किसानों की स्थिति सुधारने के लिए केंद्र सरकार ने 18 नवंबर 2004 को एक राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था. जिसके अध्यक्ष मशहूर कृषि विज्ञानी एमएस स्वामीनाथन थे. इसलिए यह 'स्वामीनाथन कमीशन' के नाम से लोकप्रिय हो गया. इस आयोग ने 4 अक्टूबर 2006 अपनी रिपोर्ट तत्कालीन सरकार को सौंप दी थी. लेकिन अब तक इस आयोग की रिपोर्ट पूरी तरह से लागू नहीं हो सकी है. तत्कालीन कांग्रेस सरकार इसे दबाकर बैठी रही. उसके बाद बीजेपी सरकार ने इसे काफी हद तक लागू किया. हालांकि, जिस फार्मूले पर यह आयोग किसानों को एमएसपी देने की बात करता है उस पर एमएसपी नहीं दिया. किसान जिन 12 मांगों को लेकर 13 फरवरी से आंदोलन कर रहे हैं उनमें से एक मांग सी-2 लागत पर एमएसपी देने की भी है. जिसकी सिफारिश एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले आयोग ने की थी. जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने का एलान किया गया है.
वर्तमान में केंद्र सरकार स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर लागत का 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एमएसपी जरूर तय कर रही है. लेकिन उसका लागत तय करने का आधार ए-2+एफएल फार्मूला है, जबकि किसान संगठन लंबे समय से सी-2 लागत की मांग कर रहे हैं, जिसकी सिफारिश स्वामीनाथन ने की थी. दोनों लागत में काफी अंतर है. अगर सी-2 लागत के आधार पर 50 फीसदी रिटर्न जोड़कर एमएसपी तय हो तो किसानों के हाथ में ज्यादा पैसा आएगा. इसीलिए किसान इसकी मांग को लेकर सड़क पर उतरे हुए हैं.
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अगर किसानों को सी-2 लागत के आधार पर एमएसपी मिलने लगे तो फिर किसानों को कितना अधिक पैसा मिलेगा इसे लेकर हमने 14 प्रमुख फसलों का लेखाजोखा दिया है. इससे पहले हम यह समझते हैं कि लागत तय करने के तीन फार्मूले कौन-कौन से हैं और क्यों सी-2 लागत ही किसानों को स्वीकार है.
किसान संगठन खेती की संपूर्ण लागत यानी (C-2+50 फीसदी) पर आधारित फसलों का एमएसपी देने की मांग कर रहे हैं. संयोग से अब किसान आंदोलन को हवा दे रही कांग्रेस अपने शासन में इसे लागू करने के लिए राजी नहीं थी. जबकि उसी के शासन में इस आयोग का गठन किया गया था और उसी के शासनकाल में इसकी रिपोर्ट सौंपी गई थी. तब बीजेपी किसानों से वादा कर रही थी कि सत्ता में आने पर वो इस आयोग की सिफारिशों को लागू करेगी.
बीजेपी सत्ता में आई तो इसकी अधिकांश सिफारिशों को लागू किया गया, लेकिन दाम के मुद्दे पर उसने भी कदम आगे नहीं बढ़ाए. यानी इस आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से देश में कभी भी फसलों का दाम तय नहीं किया गया. हालांकि, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) ने अपनी रिपोर्ट में ए-2+एफएल लागत के साथ-साथ सी-2 लागत का भी जिक्र किया हुआ है.
बीजेपी दावा करती है कि उसने स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू कर दी है. लेकिन राष्ट्रीय किसान आयोग के पहले अध्यक्ष रह चुके सोमपाल शास्त्री इस दावे से सहमत नहीं हैं. शास्त्री वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री भी रह चुके हैं. उनका कहना है कि कमीशन की रिपोर्ट उसकी मूल भावना के साथ लागू नहीं की गई है.आयोग कहता है कि किसानों को सी-2 फार्मूले पर डेढ़ गुना दाम मिलना चाहिए. जबकि सरकार ए-2+एफएल फार्मूले के आधार पर एमएसपी दे रही है. सही फार्मूले से एमएसपी मिले तो किसानों की आय बढ़ेगी.
कृषि सुधार के लिए मोदी सरकार की ओर से गठित कमेटी के सदस्य बिनोद आनंद का कहना है कि एमएस स्वामीनाथन कृषि अर्थशास्त्री नहीं थे बल्कि वो दुनिया के जाने-माने जेनेटिक इंजीनियर थे. देश में हरित क्रांति लाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है. लेकिन जहां तक राष्ट्रीय किसान आयोग का सवाल है तो यह आयेाग सोमपाल शास्त्री की अध्यक्षता में वाजपेशी सरकार में बना था. लेकिन, कांग्रेस की सरकार आने के बाद इसके चेयरमैन एमएस स्वामीनाथन को बना दिया गया. स्वामीनाथन फार्मूला बेहद पेचदा है. विकसित भारत की वर्तमान संकल्पला में यह पूरी तरह से अनफिट है.
आनंद का कहना है कि अगर आज कांग्रेस और राहुल गांधी किसान आंदोलन को हवा दे रहे हैं तो वो बताएं कि 2006 में रिपोर्ट आने के बाद उनकी पार्टी की सरकार ने इसे क्यों लागू नहीं किया. जबकि तब तो जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. किसानों को यह सवाल कांग्रेस और उसका सहयोग कर रहीं दूसरी पार्टियों से जरूर पूछना चाहिए.
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