बासमती चावल का बंपर एक्सपोर्ट, पर कम नहीं हैं पाक‍िस्तान और कीटनाशकों से जुड़ी चुनौत‍ियां 

बासमती चावल का बंपर एक्सपोर्ट, पर कम नहीं हैं पाक‍िस्तान और कीटनाशकों से जुड़ी चुनौत‍ियां 

भारत के बासमती चावल का एक्सपोर्ट एक साल में ही 12 हजार करोड़ रुपये से अध‍िक बढ़कर 38,524 करोड़ रुपये की ऊंचाई तक पहुंच गया है. इसके बावजूद चुनौत‍ियां भी कम नहीं हैं. खासतौर पर इसके चावल में म‍िल रहे कीटनाशक की. ज‍िससे साख खराब हो सकती है.

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बासमती चावल का बंपर एक्सपोर्ट, पर कम नहीं हैं पाक‍िस्तान और कीटनाशकों से जुड़ी चुनौत‍ियां भारत दुन‍िया का सबसे बड़ा बासमती चावल उत्पादक है (Photo-Kisan Tak).

अपने बेहतरीन स्वाद और खुशबू के ल‍िए दुन‍िया भर में मशहूर बासमती चावल (Basmati Rice) के एक्सपोर्ट में बंपर उछाल आया है. एक ही साल में 12 हजार करोड़ रुपये से अध‍िक का एक्सपोर्ट बढ़ गया है. कृष‍ि उत्पादों के कुल न‍िर्यात में अकेले बासमती की ह‍िस्सेदारी 17.4 फीसदी तक पहुंच गई है. दरअसल, व‍िश्व भर में बासमती चावल की बढ़ती मांग की वजह से ही देश के अंदर और बाहर दोनों ओर इसके अध‍िकार को लेकर जंग चल रही है. देश से बाहर पाक‍िस्तान बासमती के मामले में भारत से भ‍िड़ने की कोश‍िश में है. उसने यूरोपीय यून‍ियन और ऑस्ट्रेल‍िया में भारत को जीआई टैग लेने में बाधा डाली हुई है. दूसरी चुनौती इसके चावल में कीटनाशक म‍िलने की है. ज‍िससे साख पर बट्टा लग रहा है.    

देश के अंदर पंजाब और मध्य प्रदेश के बीच बासमती चावल को लेकर खूब खींचतान चल रही है. मध्य प्रदेश लंबे समय से अपने 13 ज‍िलों के ल‍िए बासमती का जीआई टैग मांग रहा है और पंजाब इसके व‍िरोध में खड़ा है. दरअसल, असली लड़ाई एक्सपोर्ट की है, जिससे राज्य को खूब पैसा मिलता है. मध्य प्रदेश सरकार श्योपुर, रायसेन, सीहोर, भिंड, मुरैना, विदिशा, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, नरसिंहपुर, होशंगाबाद और जबलपुर के लिए बासमती का जीआई टैग मांग रही है. लेकिन एपि‍डा और जीआई रजिस्ट्री दोनों इस दावे को खारिज कर चुके हैं. पंजाब सरकार का कहना है कि अगर एमपी को बासमती का जीआई टैग द‍िया गया तो इसके पैदा करने वाले मूल राज्यों के किसानों को आर्थिक चोट पहुंचेगी.  

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क‍ितने क्षेत्र में होती है इसकी खेती

फ‍िलहाल, इस व‍िवाद से अलग हटकर सबसे पहले इससे जुड़ी प्रमुख बातों को समझने और जानने की कोश‍िश करते हैं. बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन के प्र‍िंस‍िपल साइंट‍िस्ट डॉ. र‍ितेश शर्मा के अनुसार भारत में सालाना करीब 55 लाख टन बासमती चावल का उत्पादन होता है और करीब 40 से 45 लाख टन के बीच एक्सपोर्ट हो जाता है. भारत दुन‍िया का सबसे बड़ा बासमती चावल उत्पादक है. यहां पर करीब 20 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती होती है. ज‍िसमें से करीब 47 फीसदी क्षेत्र पर पूसा बासमती-1121 (PB 1121) का कब्जा है. बाकी क्षेत्र में बाकी 44 क‍िस्मों की खेती होती है. 

बासमती के जीआई टैग प्राप्त ज‍िले

देश के सात राज्यों को बासमती चावल का जीआई टैग म‍िला हुआ है. इनमें पूरा हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश शाम‍िल है. पश्चिम उत्तर प्रदेश के 30 ज‍िलों और जम्मू-कश्मीर के जम्मू, कठुआ और सांबा ज‍िले शाम‍िल हैं. पश्चिमी यूपी के ज‍िन ज‍िलों में बासमती का जीआई टैग म‍िला हुआ है उनमें गाजियाबाद, गौतम बुद्धनगर, हापुड़, बुलंदशहर, बिजनौर, बागपत, शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, संभल, अमरोहा, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, अलीगढ़, एटा, कासगंज, हाथरस, कन्नौज, रामपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, फर्रुखाबाद, बदायूं, बरेली और मुरादाबाद शाम‍िल हैं. 

बासमती चावल का क‍ितना है एक्सपोर्ट (Photo-Kisan Tak).

क‍िन देशों में हो रहा है एक्सपोर्ट

शर्मा के अनुसार भारत में हर साल करीब 50 से 55 हजार करोड़ रुपये का बासमती चावल पैदा कर रहे हैं. ज‍िसमें से करीब 35 से 38 हजार करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट होता है. हम इराक, यूके, कतर, ओमान, ईरान, सऊदी अरब, यूएई, यमन, कुवैत और अमेर‍िका आदि को बड़े पैमाने पर बासमती चावल का एक्सपोर्ट कर रहे हैं. दुन‍िया भर के करीब डेढ़ सौ देश इसके स्वाद और खुशबू के मुरीद हैं. इसके बड़े ब‍िजनेस को देखते हुए भारत हमेशा से बासमती को दूसरे देशों के अतिक्रमण से बचाए रखने की लड़ाई लड़ता रहा है. 

बासमती की खेती की चुनौत‍ियां

भारत में बासमती की खेती बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं. लेक‍िन इसकी खेती कीटनाशकों के अध‍िक इस्तेमाल की समस्या का सामना कर रही है. जागरूकता के अभाव में क‍िसान इसकी खेती को कीटों और रोगों से बचाने के ल‍िए जमकर कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसकी वजह से इसके चावल में कीटनाशकों की मात्रा अधिकतम अवशेष स्तर ( MRL-Maximum Residue limit) से ज्यादा हो रही है. जो भारतीय बासमती चावल के एक्सपोर्ट के ल‍िए बड़ा खतरा है. 

इस बीच यूरोपीय यून‍ियन ने इसके चावल में कीटनाशकों के अधिकतम अवशेष सीमा के न‍ियम को और कड़ा कर द‍िया है. अब इसकी मात्रा 0.01 पीपीएम (0.01 मिलीग्राम/किग्रा) तय हो गई है. यानी 100 टन चावल में अध‍िकतम 1 ग्राम से अध‍िक कीटनाशक का अवशेष नहीं होना चाह‍िए. अमेरिका में यह 0.3 और जापान में 0.8 पीपीएम है. यानी सबसे सख्त न‍ियम यूरोप के हैं.

क्या कर रही है सरकार

भारत से एक्सपोर्ट होने वाले कृष‍ि उत्पादों में सबसे ज्यादा पैसा चावल से आता है, इसल‍िए इस मामले को लेकर सरकार सजग है. बासमती धान की अध‍िकांश क‍िस्मों में झोंका और झुलसा रोग लगता है. ऐसे में क‍िसान मजबूर होकर कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए पूसा के कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने पुरानी क‍िस्मों को रोगरोधी बनाकर तीन नई क‍िस्में तैयार की हैं. ज‍िनमें पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 शाम‍िल हैं. इन क‍िस्मों का यह दूसरा साल है. दरअसल, इस बारे में भारत की च‍िंता यूरोपीय यूनियन की एक ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद बढ़ गई थी. ज‍िसमें बताया गया था क‍ि बासमती चावल में कीटनाशक का अंश पाया जा रहा है.

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