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Wheat Price: गेहूं संकट का सामना कर रहा भारत! बंपर पैदावार के बावजूद क्यों बढ़ रहे हैं दाम? 

Wheat Price: गेहूं संकट का सामना कर रहा भारत! बंपर पैदावार के बावजूद क्यों बढ़ रहे हैं दाम? 

र‍िकॉर्ड उत्पादन के दावों के बावजूद क्यों गेहूं के दाम आसमान पर हैं. क्यों रोलर फ्लोर म‍िलर्स ऐसा माहौल बना रहे हैं क‍ि भारत को गेहूं आयात करने की जरूरत है. आख‍िर ऐसा क्या हुआ क‍ि दुन‍िया के दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक देश में गेहूं संकट जैसे हालात बने हुए हैं. क्या बफर स्टॉक यानी सेंट्रल पूल में कम गेहूं की वजह से ऐसा हो रहा है? या इसकी कोई अंतरराष्ट्रीय वजह है?

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डेटा बोलता है में समझ‍िए गेहूं का पूरा गण‍ित. डेटा बोलता है में समझ‍िए गेहूं का पूरा गण‍ित.

भारत का गेहूं भंडार हमेशा से भरा रहता था. इसकी वजह ये है कि गेहूं भारत की मुख्‍य फसल है और बड़ी संख्‍या में किसान इसकी खेती करते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल भी देश में रिकॉर्ड गेहूं का उत्‍पादन हुआ है, लेकिन बाजार में इसके दाम में आग लगी हुई है. आलम ये है कि देश के विभिन्‍न बाजारों में गेहूं 2500 से 3000 रुपये क्‍विंटल तक के भाव पर बिक रहा है. तो वहीं गेहूं का एमएसपी स‍िर्फ 2275 रुपये क्‍विंटल है. प‍िछले दो साल से चल रहे एक्सपोर्ट बैन और ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के तहत करीब 100 लाख टन गेहूं को र‍ियायती दर पर बेचने के बावजूद इस वक्त गेहूं और उसके आटे के दाम को लेकर देश में टेंशन बनी हुई है. गेहूं की ये विपरित चाल डरा रही है. गेहूं को लेकर ये डर तब और बढ़ जाता है, जब इसकी सरकारी खरीद भी उलझी हुई दिखाई देती है. 

गेहूं की सरकारी खरीद की बात करें तो लगातार तीसरे साल सरकार अपने लक्ष्‍य से बहुत पीछे है. दरअसल, क‍िसी भी चीज का दाम तब बहुत ज्यादा बढ़ता है जब मांग और आपूर्त‍ि में भारी अंतर हो. इसल‍िए हमें गेहूं के उत्पादन के साथ खपत भी देखने की जरूरत है. ब‍िना खपत को जाने हम तय कर नहीं सकते क‍ि समस्या क्या है. बहरहाल, अब सवाल कई हैं. इसी कड़ी में पेश है गेहूं पर किसान तक का श्‍वेत पत्र...जिसमें हम गेहूं के उत्पादन, संकट और खपत सह‍ित इसके तमाम पहलुओं को जानने की कोश‍िश करेंगे. 

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मांग और आपूर्त‍ि का गण‍ित 

केंद्र सरकार इस साल र‍िकॉर्ड 1129.25 लाख टन गेहूं उत्पादन होने का दावा कर रही है, जो पिछले वर्ष के उत्पादन की तुलना में 23.71 लाख मीट्रिक टन ज्यादा है. दूसरी ओर, नीत‍ि आयोग ने अपनी एक र‍िपोर्ट में बताया है क‍ि 2021-22 में गेहूं की मांग 971.20 लाख टन थी, ज‍िसे 2028-29 में बढ़कर 1070.8 लाख टन होने का अनुमान है. इस ह‍िसाब से 2024 में गेहूं की मांग 1001 लाख टन होगी. अगर इसे उत्पादन अनुमान यानी 1129.25 से घटा दें तो वर्तमान में भारत के पास घरेलू मांग से 128 लाख टन अध‍िक गेहूं मौजूद है. 

अब सवाल यह है क‍ि इसके बावजूद क्यों गेहूं के दाम आसमान पर हैं. क्यों रोलर फ्लोर म‍िलर्स ऐसा माहौल बना रहे हैं क‍ि भारत को गेहूं आयात करने की जरूरत है. आख‍िर ऐसा क्या हुआ क‍ि बंपर पैदावार के बावजूद संकट जैसे हालात बने हुए हैं. क्या बफर स्टॉक यानी सेंट्रल पूल में कम गेहूं की वजह से ऐसा हो रहा है? इसे भी समझते हैं. 

गेहूं की मांग आपूर्ति.

बफर स्टॉक की स्थ‍ित‍ि 

गेहूं और आटे के दाम में लगी आग के पीछे कुछ लोग ट्रेडर्स को ज‍िम्मेदार बता रहे हैं तो कुछ लोग इसकी सरकारी खरीद और गेहूं पर अंतरराष्ट्रीय हालात का हवाला दे रहे हैं. इस गणित में उलझने से पहले हम देश में गेहूं का ह‍िसाब-क‍िताब जान लेते हैं. इसमें सबसे पहले हम सरकारी स्टॉक यानी सेंट्रल पूल की बात करते हैं. केंद्र सरकार के भंडार में गेहूं का स्टॉक 1 अप्रैल को पिछले 16 वर्षों में सबसे कम हो गया था, हालांकि, केंद्रीय भंडार में गेहूं 74.6 लाख टन के बफर मानक से 42,000 टन अधिक था. 

कुछ लोग पूछेंगे क‍ि बफर स्टॉक क्या है. दरअसल, सरकार भविष्य में होने वाली किसी वस्तु की कमी को पूरा करने, किसी वस्तु की कीमत में होने वाले उतार-चढ़ाव पर काबू पाने ,कल्याणकारी योजनाओं और आपात स्थितियों में मांग को पूरा करने के लिए अनाज की एक तय मात्रा भंडार करके रखती है. इसे ही बफर स्टॉक कहते हैं. 

उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की र‍िपोर्ट में बताया गया है क‍ि मोटे अनाजों को छोड़कर मई 2024 में भारत का खाद्यान्न स्टॉक 578.62 लाख टन है, ज‍िसमें 319.07 लाख टन चावल और 259.55 लाख टन गेहूं शाम‍िल है. जबक‍ि मई 2023 में खाद्यान्न स्टॉक 555.34 लाख टन ही था. ज‍िसमें 265.06 लाख टन चावल और 290.28 लाख टन गेहूं शाम‍िल था. 

यहां यह बता देना जरूरी है क‍ि जब सरकार के पास गेहूं की थोड़ी कमी होती है तो पीडीएस में वो चावल की मात्रा बढ़ा देती है और जब चावल की कमी होती है तो गेहूं की मात्रा बढ़ा देती है. पीडीएस और अन्य सरकारी योजनाओं के ल‍िए सालाना जरूरत मात्र 184 लाख टन की ही है. ऐसे में सरकार के पास पर्याप्त गेहूं मौजूद है. 

क्या कम खरीद का पड़ा असर 

प‍िछले तीन साल से सरकार गेहूं खरीद के लक्ष्य को हास‍िल नहीं कर पा रही है. तो क्या कम और अधिक सरकारी खरीद का गेहूं के दाम पर कोई असर पड़ा है? जानकार इसका 'हां' में जवाब देते हैं. रिकॉर्ड पैदावार के बावजूद दाम बढ़ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि कम सरकारी खरीद बाजार पर दबाव डालती है. 

इस साल यानी 2024-25 में 372.9 लाख टन की जगह पूरी खरीद स‍िर्फ 265 लाख टन पर ही स‍िमटती नजर आ रही है. प‍िछले साल यानी 2023-24 में सरकार 341.50 लाख टन के लक्ष्य के व‍िपरीत स‍िर्फ 262 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई थी. केंद्र सरकार 2022-23 में भी खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई थी. तब 444 लाख मीट्र‍िक टन के लक्ष्य की जगह महज 187.92 लाख मीट्र‍िक टन ही गेहूं खरीदा जा सका था. इसका बाजार पर असर पड़ा है. 

हालांक‍ि, गेहूं के स्टॉक को लेकर हालात प‍िछले साल के मुकाबले खराब नहीं हैं. प‍िछले साल 262 लाख टन गेहूं खरीदा गया था, जबक‍ि इस साल 265 लाख टन से अध‍िक खरीद हो चुकी है. प‍िछले साल ब‍िना इंपोर्ट क‍िए ही सरकार ने 100 लाख टन गेहूं र‍ियायती दर पर भी बेचा. हर साल ऐसा करना कोई जरूरी नहीं है. संभत: इसील‍िए सरकार ने गेहूं पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाने से इंकार कर द‍िया है. 

गेहूं के बफर स्टॉक का मानदंड.

अंतरराष्ट्रीय कारण जिम्‍मेदार हैं? 

सरकार तीन साल से ही गेहूं की खरीद पूरा नहीं कर पा रही है तो तीन साल से ही ओपन मार्केट में गेहूं के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी से ज्यादा चल रहे हैं, इसल‍िए क‍िसान सरकारी केंद्रों की बजाय व्यापार‍ियों को गेहूं बेच रहे हैं. कुछ क‍िसान अच्छे दाम की उम्मीद में उसे स्टोर करके रख भी रहे हैं. लेक‍िन सवाल यह भी उठता है क‍ि आख‍िर ओपन मार्केट में दाम एमएसपी से ज्यादा क्यों है, जबक‍ि प‍िछले दो साल से भारत र‍िकॉर्ड गेहूं उत्पादन कर रहा है. तो क्या इसकी कोई अंतरराष्ट्रीय वजह है. इसे समझे ब‍िना आप भारत में गेहूं के गण‍ित को नहीं समझ पाएंगे.  

भारत-चीन बड़े न‍िर्यातक नहीं 

दरअसल, दुनिया में गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन चीन और भारत में होता है, लेक‍िन इन दोनों में आबादी ज्यादा होने की वजह से ये देश गेहूं के बड़े निर्यातकों की सूची में शामिल नहीं हैं. गेहूं के प्रमुख निर्यातक देशों में रूस, यूक्रेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के नाम सबसे ऊपर आते हैं. फरवरी 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत में आए हीटवेव की वजह से पैदावार में आई कमी के कारण पूरी दुन‍ियों में गेहूं को लेकर जो टेंशन शुरू हुई थी वो अब तक कम नहीं हुई है. 

रूस-यूक्रेन में उत्पादन ग‍िरा 

रूस और यूक्रेन दोनों वैश्विक स्तर पर गेहूं के व्यापार में 25 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं. अब तक न स‍िर्फ इन दोनों के बीच युद्ध चल रहा है बल्क‍ि दोनों में इस साल गेहूं का उत्पादन भी ग‍िर गया है, ज‍िसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम में तेजी देखी जा रही है और उसका असर भारत पर भी द‍िखाई दे रहा है. 

यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) के अनुसार रूस और यूक्रेन दोनों में गेहूं का उत्पादन कम हो गया है. रूस में 2023-24 के दौरान  91.50 म‍िल‍ियन मीट्र‍िक टन यानी 915 लाख मीट्र‍िक टन गेहूं का उत्पादन हुआ था जो 2024-25 में घटकर 830 लाख टन रह गया. इसी तरह यूक्रेन में 2023-24 के दौरान 230 लाख टन उत्पादन था, जो 2024-25 में घटकर 195 लाख टन रह गया है. इसका असर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर द‍िख रहा है, ज‍िसके असर से भारत भी अछूता नहीं रह सकता.

गेहूं की क‍ितनी खरीद हुई.

क‍िसने खाई मलाई! 

हालांक‍ि, गेहूं और आटे के दाम को कम करने की कोश‍िश में सरकार प‍िछले साल से ही जुटी हुई है. इसके तहत प‍िछले एक साल में ओएमएसएस के तहत करीब 100 लाख टन गेहूं फ्लोर म‍िलर्स और सहकारी एजेंस‍ियों को बहुत र‍ियायती दर पर द‍िया. ज‍िस गेहूं की आर्थ‍िक लागत लगभग 30 रुपये आती है उसे 22-23 रुपये क‍िलो के भाव पर बेच डाला. उसके बावजूद न गेहूं सस्ता हुआ और न आटा. इस बात की तस्दीक खुद सरकारी र‍िपोर्ट करती है. सवाल यह है क‍ि उपभोक्ताओं के नाम पर क‍िसने ओएमएसएस की मलाई खाई?  

उपभोक्ता मामले मंत्रालय के प्राइस मॉन‍िटर‍िंग ड‍िवीजन के अनुसार 15 जून 2024 को देश में गेहूं का औसत दाम 30.83, अध‍िकतम 53 और न्यूनतम 22 रुपये प्रत‍ि क‍िलो रहा, जबक‍ि एक साल पहले यानी 15 जून 2023 को इसका औसत दाम 28.95 रुपये, अध‍िकतम 50 और न्यूनतम 20 रुपये रहा. इसी तरह 15 जून 2024 को गेहूं के आटा का औसत दाम 36.07, अध‍िकतम 70 और न्यूनतम 27 रुपये क‍िलो रहा. जबक‍ि प‍िछले साल यानी 15 जून 2023 को आटा का औसत दाम 34.27, अध‍िकतम  67 और न्यूनतम दाम 20 रुपये प्रत‍ि क‍िलो था. 

क‍िसानों को राहत 

बहरहाल, अब सरकार ने यह साफ कर द‍िया है क‍ि गेहूं की इंपोर्ट ड्यूटी कम नहीं की जाएगी. इससे क‍िसानों को राहत म‍िली है. क्योंक‍ि अगर जीरो इंपोर्ट ड्यूटी पर दूसरे देशों से सस्ता गेहूं आता तो क‍िसानों को बड़ा झटका लगता. उन्हें जो अच्छा दाम म‍िल रहा है वह नहीं म‍िलता. दरअसल, मांग से ज्यादा गेहूं उत्पादन के बावजूद रोलर फ्लोर म‍िलर्स यह चाह रहे थे क‍ि सरकार गेहूं पर इंपोर्ट ड्यूटी खत्म कर दे, ताक‍ि वो दूसरे देशों से सस्ता गेहूं मंगा सकें. 

अभी गेहूं पर 40 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी है. आटे का ब‍िजनेस करने वाले लोग स‍िर्फ सस्ता गेहूं चाहते हैं, सस्ता आटा बेचना उनका मकसद नहीं नहीं है. ओएमएसएस के बावजूद गेहूं और आटे की बढ़ी महंगाई इसका सबसे बड़ा सबूत है. कुल म‍िलाकर यह साफ-साफ कहा जा सकता है क‍ि देश में गेहूं की कोई कमी नहीं है. कुछ लोग अपने ह‍ितों को साधने के ल‍िए इस तरह का माहौल बनाने की कोश‍िश जरूर कर रहे हैं. 

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