देशभर में रबी सीजन की प्रमुख फसलों में से एक चना की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है. वही चना भारत की सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसलों में से एक है. चने की खेती करने वाले किसानों को फसल संरक्षण पर विशेष ध्यान देना पड़ता है. दरअसल, चने की फसल में फली छेदक कीट लगने की संभावना बहुत ज्यादा होती है. इसकी वजह से पैदावार में लगभग 50 से 60 प्रतिशत की गिरावट आती है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार अगर सही समय पर लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो इसके वजह से होने वाले नुकसान से किसान बच सकते हैं. ऐसे में आइये आज चने की फसल में लगने वाले फली छेदक कीट से बचाव के बारे में विस्तार से जानते हैं-
फली छेदक कीट की सूंडी नवंबर माह से लेकर मार्च माह तक चने की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं. शुरुआती दौर में फली छेदक कीट चने के कोमल पत्तियों एवं टहनीयों को खाती हैं, लेकिन बाद में पौध में फल आने पर छेद करके फलियों को खोखली कर देती हैं, जिससे चने की फसल को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचाती है. फली छेदक कीट की वजह से पैदावार में लगभग 50 से 60 प्रतिशत की गिरावट आती है.
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फली छेदक कीट चने के अलावा अरहर, मटर, अन्य कृषि और बागवानी फसलों को भी नुकसान पहुंचाती है. वही चने के फसल में फली छेदक कीट से बचाव के लिए किसानों को 10 फेरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर एन.पी. टी 250 एल.इ. या नोवाल्यूरोन 10 ई.सी. का अनुशंसित मात्रा में पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए.
भारत, पाकिस्तान, इथियोपिया, बर्मा और तुर्की मुख्य चना उत्पादक देश हैं. हालांकि, भारत उत्पादन और रकबे के मामले में दुनिया में पहले स्थान पर है और उसके बाद पाकिस्तान का स्थान है. वही भारत में, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब राज्य में चने की खेती प्रमुख रूप से की जाती है.
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चने का उपयोग मानव उपभोग के साथ-साथ पशुओं को खिलाने के लिए भी किया जाता है. ताजी हरी पत्तियों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है, जबकि चने की भूसी पशुओं के लिए चारे के रूप में किया जाता है. अनाज का उपयोग सब्जी के रूप में भी किया जाता है.
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