मछली पालन में अधिक खर्च बड़ी समस्या है. पानी भी अधिक चाहिए होता है और खर्च भी अधिक लगता है. यही वजह है कि मछली पालन का काम बड़े स्तर पर जोर नहीं पकड़ रहा है. ऐसे में कुछ नई तकनीक आई है जो कम पानी और कम खर्च में मछली पालन को बढ़ावा दे रही है. इसी में एक तकनीक है बायोफ्लॉक टैंक विधि. इस तकनीक में कम पानी और कम खर्च में मछली पालन कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. आइए जानते हैं कि क्या है यह तकनीक.
बायोफ्लॉक तकनीक में टैंक में मछली पालन करते हैं. एक तरह की बंद प्रणाली है. तालाब या पोखर जहां खुली प्रणाली है, वहीं टैंक एक बंद प्रणाली है जिसमें मछली पालन करते हैं. इसमें मछलियों के मल और अतिरिक्त भोजन को बैक्टीरिया के जरिये प्रोटीन में बदला जाता है. फिर उसी टैंक में मछलियां उसी प्रोटीन को चारे के रूप में इस्तेमाल करती हैं. यह एक आधुनिक और वैज्ञानिक तरीका है जिसमें कम खर्च में अधिक कमाई होती है. इसमें जगह की अधिक जरूरत नहीं होती. साथ ही चारे का खर्च भी बचता है. यह विधि वेस्ट मैनेजमेंट के लिहाज से भी अच्छी मानी जाती है.
इस तकनीक में पानी का उपयोग कम होता है क्योंकि पानी को बार-बार बदलने की जरूरत नहीं होती. इस विधि में कम जगह में मछली पालन कर सकते हैं क्योंकि टैंक में भी यह काम हो जाता है. आपको तालाब या पोखर जैसी बड़ी जगह की जरूरत नहीं होती. बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन में चारे की लागत कम होती है, क्योंकि मछली का मल प्रोटीन में बदल जाता है और उसे फिर से चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
बायोफ्लॉक विधि पर्यावरण के अनुकूल भी है क्योंकि यह पानी को साफ रखने में मदद करती है और पानी के प्रदूषण को कम करती है. इसमें कचरा प्रबंधन भी हो जाता है जिससे प्रदूषण जैसी समस्या से निजात मिलती है.
बायोफ्लॉक विधि में 4 स्टेप्स को लागू करते हैं और मछली पालन को शुरू किया जाता है. ये चार स्टेप्स हैं-
1-टैंक- इस विधि में मछली पालन के लिए टैंक बनाय जाता है. यह टैंक बना सकते हैं या बाजार से टैंक खरीद कर उसमें मछली पालन कर सकते हैं. टैंक में पानी भरकर उसमें मछली पालन किया जाता है.
2-मछली पालन- टैंक में मछलियों के बीज डाले जाते हैं, उन्हें चारा दिया जाता है जिससे मछलियों का वजन बढ़ता है. इसके अलावा मछलियों के मल से भी उनका चारा तैयार होता है.
3-बैक्टीरिया- टैंक में कुछ खास बैक्टीरिया होते हैं जो मछलियों के मल को प्रोटीन में बदल देते हैं. फिर उसी प्रोटीन को मछलियां खाती हैं जिससे चारे का खर्च बचता है.
4-चारे का दोबारा उपयोग-मछलियां चारा खाती हैं, फिर पानी में मल त्याग करती हैं. उसी मल को बैक्टीरिया प्रोटीन में बदलते हैं. इस तरह एक ही चारे का दोबारा उपयोग होता है जो मछलियों के भोजन का काम करता है.
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