Success Story : खेत की मिट्टी और शहर के कबाड़ से बनाया पीपल फार्म, इसलिए लगाए हैं शहतूत के पेड़, जरूर पढ़ें ये कहानी

Success Story : खेत की मिट्टी और शहर के कबाड़ से बनाया पीपल फार्म, इसलिए लगाए हैं शहतूत के पेड़, जरूर पढ़ें ये कहानी

रॉबिन सिंह ने साल 2015 में पीपल फार्म के मकान खेत की मिट्टी और शहर के कबाड़ से बनाए थे. आठ साल बाद भी आज इन मकानों का कुछ नहीं बिगड़ा है. रॉबिन सिंह के मुताबिक इतना जरूर है कि जरूरत के मुताबिक दीवारों पर मिट्टी का लेप और नीचे के पत्थरों पर सफेदी कर दी जाती है. 

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Success Story : खेत की मिट्टी और शहर के कबाड़ से बनाया पीपल फार्म, इसलिए लगाए हैं शहतूत के पेड़, जरूर पढ़ें ये कहानीपीपल फार्म में म‍िट्टी और लकड़ी से बना घर. फोटो क्रेडिट-किसान तक

किसी भी चीज के उपभोग में उससे जुड़े लोगों को कम से कम परेशानी और दर्द का सामना करना पड़े, ये मानना है पीपल फार्म के संचालक रॉबिन सिंह का. युवा अवस्था में ही अमेरिका में घर और कंपनी खड़ी कर डॉलरों में कमाई करने वाले रॉबिन सिंह आज सब कुछ छोड़कर कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव में पीपल फार्म को नई ऊंचाईयां दे रहे हैं. दर्द-परेशानी इंसान की हो या प्रकृति की या फिर जानवरों की, तीनों ही रॉबिन सिंह के लिए बराबर हैं. 

यही वजह है कि जब रॉबिन सिंह धनौटू गांव में अपना घर यानि पीपल फार्म बना रहे थे तो इसके लिए उन्होंने अपने खेत की मिट्टी और शहर के कबाड़ को सबसे बेहतर पाया. रॉबिन चाहते थे कि लकड़ी के लिए नए पेड़ न काटने पड़ें इसलिए कुछ पुरानी बिल्डिंग की लकड़ी खरीद ली. मकानों में 90 फीसद लकड़ी पुरानी लगी हुई है.

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मिट्टी की ईंट, मिट्टी का प्लास्टर और घर हो गया ठंडा

रॉबिन सिंह ने किसान तक से बातचीत में बताया कि पीपल फार्म को खड़ा करने के लिए उसमे मकान भी अपने हिसाब से ही बनाए. आज फार्म के अंदर मेरा मकान हो या फिर मेरी टीम का, मेहमानों का सब एक जैसे ही हैं. इसे तैयार करने के लिए सबसे पहले हमने खेत की मिट्टी से ईंट बनाईं. सामान्य  ईंट से ये कुछ बड़ी थीं. हमने इन्हें आग में पकाने के बजाए धूप में सुखाया वो भी धीरे-धीरे. क्योंकि मिट्टी की ईंट धूप में जितनी धीरे-धीरे सूखेगी उतनी ही उसके अंदर मजबूती आएगी. 

मकान की दीवार हमने 18 इंच की बनाई है. दीवार पर लेप भी मिट्टी का किया गया है. दीवार के ग्राउंड लेवल के हिस्से में हमने बड़े वाले लाल पत्थर लगाए हैं जो धर्मशाला में अंग्रेजों के जमाने की एक बिल्डिंग से निकल रहे थे. अगर छत की बात करें तो उसमे बांस, लकड़ी और टीन शेड का इस्तेमाल हुआ है.

लकड़ी और 600 किलो टीन हमे एक बिल्डिंग का पुराना मिल गया था. पुरानी लकड़ी से ही हमने फार्मक फर्नीचर तैयार किया है. सीमेंट का इस्तेमाल न के बराबर सिर्फ फर्श पर पत्थरों को जोड़ने के लिए किया गया है. उसके लिए भी सीमेंट के साथ-साथ राख मिलाई गई है. और इस सब का फायदा ये मिला कि बिना पंखे के भी हमारे कमरे ठंडे रहते हैं.

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पीपल फार्म में इसलिए लगाए गए हैं शहतूत के पेड़ 

पीपल फार्म में मकानों के सामने शहतूत के पेड़ लगाए गए हैं. इसके पीछे की वजह बताते हुए रॉबिन सिंह ने एक बड़ी ही रोचक जानकारी दी कि गर्मियों में जब धूप में बहुत ज्यादा गर्मी होती है तो ऐसे में मकान के सामने लगे शहतूत के पेड़ धूप को अंदर की ओर नहीं आते देते हैं. जबकि सर्दियों में इसके उलट होता ये है कि शहतूत के पत्ते झड़ जाते हैं और धूप अंदर की ओर आने लगती है. और फिर मकान की दीवारें ही 18 इंच की बनी हैं, खिड़कियां बंद रहती हैं तो बाहर की ठंडक और गर्मी मकान के अंदर नहीं जाती है.  
आपको बता दें कि रॉबिन सिंह पीपल फार्म में सड़कों और गली-मोहल्ले में घूमने वाले चोटिल जानवरों का इलाज करते हैं. यहां एक छोटा सा अस्पताल भी है. फार्म की जरूरत का कुछ सामान फार्म के अंदर ही आर्गनिक तरीके से उगाया जाता है.  

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