इन दिनों खेत में रबी सीजन की दलहनी फसलें जैसे- चना, मसूर, मटर, उड़द, मूंग, राजमा आदि लगी हुई हैं. जनवरी-फरवरी महीने में मौसम में बदलाव समेत कई कारणों से इन फसलों में रोगों और कीटों का खतरा रहता है. ऐसे में इनसे फसल का बचाव करना जरूरी है, नहीं तो फसल पूरी तरह चौपट हो सकती है या उत्पादन प्रभावित हो सकता है. झारखंड कृषि विभाग ने किसानों को अपनी दलहन फसल बचाने के लिए सलाह जारी की है. किसान इनकी पहचान कर नुकसान से बच सकते हैं.
दलहन फसलों में लगने वाला जड़ और कॉलर सड़न रोग पौधों के जड़ वाले हिस्से और इसके ऊपर तने वाले हिस्से पर हमला करता है. पौधों को बीच से फाड़कर देखने पर इसके नीचे भीतरी ऊतक काले पड़ जाते हैं. इस बीमारी से बचाव उपचारित बीज का इस्तेमाल करके किया जा सकता है. इसके लिए ट्राईकोडरमा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित करके बुआई करने पर बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है.
वहीं, अगर फसल में रोग के लक्षण दिखने पर शुरुआती अवस्था में ही कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 घुलनशील चूर्ण का घोल बनाकर जड़ वाले इलाके में छिड़काव किया जा सकता है. इसका घोल तैयार करने के लिए इसकी प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम मात्रा मिलाएं. इसके अलावा 2 ग्राम के हिसाब से कैप्टान 70 प्रतिशत + हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत डब्लू. पी. का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ों में छिड़काव कर सकते हैं.
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पौधों में ज्यादा वानस्पतिक वृद्धि, मिट्टी में ज्यादा नमी बढ़ने और तापमान बहुत घट जाने से हरदा रोग लग जाता है. रोग लगने पर पौधे की पत्तियों, तना, टहनियों और फलियों पर गोलाकार प्यालीनुमा सफेद और भूरे रंग के फफोले बन जाते हैं. अगले चरण में तने पर पड़े फफाेले काले होने वर पौधा सूख जाता है. यह रोग बेहद ही घातक है, जो सीधे तौर पर उत्पादन को प्रभावित करता है. इसके लक्षण दिखते ही तुरंत उपचार करें.
हालांकि, उपचारित बीज का इस्तेमाल करने वाले किसानों को इस बीमारी से नहीं घबराना चाहिए. हरदा रोग से बचाव के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित बुआई करनी चाहिए. या फिर बुआई से पहले राइजोबियम कल्चर के 20 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करके भी बुआई की जा सकती है. वहीं, अगर आपकी दलहन फसल हरदा रोग की चपेट में आ गई है तो कार्बेन्डाजिम और मैन्कोजेब का 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करके इससे फसल को बचाया जा सकता है.
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