वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत रही है. जो एक साल पहले इसी तिमाही में 6.2 प्रतिशत थी. वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 13.9 फीसदी रहा है. कंस्ट्रक्शन सेक्टर की ग्रोथ रेट 13.3 फीसदी रही है. ऐसे में सिर्फ कृषि क्षेत्र ने सरकार को निराश किया है. चुनाव से पहले सरकार को इस मोर्चे पर काफी काम करने होंगे वरना इस क्षेत्र की धीमी चाल बड़ा नुकसान कर देगी.
आईए अब समझते हैं कि आखिर कृषि क्षेत्र की विकास दर में इतनी गिरावट क्यों आई है? दरअसल, इस क्षेत्र में सुस्त वृद्धि के लिए जुलाई-सितंबर के दौरान कमजोर फसल गतिविधियां और रबी फसलों से आने वाले नकारात्मक इनपुट को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. दरअसल, इस गिरावट के पीछे अलनीनो को बड़ी वजह बताया जा रहा है. अब सभी की निगाहें इस पर होंगी कि अगली कुछ तिमाहियों में कृषि क्षेत्र की वृद्धि कैसी होगी, क्योंकि 2023 के खरीफ उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान में अल नीनो की वजह से असमान मॉनसून के कारण खाद्यान्न उत्पादन में 4.52 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया गया है.
खरीफ की बुआई आमतौर पर जुलाई-सितंबर की अवधि के दौरान होती है जबकि रबी की अधिकांश फसल बिक्री के लिए मंडियों में होती है. साल 2023 में मॉनसून की देरी से भी कृषि क्षेत्र को बड़ा नुकसान हुआ है. केंद्र सरकार ने अक्टूबर में जारी 2023-24 ख़रीफ़ सीज़न के अपने पहले अनुमान में, असमान बारिश के कारण अधिकांश फसलों के लिए निराशाजनक तस्वीर की भविष्यवाणी की थी. इसका असर अगली तिमाहियों के लिए ग्रामीण और कृषि पर भी पड़ सकता है.
पहले अनुमान से पता चला है कि चावल का उत्पादन, 2023-24 सीज़न में 3.79 प्रतिशत घटकर 106.31 मिलियन रह सकता है. एरिया अधिक होने के बावजूद असमान मॉनसून का इस पर असर पड़ सकता है. संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग के एक आकलन में कहा है कि गया था कि इस ख़रीफ़ सीज़न में चावल का उत्पादन कम से कम 2 मिलियन टन गिर सकता है. इतना ही नहीं, अनुमान से पता चला है कि इस साल सभी प्रमुख ख़रीफ़ फसलों के उत्पादन में गिरावट देखी जा सकती है, जिसमें मूंग, उड़द, सोयाबीन और गन्ना भी शामिल है.
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हालांकि, कोविड काल के दौरान जब अप्रैल-जून की तिमाही में भारत की जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट थी तब कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.4 फीसदी रही थी और इसी ने देश को संभाला था. कृषि क्षेत्र को छोड़ दें लगभग सभी सेक्टर में गिरावट दर्ज की गई थी. लेकिन तीन साल बाद अब यह तस्वीर उलट गई है. अब अन्य क्षेत्रों के विकास की रफ्तार तेज है और कृषि क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई है. उम्मीद करते हैं कि अगली तिमाही में कुछ अच्छी तस्वीर निकलकर आएगी.
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