पिछले साल कम दाम से परेशान होकर किसानों ने खेती में कटौती कर दी थी. इसी तरह इस साल किसानों को पिछले साल अदरक का दाम बहुत कम मिला था लेकिन इस साल बहुत अच्छा दाम मिल रहा है. महाराष्ट्र एग्रीकल्चरल मार्केटिंग बोर्ड के अनुसार 28 मार्च को ड्राई अदरक का दाम 46000 रुपये क्विंटल तक है, जबकि फ्रेश का दाम 12000 रुपये तक है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार प्याज का उत्पादन इस साल पूरे देश में कम हो सकता है. जिसमें सबसे ज्यादा कमी महाराष्ट्र में 34.31 लाख टन की हो सकती है. इसलिए किसानों को उम्मीद है कि दाम आगे चलकर बढ़ सकते हैं. रबी सीजन का प्याज ही स्टोर करने लायक होता है जो अप्रैल-मई से दिवाली तक चलता है.
महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि अगर सरकार ने प्याज की निर्यातबन्दी नहीं की होती तो किसानों को कम से कम 30 रुपये किलो का दाम मिल रहा होता. इसलिए सरकार किसानों को हुए घाटे की भरपाई करे वरना किसान घाटे में कब तक खेती करेंगे.
किसानों का कहना है कि सरकार सिर्फ 5 लाख टन प्याज खरीदने की घोषणा करके किसानों को बरगला रही है. जबकि देश में 255 लाख टन प्याज होने का अनुमान है. इसलिए सबको समझ में आता है कि यह सिर्फ लीपापोती है. इतने उत्पादन में सिर्फ 5 लाख टन की खरीद से क्या होगा. इससे बाजार में दाम नहीं बढ़ेगा.
महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि अब सरकार ने 31 मार्च 2024 से आगे भी प्याज निर्यात पर प्रतिबंध जारी रखने का फैसला लिया है तो इससे रबी सीजन भी किसानों के लिए बेकार हो सकता है. क्योंकि निर्यात नहीं होगा तो घरेलू बाजार में आवक बढ़ेगी और उससे दाम कम हो जाएगा. जब हमारे हितों पर इस तरह से चोट की जा रही है तो हम चुप नहीं बैठेंगे. चुनाव में क्या करना है इसका फैसला लेंगे.
किसानों को सोयाबीन का सही दाम भले ही नहीं मिल रहा है, लेकिन कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सोयाबीन का खाद्य तेलों में अहम योगदान है. भारत खाद्य तेलों का प्रमुख आयातक है और आयात की निर्भरता एवं विदेशी मुद्रा खर्च के बोझ को कम करने में सोयाबीन महत्वपूर्ण योगदान दे रही है. अगर दाम लगातार कम मिलता रहा तो किसान इसकी खेती कम कर देंगे.
इस साल सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4600 रुपये प्रति क्विंटल है.नजबकि महाराष्ट्र एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के अनुसार राज्य की अधिकांश मंडियों में 3500 से 4500 रुपये का भाव चल रहा है. जिससे किसानों में भारी निराशा है. कुछ मंडियों में सिर्फ 3000 का रेट भी चल रहा है. भारत खाद्य तेलों का बहुत बड़ा आयातक है इसलिए सोयाबीन की खेती बहुत महत्वपूर्ण है.
खरीफ सीजन में निकलने वाला प्याज स्टोर करने लायक नहीं होता, इसलिए खेत से निकलते ही उसकी आनन-फानन में बिक्री करना किसानों की मजबूरी होती है. लेकिन रबी सीजन के प्याज के साथ ऐसा नहीं है. रबी सीजन का प्याज स्टोर किया जा सकता है. इसलिए अभी किसानों के पास यह विकल्प मौजूद है कि वह चुनाव तक किसी भी तरह से अपना प्याज स्टोर में रोक कर रखें और उसके बाद उसे बेचें.
महाराष्ट्र में साल में तीन बार प्याज की खेती होती है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण रबी सीजन होता है. क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा किसान प्याज की खेती करते हैं और सबसे ज्यादा एरिया होता है. वजह यह है की रबी सीजन का ही प्याज स्टोर किया जाता है, जो दिवाली तक काम आता है. इसलिए सरकार के इस आदेश से किसानों को सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान होने की संभावना है.
हिंगोली जिले के किसानों ने पारंपरिक खेती के साथ-साथ इमली का उत्पादन भी शुरू कर दिया है. इससे उनको अच्छा मुनाफा मिल रहा है. किसानों का कहना है कि उनकी पैदा की गई इमली की मांग कई राज्यों में बढ़ रही है. उत्पादकों ने कहा कि फिलहाल इमली का दाम 9,000 से लेकर 10,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल रहा है
पिछले साल औसत से कम बारिश होने के कारण इस साल पूरे राज्य में सूखे की स्थिति पैदा हो गई है. इससे मार्च के मध्य में ही राज्य के कई हिस्सों में पानी की गंभीर कमी का संकट पैदा हो गया है. फसलों और बागों की सिंचाई नहीं हो पा रही है. राज्य के कई हिस्सों में चारे का संकट भी गहरा गया है. जिससे किसान और पशुपालक दोनों परेशान हैं.
सुनील पवार समिति केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) या ई-ट्रेडिंग योजना को लागू करने की तात्कालिकता पर जोर देती है. इससे पारदर्शी नीलामी होगी और किसानों के बैंक खातों में बिक्री का पैसा सीधे जमा करने की सुविधा मिलेगी, जिससे व्यापारियों द्वारा किसानों का शोषण कम होगा.
किसानों का कहना है कि अगर रबी सीजन में भी निर्यात बंद रहता है तो उनकी कमर टूट जाएगी. इसलिए अब सरकार को निर्यात खोल देना चाहिए, वरना नुकसान से परेशान होकर वो खेती और कम कर देंगे. ऐसा हुआ तो देश को दूसरे देश से प्याज आयात करना पड़ सकता है.
केंद्र सरकार ने एमएसपी घोषित करते हुए माना था कि किसानों को इसकी उत्पादन लागत 3029 रुपये प्रति क्विंटल पड़ती है. यानी उत्पादन लागत के ही जितना दाम मिल रहा है. उसे बाजार तक ले जाने का खर्च कग है. इसकी एमएसपी 4600 रुपये है. इसलिए किसानों को इस साल सोयाबीन की खेती में काफी घाटा हो रहा है.
महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि सरकारी हस्तक्षेप की वजह से काफी समय से किसान घाटे में प्याज की खेती कर रहे हैं. ऐसा ज्यादा दिन नहीं चलेगा. आखिर परेशान होकर वो एक दिन इसकी खेती छोड़कर कुछ और करने लगेंगे. इस वक्त प्रति किलो प्याज की उत्पादन लागत 18 से 20 रुपये किलो है. अब अगर 30 रुपये किलो तक दाम नहीं मिलेगा तो नुकसान होगा.
सोलापुर में बनने के लिए पास इस सेंटर को बारामती में स्थानांतरित करने के फैसले पर सोलापुर जिले के लोगों की कड़ी नाराजगी सामने आई थी. उसको देखते हुए राज्य सरकार ने अब इस फैसले को बदल दिया है. अब सरकार ने यह केंद्र सोलापुर में ही स्थापित करने का निर्णय लिया है. हालांकि अब भी यह कहा जा रहा है कि इस फैसले को बारामती के नेता पलटने की कोशिश करेंगे.
अहमदनगर, नासिक, पुणे, सोलापुर, सांगली और मराठवाड़ा क्षेत्र सहित राज्य के कई हिस्सों में आलू का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है. किसान सूखे और कम पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में आलू उत्पादन को प्राथमिकता देते हैं. इसे आम तौर पर अक्टूबर-नवंबर में लगाया जाता है और फरवरी और मार्च के महीनों में निकाला जाता है.
इस बार उत्पादन कम होने की वजह से दाम बढ़ने का अनुमान है. हालांकि 2021-22 की तरह दाम 14 हजार रुपये क्विंटल तक जाने का अनुमान नहीं है. फिर भी दाम बढ़ने की वजह से किसानों ने राहत की सांस ली है. ज्यादातर मंडियों में रेट एमएसपी से ज्यादा हो चुका है.
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि प्याज के दाम में इतने उतार-चढ़ाव की वजह सिर्फ आवक का कम या अधिक होना है. जहां आवक कम है वहां दाम ज्यादा है और जहां और ज्यादा है वहां किसानों को दाम कम मिल रहा है. गुणवत्ता की वजह से भी दाम में अंतर आ जाता है. जानिए प्रमुख मंडियों का भाव.
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