Bamboo farming: हरा सोना की खेती से 40 साल की कमाई की गारंटी, जानें 1 एकड़ का हिसाब

Bamboo farming: हरा सोना की खेती से 40 साल की कमाई की गारंटी, जानें 1 एकड़ का हिसाब

हरा सोने यानी बांस की खेती किसानों के लिए 40 साल तक की कमाई का एक गारंटीड सौदा है. यह एक बार लगाकर दशकों तक मुनाफा देने वाली फसल है, जिसमें देखभाल की ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती. यह कम मेहनत में किसानों को आर्थिक रूप से मज़बूत करने का एक शानदार विकल्प है.

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Bamboo farming: हरा सोना की खेती से 40 साल की कमाई की गारंटी, जानें 1 एकड़ का हिसाबबांस की खेती से किसानों की कमाई बढ़ती है

बांस की खेती किसानों के लिए एक एटीएम की तरह है, जो एक बार लगने के बाद कई सालों तक लगातार आमदनी देती है. सरकार भी अब बांस की खेती को बढ़ावा दे रही है ताकि गांवों में उद्योग बढ़ें क्योंकि बांस एक बहु-उपयोगी पौधा है जिसके अनगिनत फायदे हैं. निर्माण कार्यों में बल्लियों के रूप में इसका इस्तेमाल आम है. वहीं इससे फर्नीचर, टोकरियां, रसोई के बर्तन और घर सजाने की सुंदर वस्तुएं भी बनाई जाती हैं. इतना ही नहीं, बांस का उपयोग बांसुरी जैसे वाद्य-यंत्र बनाने से लेकर आयुर्वेदिक दवाइयों तक में होता है. पर्यावरण की दृष्टि से भी यह बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मिट्टी के कटाव को रोकता है और बाढ़ जैसी आपदाओं में भी सुरक्षित खड़ा रहता है, जिस कारण इससे बने घर ऐसे इलाकों में ज्यादा सुरक्षित माने जाते हैं. 

बांस को क्यों कहते हैं 'किसानों का ATM'?

बांस को 'किसानों का ATM' या 'हरा सोना' कहने के पीछे कई ठोस कारण हैं. एक तो, अन्य फसलों के विपरीत इसमें बहुत कम मेहनत लगती है और एक बार बाग लगा देने के बाद ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती. ऊपर से इसकी बिक्री भी बेहद आसान है, क्योंकि खरीदार खुद खेत पर आकर इसे खरीद लेते हैं, जिससे बाजार तक ले जाने का झंझट खत्म हो जाता है. सबसे बड़ा कारण इसकी लंबे समय तक चलने वाली नियमित आमदनी है. एक बार लगाया गया बांस का बाग पांचवें साल से कमाई देना शुरू करता है और अगले 30 से 40 सालों तक लगातार मुनाफा देता रहता है. 

बांस की स्मार्ट खेती 

बांस की खेती की सरल विधि की शुरुआत खेत की तैयारी से होती है. इसके लिए बलुई-दोमट मिट्टी सबसे उत्तम है, हालांकि यह कई प्रकार की मिट्टी में उग सकता है. मॉनसून (जून से सितंबर) के दौरान खेत की जुताई कर उसे समतल किया जाता है और फिर एक साल पुराने कंद (जड़ का हिस्सा) को गड्ढों में रोपा जाता है. इसकी लगभग 100 प्रजातियां पाई जाती हैं. रोपाई के समय गड्ढे में गोबर की खाद और कीटनाशक डालना पौधे की अच्छी बढ़त के लिए ज़रूरी है, और शुरुआती 2-3 साल तक सिंचाई भी करनी पड़ती है.

एक एकड़ में आमतौर पर 5x4 मीटर की दूरी रखते हुए लगभग 400 से 500 पौधे लगाए जाते हैं. चूंकि बांस को तैयार होने में 4-5 साल लगते हैं, इस बीच किसान खाली जगह में अदरक, हल्दी, या छाया में उगने वाले फूलों जैसी अतिरिक्त फसलें लगाकर भी कमाई कर सकते हैं. पांचवें साल से बांस का बाग कटाई के लिए तैयार हो जाता है, जिसके बाद हर साल कटाई करके नियमित आमदनी की जा सकती है. 

1 एकड़ में बांस की खेती की लागत

आइए जानते हैं कि अगर आप 1 एकड़ खेत में बांस लगाते हैं तो आपको कितना खर्च करना होगा और कितनी कमाई हो सकती है. इसमें कुल शुरुआती निवेश लगभग 60,000 से 95,000 रुपये प्रति एकड़ तक आता है. इस लागत में मुख्य रूप से पौधों का खर्च शामिल है. एक एकड़ में लगभग 400 से 500 पौधे लगते हैं और 50 से 100 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से यह खर्च 25,000 से 50,000 रुपये तक पहुंच जाता है. शेष, खेत तैयार करने, गड्ढे खोदने और पौधे लगाने की मजदूरी पर खर्च आता है. साथ ही, शुरुआती 3 सालों में खाद और उर्वरक पर खर्च लगता है. राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) के तहत सरकार बांस की खेती के लिए किसानों को आर्थिक मदद देती है. पौधे की लागत पर 50 परसेंट तक की सब्सिडी मिल सकती है, जिससे आपकी शुरुआती लागत काफी कम हो जाती है.

बांस उगाएं, लाखों का मुनाफा पाएं

बांस की खेती से पैदावार और आमदनी पांचवें साल से शुरू हो जाती है, जब यह कटाई के लिए तैयार होता है. पांचवें साल के बाद, एक एकड़ से हर साल लगभग 15 से 20 टन बांस की पैदावार होती है. बांस का बाजार भाव क्वालिटी और जगह के अनुसार 3,000 से 5,000 रुपये प्रति टन तक रहता है. ऐसे में अगर 4,000 रुपये प्रति टन का औसत भाव और 15 टन की पैदावार भी मानें तो सालाना कमाई 60,000 रुपये से शुरू हो सकती है. सबसे खास बात यह है कि समय के साथ पैदावार बढ़ती है, और आठवें-नौवें साल तक यही सालाना कमाई बढ़कर 1,00,000 रुपये प्रति एकड़ या उससे भी अधिक हो सकती है. यह एक लंबी अवधि का निवेश है. शुरुआती 4 साल आपको धैर्य रखना होगा, लेकिन एक बार जब आमदनी शुरू हो जाती है, तो यह बिना किसी खास मेहनत के कई दशकों तक चलती रहती है. यह उन किसानों के लिए एक शानदार विकल्प है जो अपनी खाली या कम उपजाऊ जमीन से एक स्थिर आय चाहते हैं.

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