हरित क्रांति के बाद खाद्य सुरक्षा की पूर्ति के लिए देश में रासायनिक खादों का प्रयोग बढ़ता चला गया. अधिक से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए किसानों ने खेतों में रासायनिक खादों का प्रयोग करना शुरू कर दिया. कुछ दशकों तक उपज और गुणवत्ता दोनों में ही वृद्धि देखी गई, लेकिन रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से समय के साथ मिट्टी अपनी उर्वरक क्षमता खोने लगी. नतीजा यह हुआ कि आज हम उस रास्ते पर खड़े हैं जहां एक बार फिर तेजी से जैविक खेती को अपनाने की जरूरत है.
जैविक खेती में प्रकृति में पाये जाने वाले पदार्थों का उपयोग उर्वरकों के रूप में किया जाता है ताकि मिट्टी की उर्वरता को कोई हानि न हो. ऐसे में पतंजलि योगपीठ ने मिट्टी की उर्वरक क्षमता जांचने के लिए सॉइल टेस्टिंग मशीन विकसित की है. जिसे किसानों के लिए लॉन्च किया गया. आइए जानते हैं क्या है सॉइल टेस्टिंग मशीन और इसकी उपयोगिता.
रासायनिक खादों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता लगातार खराब हो रही है. ऐसे में इसकी जांच के लिए कृषि वैज्ञानिक सॉइल टेस्टिंग मशीन तैयार कर रहे हैं. इसकी मदद से किसान यह जान सकेंगे कि उनकी मिट्टी का स्तर क्या है और उसमें कितने सुधार की जरूरत है. आपको बता दें कि पतंजलि योगपीठ 1 लाख किसानों को जैविक खेती से जोड़कर धरती और पर्यावरण को स्वस्थ रखने का काम कर रही है. इसी कड़ी में पतंजलि ने किसानों के लिए सॉइल टेस्टिंग मशीन लॉन्च की है.
जब इंसान के शरीर में किसी पोषक तत्व की कमी होती है तो वह लैब में जाकर उसकी जांच करवा कर उसे दूर कर देते हैं. ठीक इसी प्रकार मिट्टी की उर्वरक क्षमता की जांच के लिए सॉइल टेस्टिंग मशीन का उपयोग किया जाता है. यह एक प्रकार का लैब है जहां मिट्टी की जांच की जाती है. इसके बाद मिट्टी में जिन पोषक तत्वों की कमी है उन्हें दूर करने के लिए उचित खाद दी जाती है ताकि फसल ठीक से विकसित हो सके. सॉइल टेस्टिंग मशीनों की मदद से किसान यह जान सकते हैं कि उनके खेत में किन-किन चीजों की कमी है और उसे दूर करने के लिए खेतों में क्या दिया जाना चाहिए. इसका एक और फायदा यह है कि इसकी मदद से दूसरी खाद यानी जिसकी जरूरत नहीं है वह मिट्टी में नहीं मिलाया जाता है. इसके द्वारा भी मिट्टी की उर्वरक क्षमता को गिरने से भी रोका जा सकता है.
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नीति आयोग के द्वारा दी गई जंकारियों के मुताबिक प्राकृतिक खेती को रासायनमुक्त खेती के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. प्राकृतिक खेती के तहत केवल उन वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है जो प्रकृति मई पहले से मौजूद हैं. यानी प्राकृतिक खेती के तहत रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. प्राकृतिक खेती का मुख्य मकसद पर्यावरण को सुरक्षित रखना है. प्राकृतिक खेती में जैविक खादों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे, फल और सब्जियों के छिलके से बना गया खाद, केंचुआ खाद आदि. इतना ही नहीं प्राकृतिक खेती कई अन्य लाभ प्रदान करते हुए किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करती है, जैसे मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की बेहतरी और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी. प्राकृतिक खेती प्राकृतिक या पारिस्थितिक प्रक्रियाओं पर आधारित होती है जो खेतों पर या उसके आस-पास मौजूद होती हैं.
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