Paddy Farming: उत्‍पादन बढ़ा लेकिन मुनाफा घटा! तेलंगाना के धान किसानों के साथ यह कैसा मजाक 

Paddy Farming: उत्‍पादन बढ़ा लेकिन मुनाफा घटा! तेलंगाना के धान किसानों के साथ यह कैसा मजाक 

Paddy Farming: फसल निवेश और हर साल होने वाले फायदे के बीच का अंतर कम होता जा रहा है. औसत फसल निवेश 25,000 रुपये प्रति एकड़ तक होता है, जबकि शुद्ध लाभ शायद ही कभी 35,000 रुपये प्रति एकड़ से अधिक होता है. मॉनसून की विफलता, कीटों के प्रकोप, या उर्वरक आपूर्ति में देरी, जैसे कि यूरिया की वर्तमान कमी, की स्थिति में किसानों को उच्च लागत, बढ़ते कर्ज और वित्तीय तनाव का सामना करना पड़ता है.

Advertisement
Paddy Farming: उत्‍पादन बढ़ा लेकिन मुनाफा घटा! तेलंगाना के धान किसानों के साथ यह कैसा मजाक Telangana Farmers: रिकॉर्ड उत्‍पादन के बाद भी क्‍यों तेलंगाना के किसान हैं परेशान

तेलंगाना धान उत्पादन में एक बड़ा केंद्र बनकर सामने आया है. साल 2015-16 और 2023-24 के बीच राज्‍य चावल उत्पादन में देश में नंबर वन रहा है. राज्य में संचालित सरकारी योजनाओं और पर्याप्‍त सिंचाई सुविधाओं की बदौलत, धान का उत्पादन 2014-15 के 68.17 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 270.88 लाख टन हो गया. लेकिन इस विकास की कहानी में किसानों का पक्ष काफी चिंताजनक है. कई किसानों के लिए, धान अब फायदेमंद फसल नहीं रही है और उन्‍हें इससे कोई लाभ नहीं हो रहा है. 

निवेश और मुनाफे का अंतर हुआ कम 

विशेषज्ञों की मानें तो फसल निवेश और हर साल होने वाले फायदे के बीच का अंतर कम होता जा रहा है. औसत फसल निवेश 25,000 रुपये प्रति एकड़ तक होता है, जबकि शुद्ध लाभ शायद ही कभी 35,000 रुपये प्रति एकड़ से अधिक होता है. मॉनसून की विफलता, कीटों के प्रकोप, या उर्वरक आपूर्ति में देरी, जैसे कि यूरिया की वर्तमान कमी, की स्थिति में किसानों को उच्च लागत, बढ़ते कर्ज और वित्तीय तनाव का सामना करना पड़ता है.

इसकी वजह से किसान आत्महत्याओं में इजाफा हो रहा है. बढ़ते निवेश और घटते मुनाफे के बीच बढ़ता अंतर इस धान-प्रधान क्षेत्र को एक अनिश्चित स्थिति की ओर धकेल रहा है. सरकारी स्तर पर भी, खरीद से जुड़ी समस्याओं के कारण किसानों से खरीदा गया स्टॉक बढ़ता जा रहा है. 

बीज, उर्वरक सब महंगे 

वादा किए गए प्रोत्साहनों के भुगतान में देरी और उत्तम किस्मों को क्‍लासीफाइड करने की जटिल प्रक्रिया ने पूरे तेलंगाना के किसानों को अपना हक पाने के लिए संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया है. बीज और उर्वरक से लेकर कीटनाशकों और श्रम तक, खेती से जुड़ी लागतें लगातार बढ़ रही हैं. बाजार मूल्यों में अस्थिरता और खरीद प्रक्रिया में विसंगतियां किसानों के लिए अनिश्चितता को और बढ़ा रही हैं. हालांकि सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर धान खरीदने का वादा किया है, लेकिन खरीद प्रक्रिया में देरी किसानों का भरोसा कम कर रही है. 

धान की खेती का रकबा (खरीफ और रबी दोनों मौसमों में) अभूतपूर्व रूप से बढ़ा है, जो 2014-15 में करीब 35 लाख एकड़ से बढ़कर 2023-24 में 157.10 लाख एकड़ हो गया है. इस साल भी उत्‍पादन में पर्याप्त वृद्धि की उम्मीद है. एक किसान केवीएनएल नरसिम्हा राव ने तेलंगाना टुडे को बताया कि उनके पास 60 एकड़ पुश्तैनी जमीन है. लेकिन दुख की बात यह है कि उन्‍हें खेती जारी रखनी होगी क्योंकि हम जमीन को खाली नहीं छोड़ सकते. 

महंगी मजदूरी ने बढ़ाई चिंता 

खेतिहर मजदूरों की कमी है, स्थानीय मजदूर 600 से 700 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी करते हैं. बड़े किसान अक्सर ओडिशा, बिहार और झारखंड से 350 से 450 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरों को काम पर रखते हैं. विशेषज्ञ और किसान संघ धान के अस्थिर बाजार और उच्च खेती लागत से जुड़े जोखिमों को कम करने के संभावित समाधान के रूप में फसल विविधीकरण की वकालत कर रहे हैं. 

यह भी पढ़ें- 

POST A COMMENT