यूपी में अब पराली टेंशन नहीं बनेगी. यूपी की योगी सरकार ने किसानों को पराली प्रबंधन के बेहतर विकल्प मुहैया कराने के तहत पराली से इथेनॉल और मेथनॉल बनाने की तकनीक अपनाने की पहल शुरू कर दी है. यह काम डेनमार्क के सहयोग से किए जाने की योजना पर सरकार आगे बढ़ चली है. इस पहल के कारगर साबित होने पर किसानों के लिए जो पराली मुसीबत बनती थी, वही अब मुनाफे का सबब बन सकेगी. इससे किसानों की आय में इजाफा करने की सरकार की कोशिशों को भी बल मिलेगा.
गौरतलब है कि डेनमार्क ने दुनिया में अपने तरह की एक अनूठी तकनीक ईजाद की है, जिससे कृषि अपशिष्ट अर्थात फसल कटने के बाद बचने वाली पराली से इथेनॉल और मेथनॉल बनाया जा सकता है. इथेनॉल और मेथनॉल को अब जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल-डीजल) के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.
योगी सरकार की ओर से बताया गया कि पराली से बायोईंधन बनाने की अत्याधुनिक तकनीक अपनाने के बारे में डेनमार्क के साथ बातचीन शुरू हुई है. हाल ही में डेनमार्क के राजदूत एच ई फ्रेडी स्वान ने यूपी के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र से भेंट कर इस तकनीक के आदान प्रदान पर बातचीत की.
स्वान ने मिश्र को बताया कि डेनमार्क द्वारा विकसित तकनीक की मदद से 'स्टबल स्ट्रॉ' को 'बायो स्ट्रॉ ब्रिकेट' के रूप में इथेनॉल या मेथनॉल को परिवर्तित किया जाता है. इस तकनीक की उपयोगिता के बारे में उन्होंने दावा किया कि गेहूं और धान की पराली से बायो मेथनॉल और ई-मेथनॉल का उत्पादन करने का प्रयोग सफल रहा है.
यूपी सरकार ने जब इस तकनीक को अपनाने में रुचि दिखाई, तब स्वान ने डेनमार्क में इसका पहला संयंत्र स्थापित किए जाने की जानकारी दी. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस तकनीक को खरीदने या डेनमार्क के साथ साझेदारी कर इसका संयंत्र प्रदेश में लगाने की पेशकश की है.
इस तकनीक का इस्तेमाल कर पराली से ब्रिकेट तैयार होता है. ब्रिकेट के फरमंटेशन से बायोगैस उत्पादन और फिर बायोगैस को इलेक्ट्रिक स्टीम मीथेन रिफार्ममेशन (ईएसएमआर) प्रक्रिया से गुजार कर बायोमेथनॉल का उत्पादन किया जाता है. फरमंटेशन प्रकिया से उत्पादित कॉर्बन डाइआक्साइड में हाइडोजन गैस का रासायनिक संयोजन कर ई-मेथनॉल का उत्पादन किया जाता है. स्वान ने बताया कि डेनमार्क ने इस तकनीक का पेटेन्ट कराया है. इस तकनीक पर आधारित पहली परियोजना डेनमार्क में स्थापित हो रही है. इससे 2025 में पूरी क्षमता के साथ पराली से एथनॉल और मेथनॉल का उत्पादन शुरू हाे सकेगा.
गेहूं और धान की पराली से इथेनॉल और मेथनॉल बनाने की दुनिया में अपने तरह की यह पहली तकनीक है. डेनमार्क में इस पद्धति पर आधारित पहले संयंत्र में 450 टन क्षमता के 6 ब्रिकेट उत्पादन प्लांट लगाए जा रहे हैं. इससे 145 मिलियन नार्मल घन मीटर बायोगैस अर्थात 1,10,200 टन गैस के मध्यवर्ती उत्पाद से 1.00 लाख टन इथेनॉल और 2.50 लाख टन मेथनॉल का उत्पादन करने की क्षमता है. इथेनॉल के संयंत्र की संभावित लागत 2225 करोड़ रुपये और मैथनॉल के संयंत्र की लागत 3034 करोड़ रुपये बताई गई है. इनसे उत्पादित इथेनॉल का अनुमानित मूल्य 1000 यूरो प्रति टन या 80.00 रुपये प्रति लीटर तथा मेथनॉल का मूल्य 800 यूरो प्रति टन की दर से लगभग 64.00 रुपये प्रति लीटर दर्शाया गया है.
यूपी के गोरखपुर में स्थित इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के कारखाने में भी पराली से इथेनॉल बनाने का एक संयंत्र लगाया जा रहा है. लगभग 50 एकड़ जमीन पर लग रहे इस संयंत्र से 2जी इथेनॉल का उत्पादन होगा. इस पर लगभग 800 करोड़ का निवेश किया जाना प्रस्तावित है. इस संयंत्र में कच्चे माल के रूप में सेल्यूलोज का उपयोग किया जाएगा. जिसमें गन्ना से बने उत्पादों का कचरा, पराली सहित अन्य फसल अवशेष, वनस्पति तेल और चीनी आदि का इस्तेमाल होगा. इस क्रम में यूपी के बड़े शहरों में स्थानीय निकायों द्वारा गीले कूड़े से बायो सीएनजी बनाने की कवायद पर भी तेजी से काम चल रहा है.
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