महाराष्ट्र में इस समय ज्यादातर किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़ बागवानी की ओर रुख कर रहे हैं. इस वजह से कई जिलों में बागों का क्षेत्रफल भी बढ़ रहा है. लेकिन, पिछले एक हफ्ते से फंगल वायरस ने पपीते पर इस कदर हमला किया है कि बाग उजड़ने लगे हैं. वहीं नंदुरबार जिले के अधिकांश गांवों में पपीते के बागों पर इस वायरस का हमला तेजी से बढ़ रहा है. इससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है. पीते की इस समय बाजार में अच्छी कीमत मिल रही है. लेकिन, पपीते के बागों पर वायरल रोग फैलने से फल खराब हो रहा हैं. इसके चलते जिले के किसान संकट में है.
किसानों का कहना हैं कि रोग फैलने के कारण पपीते की पत्तियां गिरने और फल सड़ने का खतरा बढ़ गया है. इससे पूरा बाग खराब हो रहा हैं. पपीते पर इस बीमारी के कारण पपीता किसानों की परेशानी बढ़ गई है. किसानों का कहना हैं कि जहां लाखों रुपये कमाने की उम्मीद थी. वहीं अब बागों को काटना पड़ रहा है.
नंदुरबार जिले को देश के सबसे बड़े पपीते के हब के रूप में जाना जाता है. किसानों को इस साल पपीते की अच्छी कीमत मिलने पर भी उन्हें नुकसान ही झेलना पड़ रहा है. जिले में इस साल पपीते के बागान खूब फले-फूले हैं. व्यापारी किसानों के बांधों से 11 रुपए किलो पपीता खरीद रहे थे. ये दरें किसानों की वित्तीय गणित में सुधार के लिए अच्छी हैं. लेकिन, बागों पर रोग बढ़ने से किसानों की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.
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पपीते के किसान पिछले एक हफ्ते में बादल छाए रहने और पपीते पर वायरल बीमारियों से प्रभावित हुए हैं. वायरस के कारण पत्ते पीले पड़ जाते हैं. वहीं दूसरी ओर पपीते के पेड़ भी खराब हो जा रहे है. इससे किसानों को बड़ी आर्थिक मार का सामना करना पड़ सकता है.
जिले में इस साल अच्छी बारिश हुई है. इससे पपीते के बागान खूब फले-फूले हैं. लेकिन, पपीते की फसल में रस चूसने वाले कीड़ों ने हमला कर दिया है. वायरल बीमारी के कारण पपीते की पत्तियों का पीलापन और पत्तों का गिरना जाना और फलों जल्द ही सड़ जाते है. किसान सरकार से मांग कर रहे है कि जिले में पपीता अनुसंधान केन्द्र प्रारंभ किया जाए और राज्य सरकार और कृषि विश्वविद्यालयों को गन्ना अंगूर किसानों की तरह नंदुरबार जिले में पपीता किसानों के लिए पपीता अनुसंधान केंद्र शुरू करना चाहिए. पपीता किसानों ने उम्मीद जताई है कि पपीता फसल रोगों पर शोध और प्रसंस्करण उद्योग से किसानों को राहत मिलेंगी.
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