मौजूदा वक्त में सिंचाई के कामों के लिए आधुनिकता का बोल-बाला बढ़ता चला जा रहा है. डीजल इंजन से लेकर, बिलजी वाले ट्यूबवेल और सोलर पंप तक खेती में अब कई आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है. ऐसे में आज हम आपको यंत्र-तंत्र की इस कड़ी में पुराने ज़माने की एक सिंचाई तकनीक के बारे में बताएंगे जिसे ‘रहट’ कहते थे. आज भी दूर-दराज के गांवों में सिंचाई की ये तकनीक कभी-कभार देखने को मिल जाती है. दरअसल, रहट सिंचाई का एक ऐसा सिस्टम है, जिसमें न ही ईंधन और बिजली का प्रयोग होता है. इस तकनीक को बैलों की मदद से चलाया जाता है. आइए जानते हैं रहट के बारे में पूरी जानकारी.
रहट में चेननुमा रस्सी होती है. जिसकी लंबाई कुएं के निचले हिस्से तक रहती है. इस चेननुमा रस्सी पर कई डिब्बे होते हैं. इसका एक भाग खुला रहता है और दूसरा भाग बंद रहता है. जब व्हील घुमाए जाते हैं तो यह डिब्बे धीरे-धीरे कुएं में पानी तल तक जाते हैं और उसमें पानी भर जाता है. व्हील घूमने पर पानी से भरे डिब्बे ऊपर आते हैं और एक नालीनुमा हिस्से पर गिरते हैं जो कुएं के ऊपरी हिस्से पर रखा होता है.
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बैल के जरिए इसे चलाने के लिए व्हील को लोहे की मोटी रॉड से जोड़ा जाता है, जो 10 फीट लंबी होती है. कुएं से दूर एक और व्हील होता है. इस व्हील को घुमाने के लिए एक और रॉड लगाया जाता है. इसके ऊपरी हिस्से पर एक गोलाकार लोहे का सामान रखा जाता है. इसमें दोनों तरफ होल होता है, होल में मजबूत लंबी लकड़ी लगाई जाती है. इससे बैलों को जोड़ा जाता है. बैल इस लकड़ी के साथ गोल-गोल घूमते हैं फिर बंधे हुए डिब्बे पानी भरकर ऊपर आते हैं. इससे किसान अपनी खेतों पर सिंचाई करते हैं.
किसानों को मानना है कि धीरे-धीरे ये तकनीक इस लिए खत्म हो गई क्योंकि रखरखाव के बढ़ते खर्च के चलते बैलों को रखना बंद होता जा रहा है. साथ ही इस तकनीक से सिंचाई में समय भी बहुत लगता है. वहीं, दूसरी ओर मुफ्त मिलती बिजली और पंपों पर मिलती सब्सिडी ने भी किसानों को ये अतिरिक्त मेहनत करने से दूर कर दिया है.
सिंचाई के लिए कुओं से पानी निकालने के लिए बनाए गए इस यंत्र को रहट के अलावा अलग-अलग कई नामों से जाना जाता है. इसे कई लोग रहटा, अरहट्ठ, चरखा, घाटीयंत्र, अरहट, अरघटक, पिरिया आदि नामों से भी जानते हैं. दरअसल, जिस कुएं में सिंचाई के लिए रहट का प्रयोग होता है, उसी को रहटआला कुआं कहा जाता है.
कई राज्यों के पुराने किसानों का मानना है कि रहट सिंचाई तकनीक पर्यावरण के लिए पूरी तरह से बेहतर है. इससे किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता है. साथ ही इससे व्यक्ति भी शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है. वहीं, आज सबमर्सिबल के जरिए पानी खेतों तक पहुंच रहा है. इसके लिए किसानों को कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़ रही है. पंप सेट और मशीनों के जरिए सिंचाई का काम किया जा रहा है. ऐसे में अभी के किसान पर्यावरण को सुरक्षित रखने वाली तकनीकी की जगह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं, रहट से सिंचाई करने में खर्च भी कम आती है.
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