Wheat Crop: गेहूं उपज को 10% तक बढ़ा सकती है यह छोटी सी तकनीक, लागत भी होगी कम

Wheat Crop: गेहूं उपज को 10% तक बढ़ा सकती है यह छोटी सी तकनीक, लागत भी होगी कम

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यूरिया का चरणबद्ध उपयोग, ग्रीन लीफ कलर चार्ट जैसी तकनीकें और फव्वारा विधि से सिंचाई अपनाने पर गेहूं की उपज में 5–10% बढ़ोतरी के साथ पानी और खाद दोनों की बचत संभव है.

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Wheat Crop: गेहूं उपज को 10% तक बढ़ा सकती है यह छोटी सी तकनीक, लागत भी होगी कमसिंपल तकनीक अपनाएं, गेहूं की उपज बढ़ाएं

गेहूं में बंपर पैदावार हासिल करने के लिए केवल समय पर बुवाई करना पर्याप्त नहीं है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, खड़ी फसल में उर्वरकों और सिंचाई का वैज्ञानिक प्रबंधन ही अधिक उत्पादन की कुंजी है. अक्सर किसान बुवाई के समय फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग तो करते हैं, लेकिन यूरिया के सही प्रबंधन में चूक कर जाते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि नाइट्रोजन का पूरा प्रयोग बुवाई के समय नहीं करना चाहिए, बल्कि पहली और दूसरी सिंचाई के समय इसे आधी–आधी मात्रा में बांटकर देना सबसे लाभकारी होता है.

नई कृषि शोधों में यह भी सामने आया है कि सिंचाई से ठीक पहले यूरिया का छिड़काव करने से खाद सीधे जड़ों तक पहुंचती है और वाष्पीकरण से होने वाले नुकसान में कमी आती है. इस तकनीक से उपज में 5 से 10 प्रतिशत तक बढ़ोतरी संभव है.

लीफ कलर चार्ट से फायदा

तकनीक आधारित खेती के दौर में किसान खाद की सही मात्रा तय करने के लिए ग्रीन लीफ कलर चार्ट (GLCC) और न्यूट्रिएंट एक्सपर्ट सॉफ्टवेयर जैसे उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं. ये तकनीकें पत्तियों का रंग और पौधे की स्थिति देखकर यह बताती हैं कि फसल को वास्तव में कितनी नाइट्रोजन की जरूरत है. इससे किसान अनावश्यक खाद डालने से बच जाते हैं और प्रति हेक्टेयर 20–25 किलोग्राम यूरिया की बचत की जा सकती है.

रासायनिक खादों पर निर्भरता कम करने और मिट्टी की क्वालिटी बनाए रखने के लिए विशेषज्ञ समेकित उर्वरक प्रबंधन की सलाह देते हैं, जिसमें रासायनिक खादों के साथ गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट और हरी खाद का संतुलित उपयोग शामिल है.

सिंचाई तकनीक का सही इस्तेमाल

सिंचाई तकनीक भी उत्पादन पर बड़ा असर डालती है. परंपरागत फ्लड इरिगेशन में पानी की भारी बर्बादी होती है और कई बार अधिक नमी से फसल पीली पड़ने लगती है. इसके विपरीत, फव्वारा (स्प्रिंकलर) विधि न केवल पानी की 40–50% बचत करती है, बल्कि इससे दाने भी अधिक भराव वाले और चमकदार बनते हैं. जहां परंपरागत सिंचाई में पानी उपयोग दक्षता 30–40% है, वहीं सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों में यह 80–90% तक पहुंच जाती है. जल scarcity वाले क्षेत्रों के लिए यह तकनीक वरदान मानी जा रही है.

केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का उद्देश्य भी “प्रति बूंद, अधिक फसल” को बढ़ावा देना है. इसके तहत किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर लगाने पर भारी सब्सिडी उपलब्ध कराई जा रही है.

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि संतुलित खाद, मिट्टी परीक्षण आधारित उर्वरक प्रबंधन और आधुनिक सिंचाई तकनीकों का समन्वित उपयोग ही गेहूं उत्पादन को लाभदायक बनाने का सबसे प्रभावी तरीका है. इन वैज्ञानिक उपायों को अपनाकर किसान कम लागत में अधिक और बेहतर क्वालिटी का उत्पादन हासिल कर सकते हैं.

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