राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के जैतसर और सरदारगढ़ में किसान कृत्रिम बारिश कर रहे हैं. केंद्रीय कृषि राज्य फार्म की बारानी भूमि (यानी जहां सिंचाई की सुविधा न होने की वजह से सिर्फ़ बरसात के पानी से ही फसलें उगाई जाती हैं) में जिंसों की खेती की जा रही है. इसके लिए इजरायली सिंचाई पद्धति पीवेट रैन सिस्टम लगाया गया है जिससे कृत्रिम बारिश की जाएगी. इससे राज्य फार्म जैतसर में 1,200 हेक्टेयर से अधिक की असिंचित भूमि पर फसलों का उत्पादन होगा.
बारानी भूमि के लिए कारगर बनी पीवैट रेन सिस्टम तकनीक के जरिये सुविधानुसार खेतों में कृत्रिम बारिश करवाई जा सकती है. इससे जैतसर और सरदारगढ़ में रेतीली भूमि उपजाऊ हो गई है. वहीं, आपको बता दें कि जब यहां पीवैट रेन सिस्टम चलाए गए तो ऐसा लगा कि जैसे बारानी भूमि में बारिश हो रही हो.
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कृत्रिम बारिश के लिए पीवैट रेन सिस्टम तकनीक को लगाने के लिए 60 लाख रुपये का खर्च आता है. वहीं, इस तकनीक को चलाने के लिए एक बड़े स्टोरेज टैंक की जरूरत होती है. इजराइली तकनीक पर आधारित इस सिस्टम से किसान अपनी बेकार भूमि को बेहतर उत्पादन देने वाली बना सकते हैं.
बारानी भूमि वह भूमि होती है, जहां सिंचाई की सुविधा न होने की वजह से सिर्फ़ बरसात के पानी से ही फसलें उगाई जाती हैं. बारानी भूमि को बरनी लैंड भी कहा जाता है. तकनीकी तौर पर, जिन क्षेत्रों में सालाना 600 मिलीमीटर से कम बारिश होती है, वहां की भूमि को बारानी भूमि माना जाता है. बारानी भूमि पर उगाई जाने वाली फसलों को बरसाती फसल भी कहा जाता है. साथ ही बारानी खेती में ज्यादा जोखिम होता है.
इस नई तकनीक के माध्यम से केंद्रीय कृषि राज्य फार्म पर एक ओर जहां खेती का का क्षेत्र बढ़ गया है. वहीं, फार्म के बीज तैयार करने के लक्ष्य में पीवैट रेन सिस्टम कारगर साबित हो रहा है. इस तकनीक की मदद से 75 हेक्टेयर तक में सिंचाई की जा रही है. वहीं, फसलों की बुवाई से पहले अधिक पानी की जरूरत होती है, जिसके चलते पीवैट रेन सिस्टम से अधिक एमएम बारिश करवाकर फसलों की बुवाई कर दी जाती है. बारानी भूमि में कृत्रिम बारिश करवाकर पीवैट रेन सिस्टम तकनीक के माध्यम से गेहूं, मूंग, ग्वार, जई और चने की खेती की जा रही है.
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