झारखंड में इस साल भयंकर सूखा पड़ा था. राज्य के 24 में से 22 जिलों के 226 प्रखंड गंभीर सूखे की चपेट में थे. वहीं बारिश की कमी का सीधा असर धान की फसल पर पड़ा है. इसके अलावा विशेषज्ञों ने गेंहू की फसल पर भी इसका असर पड़ने की संभवाना जताई है. ऐसे में सवाल उठता है किआखिर झारखंड में इतने सारे डैम या बांध हैं तो इसका लाभ यहां के किसानों को क्यों नहीं मिलता है, आखिर यहां के खेत सूखे क्यों रह जाते हैं, क्यों पानी की कमी के कारण ग्रामीण किसान सही समय पर अपने खतों की सिंचाई नहीं कर पाते हैं. ऐसे में आइए इन सभी सवालों का जवाब में इस आर्टिकल में जानते हैं-
कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, झारखंड में कृषि क्षेत्र भूमि की बात करें तो यहां पर लगभग 30 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कृषि योग्य भूमि है. इतना बड़ा क्षेत्रपल होने के बाद भी यहां सिंचाई की सुविधा नहीं है. जल संसाधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है. ऐसे में मौजूदा वक्त में हजारों हेक्टेयर खेत ऐसे हैं जिन्हें पानी का इंतजार है. ताकि खेतों में किसानों की फसल लहलहा सके. दरअसल इसके पीछे वजह यह है राज्य में दर्जनों ऐसी छोटी-बड़ी सिंचाई परियोजनाएं हैं जो अधूरी पड़ी हैं.
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कई ऐसे डैम हैं जिनका निर्माण राज्य में कृषि को बढ़ावा देने के लिए किया गया, लेकिन उनसे आज भी किसानों को लाभ होता नहीं दिख रहा है. पलामू जिले के बटाने डैम की बात करें तो यहां रैयतों की मनमानी चलती है. जिसके कारण अधिकांश पानी बर्बाद हो जाता है. 33 सौ एकड़ में फैले इस डैम के निर्माण में 12 साल का समय लगा था. वहीं डैम के लिए 2600 एकड़ जमीन का मुआवजा दिया जा चुका है, 700 एकड़ का मुआवजा अभी भी बाकी है. यही वजह है की रैयतों में नाराजगी है. हालांकि, हाल ही में 200 एकड़ के मुआवजे के लिए नोटिस दिया गया है.
कोडरमा में खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए दो बड़े डैम केशो और पंचखेरो जलाशय का शिलान्यास किया गया था. प्रभात खबर की रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल के अंदर दोनों डैम या बांध का निर्माण कार्य पूरा किया जाना था, लेकिन साल 2014-15 तक भी इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं किया जा सका था. इसके कारण किसान अब भी यहां पर सिंचाई सुविधाओं से वंचित हैं. हालांकि, जल संसाधन विभाग का दावा है कि फिलहाल 500 हेक्टेयर जमीन में यहां के पानी के जरिए सिंचाई सुविधा दी जा रही है.
इतना नहीं नहीं चतरा, लोहरदगा, लातेहार और गुमला जिले में बनाए गए अन्य जलाशयों की भी स्थिति अच्छी नहीं है. चतरा में बना दुलकी जलाशय का अतिक्रमण के कारण कम होता जा रहा है. चतरा में करीब दो दर्जन जलाशय हैं पर इसका लाभ किसानों को बहुत कम ही मिल पाता है.
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