बांस से बने उत्पादों की मांग में इजाफा देखा गया है और इसे पूरा करने के लिए बांस उत्पादन बढ़ाने की तैयारी की जा रही है. बीते कुछ वर्षों में बांस का घरेलू और इंडस्ट्रियल उत्पादों में इस्तेमाल बढ़ा है. बांस उत्पादन में त्रिपुरा को ऊंचाई पर ले जाने के लिए राज्य सरकार ने 5 साल के लिए योजना बनाई है, जिसके लिए अभियान की शुरूआत कर दी गई है. अभियान के तहत मौजूदा बांस रकबे से 100 गुना बढ़ाने का टारगेट रखा गया है.
त्रिपुरा सरकार ने बांस उत्पादन क्षेत्र को विशेष रूप से इंडस्ट्रियल इस्तेमाल के लिए लगभग 100 गुना बढ़ाकर 45000 हेक्टेयर भूमि तक विस्तारित करने के लिए 5 साल की योजना बनाई है. एजेंसी के अनुसार त्रिपुरा बांस मिशन (TBM) के अतिरिक्त मिशन निदेशक सुभाष चंद्र दास ने कहा कि देश की अगरबत्ती बांस की छड़ियों की लगभग 70 फीसदी जरूरत त्रिपुरा से पूरी होती है और सरकार राज्य में ऐसे और उद्योग लाने की इच्छुक है. उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में बांस खूब होता है और यहां बांस की 21 प्रजातियों का उत्पादन किया जाता है.
त्रिपुरा बांस मिशन (TBM) के अतिरिक्त मिशन निदेशक ने कहा कि फिलहाल त्रिपुरा विशेष रूप से इंडस्ट्रियल इस्तेमाल के लिए 461.32 हेक्टेयर में बांस का उत्पादन करता है और हम 2025-26 से 5 साल में इसे बढ़ाकर 45,000 हेक्टेयर करने की योजना बना रहे हैं. इन 5 वर्षों में से प्रत्येक में नौ हजार हेक्टेयर रकबा जोड़ा जाएगा. उन्होंने कहा कि टीबीएम ने 2018-19 से 2024-25 तक 461.32 हेक्टेयर में विशेष रूप से कमर्शियल जरूरत के लिए हाई डेंसिटी वाले बांस के बागान लगाए हैं.
भारतीय वन सर्वेक्षण 2023 की रिपोर्ट के अनुसार त्रिपुरा में 4.20 लाख हेक्टेयर बांस वाले क्षेत्र हैं. लेकिन उन क्षेत्रों के एक बड़े हिस्से में बांस या तो पतला है या इसकी क्वालिटी इंडस्ट्रियल इस्तेमाल के लिए उन्हें उपयोगी बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण की इस योजना का उद्देश्य कमर्शियल या इंडस्ट्रियल उद्देश्यों के लिए बांस की आपूर्ति को बढ़ाना है.
अधिकारी ने उम्मीद जताई कि अगर इस त्रिपुरा बांस रोपण विकास योजना को ठीक से लागू किया जाता है तो बांस उत्पादन क्षेत्र में परिवहन जैसी चुनौतियां जैसे दूर हो जाएंगी. उन्होंने कहा कि घने जंगलों या पहाड़ी क्षेत्रों से बांस का परिवहन एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है. अगर बांस शहरी क्षेत्रों में निजी भूमि पर उगाया जाता है तो हमें कारखानों तक बांस लाने में कोई समस्या नहीं होगी. जबकि, निजी भूमि पर उत्पादित बांस को काटने से पहले वन विभाग से अनुमति लेने की जरूरत को भी खत्म किया जाएगा. इससे इंडस्ट्री आसान तरीके से बांस की आपूर्ति करने में मदद करेगी.
उन्होंने कहा कि पश्चिम त्रिपुरा जिले के बोधजंगनगर बांस पार्क में दो बड़ी निजी कंपनियां लगी हुई हैं, जहां वे धूपबत्ती और बांस से बनी टाइलें बनाती हैं. दास ने कहा, इन दोनों के अलावा 24 छोटे-छोटे कारखाने भी अगरबत्ती बनाते हैं, जिनकी बैंगलोर, आंध्र प्रदेश, गुवाहाटी और कोलकाता में बहुत मांग है. पूर्वोत्तर राज्य में बांस की वर्तमान जरूरत लगभग 2 लाख मीट्रिक टन सालाना है, जो अगले दो या तीन वर्षों में बढ़कर 4 लाख मीट्रिक टन सालाना होने की उम्मीद है.
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