
पुष्कर. एक ऐसा कस्बा जिसका नाम धार्मिक रूप से तो दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन खेती के लिहाज से भी देश में इसका नाम है. जयपुर, दिल्ली और मुंबई सहित लगभग पूरे उत्तर भारत में जो स्वादिष्ट, मीठे और काले जामुन आप इन दिनों खा रहे हैं, बहुत संभव है कि ये जामुन पुष्कर से तीन किलोमीटर दूर एक बेहद छोटे से गांव गनाहेड़ा के किसी बगीचे से टूटकर गए हों. दरअसल, गनाहेड़ा और आसपास के गांवों में जामुन के सैंकड़ों बगीचे हैं. यहां के किसान पारंपरिक फसलें ना लेकर इस जामुन के व्यवसाय में शामिल हैं और संपन्न हैं,लेकिन दुनियाभर में खेती के लिए चुनौती बना क्लाइमेट चेंज से जामुन के किसान भी अछूते नहीं हैं.
गनाहेड़ा में पिछले 50 साल से जामुन के बगीचों के मालिक और बड़े किसान शायर सिंह रावत से किसान तक ने जलवायु परिवर्तन से जामुन के बगीचों पर हो रहे प्रभावों पर विस्तार से बात की. शायर सिंह के छह जामुन के बगीचे हैं. इनमें से चार उनके खुद के हैं और बाकी दो को छह साल के लिए ठेके पर लिया हुआ है.
शायर सिंह कहते हैं, “इस साल फरवरी के महीने से मौसम ने हमारा साथ नहीं दिया है. फरवरी, मार्च, अप्रैल और मई में गर्मी के जगह सर्दी हुई हैं. जमकर बारिश हुई है. इससे जामुन में बारिश से फूल झड़ गया.
दरअसल, जामुन की पेड़ों में फूल को अच्छी तरह से विकसित होने के लिए तापमान ज्यादा चाहिए, लेकिन मई में छह पश्चिमी विक्षोभों ने फूल को विकसित नहीं होने दिया. जून में दो तारीख से पानी, अंधड़ आ चुका है. इससे छोटे आकार के फल झड़ गए हैं. इससे क्षेत्र के किसानों को काफी नुकसान हुआ है.”
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शायर सिंह आगे कहते हैं, “अब जामुन के पेड़ों में फल आ चुके हैं. इसीलिए इन्हें पानी की जरूरत है ताकि जामुन का आकार बढ़े और पानी के कारण मिठास भी बढ़े. लेकिन अब मौसम की भविष्यवाणी ने हमारे माथे पर चिंता ला दी है. खबरों के अनुसार अब अगले कुछ दिनों में भयंकर गर्मी होगी. जब हमें गर्मी की जरूरत थी, तब बारिश हुई थी और अब बारिश की जरूरत है तो गर्मी से जामुन में नुकसान पक्का है.इससे जामुन के फल, आकार और स्वाद में बदलाव हो रहे हैं.”
क्लाइमेट चेंज को समझने के सवाल पर शायर कहते हैं, “क्लाइमेट चेंज जैसी भारी-भरकम शब्द को मैं नहीं समझता, लेकिन इतना समझता हूं कि बीते कुछ सालों से मौसम हमारा साथ नहीं दे रहा. ऋतुएं बदल रही हैं. इससे किसानों को भी बदलने की जरूरत है, लेकिन ग्रामीण स्तर पर उतनी तकनीक हमारे पास नहीं है और ना ही किसी तरह की जागरूकता है.”
शायर बताते हैं कि जामुन का व्यापार तो बढ़ा है, लेकिन इसकी लागत भी काफी बढ़ गई है. गनाहेड़ा में पेड़ों में देने के लिए पानी नहीं है. इसीलिए मैंने दो किलोमीटर दूर से पानी लिफ्ट किया है. बाकी किसानों के पास पानी के साधन नहीं हैं. जामुन तोड़ने के लिए हर बगीचे में 5-7 लोग हैं.
साथ ही इतने ही लोग सार-संभाल के लिए हैं. पेड़ पर चढ़ कर जामुन तोड़ने वालों को रोजाना 500-700 रुपये की मजदूरी दी जाती है. इसके अलावा पेड़ों पर चढ़ने के लिए नसेनी (बांस की सीढ़ी), दवा, बाजार तक ले जाने की लागत अलग से है. जामुन पर भाड़े के अलावा प्रति किलो पर 15 रुपये तक का खर्चा है.
हालांकि इस साल जामुन के भावों से शायर खुश हैं. कहते हैं, “इस साल हमने 150 रुपये किलो तक जामुन बेचा है. आने वाले दिनों में जब सीजन पीक पर होगा तब रेट थोड़ी गिर सकती है. जामुन का व्यवसाय तो फायदे का है, लेकिन मौसम और बढ़ती लागत इस किसानी में सबसे बड़ी मुसीबत बने हुए हैं.”
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पुष्कर की पीसांगन पंचायत समिति की चार ग्राम पंचायतें गनाहेड़ा, तनात, तिलोरा और बासेली में जामुन के कई बड़े-छोटे बगीचे हैं. इन चारों पंचायतों के 18 गांवों में जामुन के बगीचे हैं. इस पूरे क्षेत्र में करीब दो हजार से ज्यादा किसान इसकी किसानी से जुड़े हुए हैं. 20 जून के बाद जामुन का सीजन पीक पर होता है. तब इस क्षेत्र से रोजाना 70 छोटे-बड़े जामुन के ट्रक अलग-अलग शहरों के लिए भेजे जाते हैं.
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