लहसुन की खेती करने वाले किसानों ने सरकार और जनता दोनों को खेती-किसानी का अर्थशास्त्र अच्छी तरह से समझा दिया है. जनवरी 2023 के दौरान मंडियों में लहसुन महज 5 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिक रहा था, जबकि इस साल दाम 200 रुपये किलो है. फुटकर में तो उपभोक्ताओं को 400 रुपये तक का दाम चुकाना पड़ रहा है. ऐसा क्यों हुआ, इस सवाल का जवाब ही किसानों और उपभोक्ताओं दोनों की समस्याओं का समाधान है. दरअसल, दाम कम होने की वजह से किसानों ने खेती इतनी कम कर दी कि बाजार में लहसुन की क्राइसिस हो गई और दाम बढ़ गया. ऐसे में सीख यही है कि किसानों को इतना मत दबाईए कि वो घाटा सहकर 5 रुपये किलो में लहसुन बेचने के लिए मजबूर हों. क्योंकि यही मजबूरी खेती कम करवा देगी, जिसका बोझ अंत में आकर उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा.
इसलिए लहसुन ही नहीं किसी भी फसल पर किसानों की जो लागत आती है उस पर मुनाफे का संतुलन बनाए रखने की जरूरत है. वरना एक साल किसान लुटेगा और दूसरे या तीसरे साल कंज्यूमर. लहसुन जैसी ही स्थितियां ही अगले साल तक प्याज को लेकर भी पैदा हो सकती हैं. क्योंकि इस साल वो एक्सपोर्ट बैन की वजह से 1-2 रुपये किलो पर प्याज बेचने के लिए मजबूर हैं. बहरहाल, हम लहसुन की बात करते हैं, जिसका रकबा एक ही साल में 10 फीसदी कम हो गया है जबकि उत्पादन में 8 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है. जिसका असर बाजार पर दिखाई दे रहा है.
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मध्य प्रदेश के विदिशा जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर करैया हाट गांव के आकाश बघेल ने पिछले साल 10 बीघे में लहसुन की खेती की थी. लहसुन एक मसाला कैटेगरी की फसल है. फिर भी इसकी दुर्गति हो रही थी. कम दाम की वजह से उन्हें 4 लाख का घाटा हुआ था. बघेल ने 'किसान तक' को बताया कि उन्हें 5 से 35 रुपये किलो तक का दाम मिला था, जिसमें घाटा ही घाटा हुआ था. इसलिए परेशान होकर लहसुन की खेती ही बंद कर दी. उज्जैन में पहले के मुकाबले सिर्फ 20 फीसदी लहसुन की खेती बची है.
कम दाम से नाराज किसानों ने अपना गुस्सा दिखा दिया है. मध्य प्रदेश लहसुन का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसलिए वहां पर इसकी खेती करने वाले किसानों को पिछले वर्ष काफी नुकसान हुआ था. उन्होंने उसी गुस्से में या तो रकबा कम कर दिया है या फिर उसकी जगह दूसरी फसलों की खेती कर ली है. जिससे बाजार में लहसुन की सॉर्टेज हो गई है. इसकी कीमत किसान भी चुका रहे हैं और उपभोक्ता भी.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक साल 2021-22 में देश भर में 4,31,000 हेक्टेयर में लहसुन की खेती हुई थी. जो 2022-23 के तीसरे अग्रिम अनुमान में घटकर मात्र 3,86,000 हेक्टेयर में सिमट गई. यानी एक ही साल में रकबा 45,000 हेक्टेयर घट गया. इस तरह किसानों के गुस्से से रकबा 10.4 फीसदी कम हो गया.
साल 2021-22 के दौरान देश भर में 35,23,000 मीट्रिक टन लहसुन का उत्पादन हुआ था. जबकि 2022-23 के तीसरी अग्रिम अनुमान में यह घटकर 32,33,000 मीट्रिक टन ही रह गया है. यानी एक साल में 2,90,000 मीट्रिक टन की गिरावट आई है. अगर परसेंट में देखें तो 8.2 फीसदी की कमी. जिसकी वजह से लहसुन का दाम इस साल अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है.
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