रासायन‍िक उर्वरकों में कब आत्मन‍िर्भर होगा भारत, जान‍िए क‍ितना है घरेलू उत्पादन और इंपोर्ट का क्या है हाल? 

रासायन‍िक उर्वरकों में कब आत्मन‍िर्भर होगा भारत, जान‍िए क‍ितना है घरेलू उत्पादन और इंपोर्ट का क्या है हाल? 

Production and Import of Fertilizers: रंग लाने लगी है रासायन‍िक उर्वरकों में भारत को आत्मन‍िर्भर बनाने वाली रणनीत‍ि. उर्वरकों का घरेलू उत्पादन बढ़ा और आयात घटा. बंद पड़े खाद कारखानों को शुरू करने और नए प्लांट लगने की वजह से चार साल में ही बढ़ा 71 लाख मीट्र‍िक टन उत्पादन. 

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रासायन‍िक उर्वरकों में कब आत्मन‍िर्भर होगा भारत, जान‍िए क‍ितना है घरेलू उत्पादन और इंपोर्ट का क्या है हाल? क‍ितना बढ़ा रासायन‍िक उर्वरकों का घरेलू उत्पादन (Photo-Kisan Tak).

आजादी के बाद भारत ने कई क्षेत्रों में तरक्की की कहानी ल‍िखी है लेक‍िन, उर्वरकों के मामले में अब भी हमारी न‍िर्भरता दूसरे देशों पर बनी हुई है. इस वक्त हम सालाना 190 लाख मीट्रिक टन के आसपास उर्वरक अलग-अलग देशों से आयात कर रहे हैं. इसमें कोई संदेह नहीं क‍ि रासायन‍िक खादों का घरेलू उत्पादन बढ़ा है, ज‍िससे आयात में मामूली कमी दर्ज की गई है. लेक‍िन, साथ ही साथ इसकी मांग भी बढ़ रही है, जबक‍ि कई साल से हम जैव‍िक और प्राकृत‍िक खेती का नारा भी लगा रहे हैं. बहरहाल, सरकार इस कोश‍िश में जुटी हुई है क‍ि रासायन‍िक उर्वरकों का आयात कम हो. इसके ल‍िए स्थानीय स्तर पर प्रोडक्शन प्लांट बढ़ाने और खराब पड़े प्लांटों को फिर से शुरू करने की पहल की गई है. उर्वरकों पर व‍िदेशी न‍िर्भरता कम करने की य‍ह रणनीत‍ि काम करती नजर आ रही है. 

साल 2018-19 से 2022-23 तक यानी प‍िछले चार साल में रासायन‍िक उर्वरकों का कुल उत्पादन 71.44 लाख मीट्र‍िक टन बढ़ा है. केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय से म‍िली र‍िपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018-19 के दौरान भारत में उर्वरकों का कुल उत्पादन 413.85 लाख मीट्र‍िक टन था. जो 2022-23 में बढ़कर 485.29 लाख मीट्र‍िक टन हो गया है. जबक‍ि, इसी दौरान उर्वरकों के आयात में 0.62 लाख मीट्र‍िक टन की मामूली कमी दर्ज की गई. इसमें यूरिया, डीएपी (डाई -अमोनियम फॉस्फेट), एनपीके (नाइट्रोजन-N, फास्फोरस-P, पोटेशियम-K) और एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश) सभी शाम‍िल हैं.  

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क‍िस गत‍ि से बढ़ रही मांग

रासायन‍िक खादों के संतुल‍ित इस्तेमाल की सलाह और जैव‍िक खेती के नारे के बावजूद भारत में ज‍िस तरह से मांग बढ़ रही है वो च‍िंता बढ़ाने वाली है. क्योंक‍ि खेती में स‍िर्फ नाइट्रोजन और फास्फोरस डालने की वजह से म‍िट्टी में दूसरे पोषक तत्वों की कमी हो रही है. खासतौर पर ज‍िंक, सल्फर और बोरॉन की. पूसा में एग्रोनॉमी ड‍िवीजन के प्रधान वैज्ञान‍िक डॉ. वाईएस श‍िवे के मुताब‍िक जमीन में सल्फर की 42 फीसदी, ज‍िंक की 39 फीसदी और बोरॉन की 23 फीसदी कमी है. ज‍िससे फसलों की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ रहा है.

केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय की एक र‍िपोर्ट के अनुसार साल 2004-05 के दौरान देश में उर्वरकों की खपत प्रति हेक्टेयर स‍िर्फ 94.5 किलोग्राम हुआ करती थी, जो 2018-19 में बढ़कर 133 किलोग्राम तक पहुंच गई. ऐसे में अगर सरकार घरेलू स्तर पर उत्पादन नहीं बढ़ाएगी और आयात का सहारा नहीं ल‍िया जाएगा तो खाद के ल‍िए हाहाकार मच जाएगा.

क‍ितना है उर्वरकों का उत्पादन और आयात

घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर

ऐसे में सरकार इसका घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है. दरअसल, भारत को यूरिया क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहल तो मनमोहन स‍िंह सरकार में ही कर दी गई थी. ज‍िसे मोदी सरकार ने बहुत तेजी से आगे बढ़ाया. यूरिया क्षेत्र में नए निवेश के ल‍िए सरकार ने 2 जनवरी, 2013 को नई निवेश नीति यानी एनआईपी-2012 का एलान क‍िया था. ज‍िसमें 7 अक्टूबर, 2014 को संशोधन क‍िया गया. 

केंद्र सरकार ने प‍िछले कुछ साल में ही स्वदेशी यूरिया उत्पादन क्षमता में 76.2 लाख मीट्र‍िक टन (LMT) की वृद्धि करने में सफललता पाई है. इसकी बड़ी वजह एनआईपी-2012 को बताया जाता है. इसके तहत यूर‍िया बनाने वाली कुल 6 नई यून‍िटें बनाई गई हैं. 

इनमें मैटिक्स फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (मैटिक्स) की पानागढ़ यूरिया यून‍िट, चंबल फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड की गडेपान-II यूरिया यून‍िट, रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड की रामागुंडम यूरिया यून‍िट और ह‍िंदुस्तान उर्वरक एंड रसायन लिमिटेड (HURL) की तीन यूरिया यून‍िटें गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), सिंदरी (झारखंड) और बरौनी (बिहार) शाम‍िल हैं. इनमें से प्रत्येक यून‍िट की उत्पादन क्षमता 12.7 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष है.

भारत में रासायन‍िक खादों की बढ़ती मांग

घरेलू उत्पादन बढ़ाने की एक और कोश‍िश

इसके अलावा कोयला गैसीकरण मार्ग के माध्यम से 12.7 एलएमटी प्रति वर्ष का नया ग्रीनफील्ड यूरिया संयंत्र स्थापित करके उत्पादन बढ़ाने का प्लान है. यह यून‍िट ओड‍िशा के तलचर में लग रही है. वहां की पुरानी यून‍िट का पुनरुद्धार करने के लिए 28 अप्रैल, 2021 को एक विशेष नीति नोट‍िफाई की गई थी. फर्ट‍िलाइजर कारपोरेशन ऑफ इंड‍िया ल‍िम‍िटेड (एफसीआईएल) का यह प्लांट अक्टूबर 2024 तक शुरू हो सकता है. 
 
भारत में यूर‍िया की ड‍िमांड सबसे तेजी से बढ़ रही है. इसल‍िए सरकार ने स्वदेशी यूरिया उत्पादन को अधिकतम करने के मकसद से 25 मई, 2015 को नई यूरिया नीति (एनयूपी)-2015 शुरू की. सरकार का दावा है क‍ि एनयूपी-2015 के कारण 2014-15 के दौरान हुए उत्पादन की तुलना में प्रत‍ि वर्ष यूरिया का 20-25 एलएमटी अतिरिक्त उत्पादन हुआ. डीएपी, एनपीके उर्वरकों के घरेलू उत्पादन के ल‍िए भी समय-समय पर अनुमति दी गई है. 

केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने दावा क‍िया है क‍ि, 'भारत को 2025 के अंत तक यूरिया आयात करने की जरूरत नहीं होगी. क्योंकि पारंपरिक यूरिया और नैनो ल‍िक्व‍िड यूरिया का घरेलू उत्पादन देश की वार्षिक मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त होने की उम्मीद है.' हालांक‍ि, डीएपी और एमपीओ के मामले में आत्मन‍िर्भर होने में अभी वक्त लगेगा.  

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