
देश का सबसे बड़ा सरसों उत्पादक राज्य राजस्थान न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर सरसों खरीद के मामले में फिसड्डी साबित हो रहा है. अब तक सभी राज्यों को मिलाकर 2.34 लाख मीट्रिक टन सरसों की सरकारी खरीद हो चुकी है. जिसमें से राजस्थान का योगदान महज 9255 मीट्रिक टन ही है. जबकि 48.2 फीसदी उत्पादन अकेले यहीं होता है. देश भर में 1.15 लाख से ज्यादा किसान एमएसपी पर सरसों बेच चुके हैं लेकिन, इसमें राजस्थान के सिर्फ 4232 किसान ही शामिल हैं. यहां पर खरीद इतनी कम तब है जब पूरे राज्य में किसान इसकी एमएसपी के लिए आंदोलन कर रहे हैं. इसी छह अप्रैल को ही दिल्ली के जंतर-मंतर पर वहां के 101 किसानों ने सरसों सत्याग्रह किया था, ताकि सरसों की खरीद एमएसपी पर हो सके.
दरअसल, पिछले दो साल से किसानों को ओपन मार्केट में सरसों का एमएसपी से अधिक भाव मिल रहा था. इसलिए वो सरकार को बिक्री नहीं कर रहे थे. व्यापारी उनसे सीधे खरीद कर रहे थे. लेकिन इस बार ओपन मार्केट में सरसों का भाव 4500 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है, जबकि रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए इसका एमएसपी 5450 रुपये तय की गई है. ऐसे में ज्यादातर किसान सरकार को सरसों बेचना चाह रहे हैं. लेकिन, सूबे में 20 दिन से हो रही खरीद बता रही है कि यहां किसानों को कैसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सोचिए राजस्थान में 15,19,318 मीट्रिक टन सरसों की खरीद का लक्ष्य है, और अभी 10 हजार मीट्रिक टन का भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है.
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एमएसपी पर सरसों की खरीद करवाने के लिए सरसों सत्याग्रह करवा चुके किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल का कहना है कि राज्य सरकार सरसों की खरीद ही नहीं करना चाहती. खरीद की मंशा होती तो न किसान परेशान होते और न इतनी कम खरीद हुई होती. हमें पता चला है कि माल उठाई, लदाई और वेयरहाउस तक पहुंचाने की व्यवस्था में दिक्कत है, जिसकी वजह से ऐसा हाल हो रहा है. कई सेंटर शुरू तक नहीं हुए हैं. तिलहन उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर नहीं है. इसके बावजूद वो किसान परेशान हैं जो सबसे ज्यादा सरसों उत्पादन करके भारत के डॉलर को खाद्य तेलों के लिए बाहर जाने से बचाने में मदद करते हैं.
पिछले साल 7500 रुपये प्रति क्विंटल तक के भाव पर सरसों बिक रही थी. जबकि इस साल दाम 4500 रुपये के स्तर तक आ गया है. किसान एक ही साल में 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक की गिरावट का नुकसान झेल रहे हैं. राजस्थान और हरियाणा की ज्यादातर मंडियों में सरसों का दाम 3200 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल तक का भाव चल रहा है. इसके बावजूद सरकार उसे एमएसपी पर भी नहीं खरीद रही है. यहां पर राजस्थान स्टेट कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (RAJFED) के पास खरीद का जिम्मा है.
इस बारे में जब 'किसान तक' ने राजफेड की एमडी उर्मिला राजौरिया से बात की तो उन्होंने माना कि अभी तक सरसों की खरीद कम हुई है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अगले सप्ताह तक खरीद में तेजी आ जाएगी. राजौरिया के मुताबिक पहले ऐसी व्यवस्था थी कि किसानों को टोकन मिलने के एक सप्ताह के अंदर आकर मंडी में अपनी फसल एमएसपी पर बेचनी होती थी, लेकिन किसानों के हित में अब यह टाइम लिमिट हटा दी गई है. अब रजिस्टर्ड किसान पूरे सीजन में आकर कभी भी उपज बेच सकता है. सूबे में 54128 किसानों ने एमएसपी पर सरसों बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है.
टोंक कृषि उपज मंडी में ग्राम डोडवाड़ी के गोपीलाल अपनी सरसों बेचने गए थे, लेकिन खरीद नहीं हुई. लिहाजा वो उसे बोरियों में वापस भरकर ले गए. इससे परिवहन और पल्लेदारों पर 350 रुपये खर्च करने पड़े. गांव में गुस्सा उत्पन्न हुआ. गुस्साए किसानों ने डोडवाडी गांव की सभा रखी. जिसे किसान महापंचायत के युवा प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर चौधरी ने संबोधित किया. ग्राम वासियों ने सर्वसम्मति से 5 दिन तक अपनी उपज मंडियों में नहीं ले जाने का निर्णय लिया. उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर सरसों बिक्री का विरोध किया.
सरसों उत्पादन में हरियाणा देश में तीसरे स्थान पर है. यहां देश की 13.1 फीसदी सरसों पैदा होती है. लेकिन खरीद के मामले यह सबसे आगे है. अब तक यहां पर 1,89,633 मीट्रिक टन सरसों खरीदी जा चुकी है. यहां पर 20 मार्च से ही खरीद चल रही है. देश में कुल सरसों खरीद के एमएसपी की वैल्यू 1275.31 करोड़ रुपये की है, जिसमें से 1033.50 करोड़ रुपये अकेले हरियाणा के हिस्से में आएंगे.
देश के कुल सरसों उत्पादन में 13.3 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ मध्य प्रदेश इस मामले में दूसरे स्थान पर है. यहां अब तक 18173.41 मीट्रिक टन सरसों ही खरीदा जा सका है. दूसरी ओर गुजरात सिर्फ 4.2 फीसदी सरसों उत्पादन करता है. इसके बावजूद वहां खरीद तेज है. वहां पर अब तक 16928.81 मीट्रिक टन की खरीद हो चुकी है.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि केंद्र सरकार की खरीद पॉलिसी किसान विरोधी है. सरकार ने ऐसी पॉलिसी बनाई है जिसके तहत कुल सरसों उत्पादन में से 75 फीसदी उपज एमएसपी की खरीद परिधि से बाहर हो जाती है. यानी तिलहन फसलों की अधिकतम सरकारी खरीद कुल उत्पादन की सिर्फ 25 फीसदी ही हो सकती है. एक दिन में एक किसान से 25 क्विंटल से अधिक बिक्री नहीं कर सकते. रबी फसल वर्ष 2022-23 में सरकार ने 128.18 लाख मीट्रिक टन सरसों उत्पादन का अनुमान लगाया है, जो अब तक का सर्वाधिक है.
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