
पूरे भारत में राजस्थान की आम छवि एक सूखे प्रदेश के रूप में है, लेकिन रेगिस्तान में सदियों बिता देने के बाद यहां की आबादी ने शुष्क जलवायु में भी अच्छी खेती-फसलों के तरीके खोज लिए. यह बात किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि बारिश के मौसम में पकने वाला फल जामुन राजस्थान के पुष्कर से ही लगभग पूरे उत्तर भारत में सप्लाई होता है. पुष्कर से 10-12 किलोमीटर की परिधि में पीसांगन पंचायत समिति के 18 से ज्यादा गांव में जामुन के सैंकड़ों बगीचे हैं.
इन्हीं जामुन के बगीचों के कारण यहां के किसान बाकी जगहों में पारंपरिक खेती करने वाले किसानों से काफी संपन्न हैं. अगर मौसम साथ दे तो यहां पीक सीजन में देशभर के लिए रोजाना करीब 70 छोटे-बड़े ट्रक जामुन के सप्लाई किए जाते हैं.
अजमेर जिले की पीसांगन पंचायत समिति की चार ग्राम पंचायतों के 18 गांव में जामुन के सबसे अधिक बाग हैं. इन गांवों में गनाहेड़ा, मोतीसर, बागोलाई और देवनगर जैसे गांव शामिल हैं. जामुन के बगीचों के ज्यादातर मालिक किसान ही हैं. ये लोग पुश्तैनी रूप से जामुन की किसानी कर रहे हैं.
गनाहेड़ा गांव के जामुन किसान शायर सिंह रावत किसान तक से कहते हैं कि एक बाग में कम से कम 20 पेड़ हैं. जिस किसान के पास ज्यादा जमीन है, उसके बगीचे में 200 पेड़ भी हैं. मेरे पास छह जामुन के बाग हैं. इनमें से मैंने दो बाग छह साल के ठेके पर लिए हुए हैं.
शायर सिंह कहते हैं कि क्षेत्र में जामुन की खेती से करीब दो हजार से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं. इनके परिवार भी जामुन तुड़ाई और बाजार तक पहुंचाने में पूरी तरह मदद करते हैं. साथ ही जामुन तोड़ने के लिए कुछ लोगों को मजदूरी पर भी लाना पड़ता है. इससे क्षेत्र में स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलता है.
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जामुन का पीक सीजन 20 जून के आसपास शुरू हो जाता है. इस दौरान गनाहेड़ा और आसपास के 17 अन्य गांवों से रोजाना करीब 70 छोटे –बड़े ट्रक जामुन सप्लाई होता है. ये ट्रक अजमेर, जयपुर, भीलवाड़ा और अन्य राजस्थान के शहरों के अलावा दिल्ली, मुंबई और कई राज्यों तक भेजे जाते हैं.
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शायर सिंह किसान तक को बताते हैं, “अगर ईश्वर और मौसम साथ दे तो जामुन से मुनाफा काफी अच्छा होता है.मेरे छह बागों में हर साल सिर्फ जामुन से करीब 40 लाख रुपये तक का व्यापार होता है. आसपास के जिन 18 गांवों के किसान जामुन की खेती से जुड़े हैं, वे भी अन्य पारंपरिक फसलों की तुलना में काफी अच्छा कमाते हैं. इसीलिए हमारे इन गांवों में कोई भी किसान आर्थिक रूप से परेशान नहीं मिलेगा.”
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