राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT), राउरकेला के रिसर्चर्स ने एक खास तकनीक विकसित की है जो भूजल (अंडरग्राउंड वाटर) की गुणवत्ता का मूल्यांकन कर सकती है. रिसर्चर्स ने मशीन लर्निंग पर आधारित एक मॉडल बनाया है. इससे किसानों को मदद मिल सकती है क्योंकि उन्हें पता चल सकेगा कि जिस पानी से वे सिंचाई कर रहे हैं उसकी क्वालिटी ठीक है या नहीं.
ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में की गई रिसर्च को वाटर क्वालिटी रिसर्च जर्नल में पब्लिश की गई है. अधिकारियों के अनुसार, सिंचाई के लिए पानी का आकलन करने वाले इस मॉडल का इस्तेमाल पूरे देश में महत्वपूर्ण रूप से किया जा सकता है.
सुंदरगढ़ जिले में लोकल इकॉनोमी का मुख्य साधन कृषि है. सतही जल स्रोत की बात करें तो य जिले के सिर्फ 1.21 प्रतिशत हिस्से को कवर करते हैं. ऐसे में, इस क्षेत्र की सिंचाई जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल जरूरी है. उन्होंने कहा कि धान के लिए बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत होती है. शुद्ध खेती योग्य क्षेत्र का 76 प्रतिशत हिस्से में धान होता है. इससे किसानों के लिए जरूरी है कि खेती के लिए अच्छी गुणवत्ता का पानी मिलना.
सुंदरगढ़ जिले में पानी निकासी बढ़ रही है. इसके कारण पानी की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में कमी आई है. खराब गुणवत्ता वाला पानी फसल की पैदावार और मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित कर सकता है. एनआईटी राउरकेला के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर अनुराग शर्मा के अनुसार, जिले के अलग-अलग इलाकों में पानी की गुणवत्ता की जांच करने के लिए एड्वांस्ड तकनीकों का इस्तेमाल किया गया.
स्टडी में सुंदरगढ़ के 360 कुओं से इकट्ठा किए गए पानी के सैपंल्स की जांच की गई. इन सैंपल्स का टेस्ट अलग-अलग केमिकल प्रॉपर्टीज के लिए किया गया, जो मिट्टी और फसल के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं. पानी की गुणवत्ता को समझने के लिए मशीन लर्निंग मॉडल और स्टैटिस्टिकल टूल्स लागू किए गए. रिसर्च के निष्कर्षों से पता चलता है कि सुंदरगढ़ जिले के दक्षिणी, दक्षिण-पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों में पानी सिंचाई के लिए उपयुक्त माना जाता है.
हालांकि, जिले के पश्चिमी और मध्य हिस्सों, विशेष रूप से क्रिंजिकेला, तलसारा और कुटरा और सुंदरगढ़ शहर के कुछ हिस्सों में पानी में कुछ ऐसे तत्व पाए गए जो मिट्टी और फसल उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं. अगर ठीक से मैनेज नहीं किया गया, तो इन स्थितियों के कारण इस जिले में आलू और खीरे की पैदावार में गिरावट आ सकती है.
स्टडी से सबसे जरूरी बात यह पता चली है कि कुछ क्षेत्रों में पानी की क्वालिटी में और गिरावट आ सकती है. इस दिशा में काम करना जरूरी है. साथ ही, NIT, राऊरकेला के तकनीकी मॉडल का इस्तेमाल देशभर में किया जा सकता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today