किसानों में इस बात को लेकर चर्चा तेज हो गई है कि क्या इस बार भी गेहूं की उपज पिछले साल की तरह कम होगी. यह आशंका इसलिए प्रबल हुई है क्योंकि पिछले साल की तरह इस साल भी फरवरी में तापमान में बढ़ोतरी देखी जा रही है. फरवरी में अचानक तापमान बढ़ने से गेहूं की पैदावार पर असर पड़ सकता है. हालांकि कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञ ऐसी किसी भी आशंका को खारिज कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा तापमान गेहूं के लिए सही है और इससे पैदावार पर कोई प्रतिकूल असर पड़ेगा. विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इस साल गेहूं की बंपर पैदावार दर्ज की जाएगी.
इस बारे में बोरलॉग इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशिया के मैनेजिंग डायरेक्टर अरुण कुमार जोशी ने एक अखबार से बातचीत में कहा, अभी तक का जो फीडबैक है, उसके मुताबिक देश में गेहूं की बंपर पैदावार देखी जाएगी. इसकी वजह है कि देश में गेहूं का रकबा बहुत अधिक बढ़ा है. सरकारी अनुमान के मुताबिक, इस रबी सीजन में 340 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में गेहूं की बुआई की गई है. किसानों को इस बात का पूरा भरोसा है कि उन्हें गेहूं की बंपर उपज मिलेगी और उसके मुताबिक बाजार भी उपलब्ध होगा. किसानों को उम्मीद है कि उन्हें गेहूं की अच्छी कीमत मिलेगी. अरुण कुमार जोशी इंटरनेशनल मेज एंड व्हीट इंप्रूवमेंट सेंटर (CIMYT) के भारतीय प्रतिनिधि भी हैं.
अरुण कुमार जोशी कहते हैं, यह साल खेती-किसानी के लिए बहुत अच्छा साल है. देश में इस साल मॉनसून देर से पहुंचा, लेकिन भूमि में अभी तक पर्याप्त नमी बनी हुई है. किसानों ने समय पर अपनी फसलों की बुआई की. इस बार देश के कई इलाकों के किसानों ने समय से पहले फसलों की बुआई की है. जैसे मध्य भारत, उत्तर पश्चिम भारत और पूर्वी क्षेत्रों में किसानों ने एक हफ्ते से लेकर 10 दिन पहले फसलों की बुआई की है. इसका फायदा किसानों को जरूर मिलेगा.
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जोशी ने कहा, यूक्रेन के हालात को देखते हुए किसानों को उम्मीद है कि उन्हें गेहूं के अच्छे दाम मिलेंगे. खेती-किसानी की लागत और उसमें इस्तेमाल होने वाली चीजों को सरकार ने बहुत अच्छे से मैनेज किया है. देश में सिंचाई की व्यवस्था भी पहले से सुधरी है. इन सभी बातों को देखते हुए इस बार भी देश में गेहूं की अच्छी पैदावार होने की पूरी उम्मीद है. इस हिसाब से भारत इस बार भी गेहूं के निर्यात की योजना बनाएगा.
गेहूं के निर्यात से देश के किसानों को फायदा मिलेगा. अरुण कुमार जोशी ने कहा, पिछले साल गेहूं का बाजार रेट न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक था. इस बार भी लोगों को भरोसा है कि गेहूं का बाजार भाव एमएसपी के आसपास रहेगा. हालांकि भारत करनाल बंट फफूंद से संक्रमित इलाके जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के गेहूं का निर्यात नहीं कर सकता. इस लिहाज से मध्य भारत का गेहूं निर्यात होता रहा है और इस बार भी कुछ ऐसा ही देखा जाना चाहिए. जोशी ने यह बात 'दि हिंदू' से एक बातचीत में कही.
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गेहूं की फसल के लिए शुरुआती गर्मी खलनायक का रोल निभाती है जिससे बचने का एक ही उपाय है. किसान समय से कुछ पहले गेहूं बो दें और समय से पहले ही कटाई कर लें. इससे तापमान का असर कम होगा. किसानों को खेती में मशीनीकरण पर ध्यान देना चाहिए. अगर फसल तैयार हो जाती है तो मशीनों के द्वारा उसकी कटाई समय से कर लेनी चाहिए. आजकल टेक्नोलॉजी बहुत एडवांस है, जिसका फायदा किसानों को लेना चाहिए.
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