
केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाले काला नमक चावल (Kala Namak Rice) के एक्सपोर्ट की अनुमति दे दी है. हालांकि इसकी अधिकतम लिमिट 1000 मीट्रिक टन तय की गई है. गैर बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट बैन के बीच काला नमक उगाने वालों के लिए यह बड़ी खुशखबरी है. केंद्र सरकार ने गैर बासमती सफेद चावल के ही एचएस कोड (Harmonized System Code) में इसके एक्सपोर्ट की अनुमति दी है. गैर बासमती सफेद चावल के चक्कर में ही इसका एक्सपोर्ट भी बैन हुआ था. एक तरफ ज्यादा भाव और पीडीएस में शामिल न होने की वजह से बासमती चावल का एक्सपोर्ट बैन नहीं किया गया था तो दूसरी ओर गैर बासमती सफेद चावल एक्सपोर्ट के नाम पर विशेष खुशबूदार चावलों के निर्यात पर भी रोक लगा दी गई है. जिनमें काला नमक भी शामिल था.
केंद्र सरकार ने 20 जुलाई 2023 को गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाया हुआ है. ताकि घरेलू बाजार में महंगाई न बढ़े. लेकिन काला नमक चावल की खेती करने वाले किसान लगातार यह कह रहे थे कि यह एक प्रीमियम चावल है, इसका दाम 100 रुपये प्रति किलो से ज्यादा है, इसलिए इसके एक्सपोर्ट को उसी तरह से बैन नहीं करना चाहिए जिस तरह से प्रीमियम चावल होने की वजह से बासमती के एक्सपोर्ट को बैन नहीं किया गया है. लेकिन इसका अलग एचएस (हार्मोनाइज्ड सिस्टम) कोड न होने की वजह से गैर बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट बैन की चक्की में यह भी पिस गया था. लेकिन अब उसके बाद पहली बार इसे शर्तों के साथ एक्सपोर्ट की अनुमति दी गई है.
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काला नमक राइस पर लंबे समय से रिसर्च करने वाले पद्मश्री रामचेत चौधरी ने लगातार इस बात को उठाया कि जो भी प्रीमियम और सुगंधित चावल हैं उनका अलग एचएस कोड बनना चाहिए. ताकि वो गैर बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट बैन के साथ न पिसें. अभी काला नमक का अलग एचएस कोड तो नहीं बना है, लेकिन 1000 मीट्रिक टन के एक्सपोर्ट की अनुमति मिल गई. चौधरी ने 'किसान तक' से बातचीत में खुशी जाहिर करते हुए कहा कि अभी हमने पहली लड़ाई जीती है. काला नमक चावल का अलग एचएस कोड बनाने की मांग जारी रहेगी. फिलहाल केंद्र के इस फैसले से पूर्वी यूपी के किसानों को काफी फायदा मिलेगा. एक्सपोर्ट होने से उन्हें सही दाम मिलेगा.
डायरेक्टर जनरल ऑफ़ फॉरेन ट्रेड की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि एक हजार मीट्रिक टन से अधिक काला नमक चावल के निर्यात की अनुमति नहीं है. काला नमक चावल एवं उसकी मात्रा के प्रमाणीकरण के लिए कृषि मार्केटिंग एवं विदेश व्यापार, निदेशक, लखनऊ को जिम्मेदारी दी गई है. इसका एक्सपोर्ट 6 जगहों से होगा. जिनमें वाराणसी एयर कार्गो, जवाहरलाल नेहरू कस्टम हाउस महाराष्ट्र, कांडला, गुजरात, एलसीएस नेपालगंज रोड, एलसीएस सोनौली और एलसीएस बढ़नी शामिल हैं.
पूर्वांचल के 11 जिलों को काला नमक चावल का जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग यानी जीआई टैग मिला हुआ है. इनमें सिद्धार्थनगर प्रमुख है, जहां से इसकी उत्पत्ति मानी जाती है. इसके अलावा गोरखपुर, कुशीनगर, संत कबीरनगर, बस्ती, महराजगंज, देवरिया, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा और बाराबंकी इस लिस्ट में शामिल हैं. उत्तर प्रदेश सरकार इसे बासमती की तरह प्रमोट करके किसानों की आय बढ़ाने की कोशिश में जुटी हुई है.
संयुक्त राष्ट्र संघ के फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (FAO) में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रह चुके प्रो. चौधरी का कहना है कि गुणवत्ता और धार्मिक पहचान की वजह से इस चावल में एक्सपोर्ट की काफी संभावनाएं हैं. क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से गौतम बुद्ध से जुड़ा हुआ है. इसलिए इसके कंबोडिया, भूटान, जापान, ताइवान, सिंगापुर, श्रीलंका, थाइलैंड और म्यांमार जैसे देशों में एक्सपोर्ट होने की काफी संभावना है, जहां बौद्ध धर्म के अनुयायी ज्यादा हैं.
यह एक सुगंधित चावल है. जिसे बुद्धा राइस भी कहते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसकी खेती गौतम बुद्ध के समय सिद्धार्थनगर में शुरू हुई थी. दावा किया जाता है कि यह 2700 साल पुराना ऐतिहासिक चावल है. पूर्वांचल के 11 जिलों को इस चावल का जीआई टैग मिला हुआ है. दावा है कि इसे शुगर रोगी भी खा सकते हैं, क्योंकि इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स सिर्फ 53 है. आमतौर पर सामान्य चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 75 से 80 तक होता है. काला नमक में जिंक की मात्रा ज्यादा होती है.
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