जम्मू कश्मीर में लंबे इंतजार के बाद आखिरकार बारिश हो ही गई, लेकिन वह कहते हैं 'का वर्षा जब कृषि सुखाने,' घाटी में इन दिनों यही कहावत सच होती नजर आ रही है. लंबे समय तक पड़ी भीषण गर्मी और सूखे ने फल किसानों के लिए नई चिंता पैदा कर दी है. उनकी मानें तो मौजूदा मौसम की स्थिति ने इस साल के फल सीजन के लिए खतरा पैदा कर रही है. फल, जम्मू कश्मीर में खासतौर पर कश्मीर घाटी में आजीविका और आर्थिक मजबूती का एक अहम स्त्रोत है.
पिछले दो महीनों में, कश्मीर में शुष्क और गर्म मौसम की स्थिति रही है. इसकी वजह से घाटी में सेब के बागों और बाकी फलदार पेड़ों पर बुरा असर पड़ा है. विशेषज्ञों और बागवानों को न सिर्फ फसल के नुकसान की आशंका है बल्कि लंबे समय में भी इसके नतीजे देखने को मिल सकते हैं. उन्हें डर है कि गर्मी और शुष्क मौसम के चलते उपज और गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ने वाला है.
दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के एक बागवान मोहम्मद यूसुफ भट ने कहा कि बारिश न होने से पेड़ों पर भारी दबाव पड़ा है. उन्होंने कहा, 'पिछले दो महीनों से बारिश नहीं हुई थी. बिना पानी और तेज धूप की वजह से फल गिर गए. वहीं फलों के छिलके भी खराब हो गए हैं और कुल मिलाकर क्वालिटी खराब हो गई है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो इससे हमारी आय में भारी कमी आएगी.'
भट जैसे बाकी उत्पादक, जो सिंचाई के लिए पूरी तरह से बारिश के पानी पर निर्भर हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. भट ने आगे कहा, 'हमारे पास सिंचाई की सुविधा नहीं है. हमारे बाग बारिश पर निर्भर हैं. यह सूखा हमारे पूरे मौसम को बर्बाद कर सकता था लेकिन फिलहाल बारिश से थोड़ी राहत की उम्मीद है. बागवानी वैज्ञानिक जाविद अहमद की मानें तो बढ़ते तापमान से सेब के पेड़ों पर, खासकर उन इलाकों में जहां सिंचाई का कोई बुनियादी ढांचा नहीं है, तनाव बढ़ गया है. अहमद ने कहा कि किसान पहले से ही छोटे आकार के सेब, धूप से झुलसे सेब और फलों के गिरने की जानकारी दे रहे थे. उन्होंने बताय कि नमी की कमी से न सिर्फ उपज कम होती है, बल्कि अगले मौसम में पेड़ के फल देने की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है.
कश्मीर सालाना 20 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा सेब पैदा करता है. कभी-कभी तो आंकड़ा 25 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच जाता है. ज्यादा गर्मी की वजह से इस उद्योग को झटका लग सकता है और पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है. कश्मीर घाटी फल उत्पादक सह विक्रेता संघ के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर ने कहा कि खराब गुणवत्ता और छोटे आकार के कारण फलों को राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अच्छी कीमत नहीं मिलेगी. उनका कहना था कि भारतीय बाजारों में पहले से ही आयातित सेब एक बड़ी चुनौती बन चुके हैं. ऐसे में अगर घाटी के फलों की चमक और आकार कम हो गया, तो उत्पादक टिक नहीं पाएंगे.
कश्मीर के करीब 60 फीसदी बाग बारिश पर ही निर्भर है इससे ज्यादातर किसान बदलते मौसम के लिए बेहद संवेदनशील हो जाते हैं. विशेषज्ञों ने मांग की है कि बागानों में ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी उचित सिंचाई सुविधाओं की सख्त जरूरत है. साल 2017 के जम्मू-कश्मीर आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, कश्मीर में 3.5 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सेब की खेती होती है, जबकि कश्मीर की 50 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर बागवानी पर निर्भर है.
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