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दिल्ली में क्लाइमेट चेंज पर फर्स्ट टाइम वोटर्स के साथ पहला सर्वे, सरकार को फेल मान रहे लोग

दिल्ली में क्लाइमेट चेंज पर फर्स्ट टाइम वोटर्स के साथ पहला सर्वे, सरकार को फेल मान रहे लोग

द बेनियान फाउंडेशन की एजुकेशन डायरेक्टर स्वाति क्वात्रा स्कूल और कॉलेजों के भीतर इंटीग्रेटेड एजुकेशन की जरूरत और क्लाइमेट चेंज के असर के बारे में पढ़ाने पर जोर देती हैं. वे कहती हैं, “जलवायु परिवर्तन के सिर्फ कारणों और नकारात्मक प्रभावों को गिनाना ही काफी नहीं है.

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दिल्ली में क्लाइमेट चेंज दिल्ली में क्लाइमेट चेंज

दिल्ली में पहली बार वोट देने वाले वोटर्स के साथ जलवायु परिवर्तन और क्लाइमेट एजुकेशन को लेकर आए सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. इसके मुताबिक दिल्ली में पहली बार वोट देने जा रहे युवाओं ने क्लाइमेट चेंज एक्शन को अपने पॉलिटिकल एजेंडे में सबसे ऊपर रखा है. सर्वे में शामिल हुए 40 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि सरकार क्लाइमेट चेंज के मुद्दों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है. वहीं, 83 प्रतिशत ने उनके स्कूल में दी जा रही पर्यावरण शिक्षा को औसत और बेहद खराब माना है.

यह आंकड़े ‘परसेप्शन ऑफ फर्स्ट-टाइम वोटर्स ऑन क्लाइमेट एजुकेशन इन इंडिया’ सर्वे में सामने आए हैं. सर्वे ‘असर’ सोशल इम्पैक्ट एडवाइजर्स, क्लाइमेट एजुकेटर्स नेटवर्क और सीएमएसआर कंसल्टेंट्स की ओर से देश के चार राज्यों के सात शहरों में किया गया है. सर्वे दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में किया गया है. शहरों में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, पुणे, कोयम्बटूर, कोलकाता और आसनसोल शामिल हैं. सर्वे में शामिल हुए युवाओं की उम्र 18-22 साल के बीच है.

युवाओं को दी जा रही शिक्षा

टीबीएफ- द बेनियान फाउंडेशन की एजुकेशन डायरेक्टर स्वाति क्वात्रा स्कूल और कॉलेजों के भीतर इंटीग्रेटेड एजुकेशन की जरूरत और क्लाइमेट चेंज के असर के बारे में पढ़ाने पर जोर देती हैं. वे कहती हैं, “जलवायु परिवर्तन के सिर्फ कारणों और नकारात्मक प्रभावों को गिनाना ही काफी नहीं है. युवाओं को केवल निराशा, भय और चिंता महसूस होगी तो वे एक्शन की ओर बढ़ते हैं. इसीलिए क्लाइमेट एजुकेशन को समाधान वाले दृष्टिकोण के साथ और अधिक व्यावहारिक बनाना होगा. साथ ही यह दृष्टिकोण मिटिग्रेशन, लचीली रणनीतियों और सस्टेनेबल उपभोग पर केंद्रित होनी चाहिए.”

सर्वे में क्लाइमेट एजुकेशन के अंतरों का भी पता चलता है. 59 फीसदी युवाओं को अपने स्कूल-कॉलेजों में दी जा रही शिक्षा में क्लाइमेट चेंज के कारण और परिणामों के बारे में पर्याप्त और सही जानकारी नहीं है. हालांकि, इनमें से अधिकतर युवाओं ने मीडिया या सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों से इस बारे में पढ़ा है.

युवाओं में करना होगा ज्ञान का विकास 

वहीं, दिल्ली में तमाम पर्यावरणीय चिंताओं के कारण 92 फीसदी युवाओं ने कहा कि उन्हें क्लाइमेट एजुकेशन को मौजूदा एजुकेशन सिस्टम में इंटीग्रेटेड (एकीकृत) करना बेहद महत्वपूर्ण लगता है. इसके अलावा दिल्ली में क्लाइमेट क्राइसिस की वजह से 61 फीसदी युवाओं ने निराशा, डर, गुस्सा और चिंता जताई, जबकि 39 फीसदी युवा जलवायु परिवर्तन के दौर में भविष्य के प्रति आशावादी थे.

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क्लाइमेट एजुकेटर्स नेटवर्क की संस्थापक सदस्य, सुनयना गांगुली कहती हैं, “सर्वे के नतीजों से स्पष्ट है कि स्कूल-कॉलेजों के सिलेबस में क्लाइमेट एजुकेशन आसान भाषा और तरीके से उपलब्ध नहीं है. निकट भविष्य में आने वाले जलवायु संकट की तैयारी भी नहीं है. इसलिए हमें युवाओं में आशा और भरोसा पैदा करना चाहिए. साथ ही गुणवत्तापूर्ण क्लाइमेट सिलेबस, कौशल को बढ़ावा देने के लिए स्थान-आधारित और नई शिक्षा प्रणाली का उपयोग करना चाहिए. साथ ही जलवायु के प्रति जागरूक समाज बनाने के लिए युवाओं में स्किल और ज्ञान का विकास करना पड़ेगा.”

क्या हैं सर्वे की मुख्य बातें

- सर्वे में शामिल हुए युवाओं में से 58 फीसदी ने कहा कि स्कूल-कॉलेज में उन्हें मिली क्लाइमेट एजुकेशन ‘औसत’ है, जबकि 25 फीसदी ने इसे "खराब" माना. सर्वे में शामिल हुए 40 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि सरकार क्लाइमेट चेंज के मुद्दों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है.

- 59 फीसदी युवाओं का मानना है कि उन्हें जलवायु परिवर्तन के कारणों और परिणामों के बारे में पर्याप्त रूप से सूचना नहीं है. यह जलवायु परिवर्तन की उनकी समझ की रैंकिंग में बी दिखता है, जिनमें से अधिकांश (67 फीसदी) ने कहा कि वे इस बारे में कुछ हद तक ही जानते हैं.

- युवाओं ने जलवायु संकट से निपटने के लिए तीन बड़े तरीके गिनाए, जिसमें 19 फीसदी ने परिवहन में सस्टेनेबल ढांचे को बढ़ाने, 18 फीसदी ने रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों को प्राथमिकता देने और 17 फीसदी ने क्लाइमेट एजुकेशन और जागरूकता कार्यक्रमों पर जोर देने की बात कही.

- युवाओं से पॉलिटिकल मुद्दों को लेकर भी सवाल किए गए. इसमें 19 फीसदी ने पब्लिक हेल्थ क्राइसिस और 16 फीसदी ने आर्थिक संकट के बारे में बात करने वाले उम्मीदवारों या पार्टियों को प्राथमिकता दी. वहीं, 16 फीसदी ने क्लाइमेट चेंज को वोट देते वक्त महत्वपूर्ण विषय माना.

- 63 फीसदी युवाओं ने कहा कि उन्होंने क्लाइमेट एजुकेशन के पहलुओं को अपने रूटीन लाइफ में अपना लिया है. हालांकि, ग्रुप डिस्कशन के दौरान अधिकतर युवाओं का क्लाइमेट चेंज से आशय पर्यावरण के मुद्दे थे. उदाहरण के लिए, जब युवाओं से क्लाइमेट चेंज से निपटने के तरीके पूछे गए तो ज्यादातर ने पेड़ लगाने को इसका समाधान बताया.

- 76 फीसदी युवाओं ने कहा कि उन्होंने अपने स्कूल में जलवायु परिवर्तन के बारे में कुछ भी नया नहीं सीखा है. यह बयान क्लाइमेट एजुकेशन को लेकर वर्तमान में पाठ्यक्रम में मौजूद एजुकेशन के गैप को दिखाता है.

- 92 फीसदी युवाओं ने कहा कि उन्हें क्लाइमेट एजुकेशन को मौजूदा एजुकेशन सिस्टम में इंटीग्रेटेड (एकीकृत) करना बेहद महत्वपूर्ण लगता है.

- सर्वे में शामिल हुए युवाओं ने हेल्थ क्राइसिस को सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बताया. उन्होंने क्लाइमेट चेंज/संकट और आर्थिक संकट को दूसरे स्थान पर रखा.