आंध्र में फसलों की पैदावार बढ़ाएगी ढैंचा की ये किस्म, HAU ने तैयार की वैरायटी

आंध्र में फसलों की पैदावार बढ़ाएगी ढैंचा की ये किस्म, HAU ने तैयार की वैरायटी

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय कि तैयार की गई ढैंचा की खेती अब आंध्र प्रदेश के किसान भी करेंगे. विश्वविद्यालय ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत तकनीकी व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए ढैंचा के बीच के लिए आंध्र प्रदेश के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है. 

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आंध्र में फसलों की पैदावार बढ़ाएगी ढैंचा की ये किस्म, HAU ने तैयार की वैरायटीHAU ने तैयार की ढैंचा की वैरायटी

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय कि ओर से विकसित किए गए उन्नत किस्मों के बीज देश भर में अपना परचम लहरा रहे हैं. विश्वविद्यालय के उन्नत बीजों का देश में प्रचार-प्रसार करने के लिए अलग-अलग सरकारी और गैर-सरकारी कंपनी के साथ समझौते किए जा रहे हैं. इसी कड़ी में विश्वविद्यालय ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत तकनीकी व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए ढैंचा की डीएच-1 किस्म का मुरलीधर सीड्स कॉरपोरेशन कुरनूल आंध्र प्रदेश के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है.

ढैंचा की खेती किसानों के लिए वरदान

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बताया कि ढैंचा हरी खाद के लिए उगाया जाता है. यह एक दलहनी फसल है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करता है. ढैंचा की खेती मुख्यतः: खरीफ के मौसम में की जाती है और इसे हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है और उर्वरता में सुधार होता है. ढैंचा मिट्टी की संरचना के सुधार में विशेष भूमिका निभाता है.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे शोध और उन्नत किस्मों के बीजों और नई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिए निजी क्षेत्र की कम्पनियों के साथ समझौते किए जा रहे हैं. इससे किसानों और ग्रामीण युवाओं को अतिरिक्त रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं. यह एमओयू आंध्र प्रदेश के किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा.  साथ ही खेती को लाभकारी व्यवसाय बनाने में सहायक सिद्ध होगा. 

ढैंचा नाइट्रोजन की आपूर्ति बढ़ाने में सहायक

कुलपति ने बताया कि वैज्ञानिकों कि ओर से किसानों को कृषि मशीनों, जैविक खेती, सिंचाई तकनीक और फसल प्रबंधन के लिए नई-नई जानकारी दी जा रही है. विश्वविद्यालय किसानों की पैदावार में बढ़ोतरी करने के साथ-साथ उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए भी सदैव प्रयासरत रहता है. उन्होंने बताया कि ढैंचा की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु होते हैं, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को भूमि में स्थिर रखते हैं, जिससे खेत में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है. ढैंचा जैविक पदार्थों में वृद्धि, जमीन की जल धारण क्षमता में बढ़ोतरी, सूक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति और खरपतवार नियंत्रण में भी सहायक है. उन्होंने बताया कि ढैंचा खेत की प्राकृतिक उर्वरता को बढ़ाकर रासायनिक खादों की आवश्यकता को भी कम करता है.

इस कंपनी के साथ हुआ HAU का समझौता

कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज की उपस्थिति में विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एसके पाहुजा ने जबकि मुरलीधर सीड्स कॉरपोरेशन की तरफ से कंपनी के सीईओ मुरलीधर रेड्डी ने हस्ताक्षर किए. गौरतलब, है कि विश्वविद्यालय द्वारा उपरोक्त कंपनी के साथ बाजरे की एचएचबी-67 संशोधित 2 किस्म का उन्नत बीज किसानों तक पहुंचाने के लिए पहले से ही समझौता किया हुआ है.

इस अवसर पर ये अधिकारी रहे मौजूद

इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. पवन कुमार, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. रमेश कुमार, बीज विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ. वीरेन्द्र मोर, आईपीआर सेल के प्रभारी डॉ. योगेश जिंदल, डॉ. राजेश आर्य व डॉ. जितेन्द्र भाटिया उपस्थित रहे.

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