दालों के बढ़ते आयात के बीच दलहन फसलों के घटे रकबे ने केंद्र सरकार की नींद उड़ा दी है. सरकार ने नेफेड और कृषि मंत्रालय को उत्पादन बढ़ाने का जिम्मा सौंपा है. साथ ही दावा किया है कि दिसंबर 2027 तक हम दलहन के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएंगे. हालांकि, किसानों ने दलहन के मामले में ही सरकार को इस साल बड़ा झटका दिया है. पिछले साल के मुकाबले एरिया 7.52 लाख हेक्टेयर घट गया है. जिसमें सबसे बड़ा योगदान चने का है. वजह यह है कि पिछले साल राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे बड़े चना उत्पादक सूबों में किसानों को चने का एमएसपी भी नसीब नहीं हुआ. किसानों की मांग के बावजूद सरकार ने एमएसपी पर पर्याप्त खरीद नहीं की.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि 2023 में काफी किसानों ने 4200 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल के दाम पर चना बेचा था. जबकि इसकी एमएसपी 5,335 रुपये क्विंटल थी. किसानों को प्रति क्विंटल हजार-हजार रुपये का नुकसान हुआ था. इसलिए गुस्से में उन्होंने चने की खेती कम कर दी है. उनका गुस्सा बुवाई के आंकड़ों में साफ तौर पर दिखाई दे रहा है. तिलहन फसलों में देश को आत्मनिर्भर बनाना है तो किसानों को अच्छा दाम देना ही होगा. इसका कोई दूसरा रास्ता नहीं हो सकता.
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चने की बुवाई रबी फसल सीजन 2023-24 के दौरान 19 जनवरी तक 102.90 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है. जो पिछले साल इसी अवधि में 109.73 लाख हेक्टेयर में हुई थी. यानी एक साल में चने का रकबा 6.83 लाख हेक्टेयर कम हो गया है. दलहन फसलों की बुवाई में जो गिरावट है उसमें सबसे ज्यादा योगदान ही चने का है. पिछले साल जब सरकार एमएसपी घोषित कर रही थी तब बताया था कि किसानों को प्रति क्विंटल चना उत्पादन में 3206 रुपये का खर्च आता है. ऐसे में कोई किसान 4200 रुपये में ही क्यों फसल बेचेगा.
दलहन फसलों के उत्पादन में कमी को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. क्योंकि भारत हर साल करीब 16000 करोड़ रुपये का दलहन आयात कर रहा है. बहरहाल, केंद्र सरकार ने दलहन फसलों का रकबा कम होने के चार प्रमुख कारण बताए हैं. लेकिन दाम की समस्या बताना भूल गई. केंद्र के मुताबिक कुछ राज्यों में कम क्षेत्र कवरेज का कारण खरीफ फसलों की देर से कटाई, अन्य फसलों की ओर शिफ्ट करना, मिट्टी में नमी की कमी और धान की कटाई में देरी आदि है.
ऐसा भी नहीं है कि चने की बुवाई का आंकड़ा अपडेट होने वाला है. केंद्र सरकार ने खुद बताया है कि चना उत्पादन करने वाले मुख्य राज्यों में चने की बुआई लगभग पूरी हो गई है. आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे कुछ सूबे जरूर रबी सीजन के दलहन के अंतर्गत क्षेत्र कवरेज की सूचना दे रहे हैं. मूंग का रकबा पिछले साल के मुकाबले 1.01 और उड़द का 0.95 लाख हेक्टेयर कम है.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे बड़ा चना उत्पादक है. दुनिया के कुल चना उत्पादन का करीब 70 फीसदी यहीं होता है. यह रबी सीजन में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण दलहनी फसल है. चने का उत्पादन कुल दलहन फसलों का करीब 45 फीसदी होता है. इसलिए इसके रकबे में कमी चिंता बढ़ाने वाली है. चना उत्पादन में मध्य प्रदेश प्रथम स्थान पर है. जबकि महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है. इसके अलावा राजस्थान और गुजरात भी चने के प्रमुख उत्पादक हैं.
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भारत दुनिया की करीब 25 फीसदी दालें पैदा करता है. लेकिन खपत दुनिया की 28 फीसदी होती है. इसलिए हम दालों के सबसे बड़े उत्पादक के साथ-साथ आयातक भी हैं. इसीलिए दालों का दाम यहां आसमान पर है. अगर बात करें दलहन फसलों के उत्पादन की तो 2018-19 में भारत सिर्फ 220.75 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन करता था. जो 2022-23 में बढ़कर 260.59 लाख टन हो गया. इसका मतलब कि पिछले पांच साल में करीब 40 लाख टन की वृद्धि हुई है. लेकिन जितना उत्पादन बढ़ रहा है उससे अधिक खपत में इजाफा हो जा रहा है.
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