Saffron Farming: केसर किसानों के सुधरे हालात, GI Tag मिलते ही दोगुने हो गए दाम

Saffron Farming: केसर किसानों के सुधरे हालात, GI Tag मिलते ही दोगुने हो गए दाम

कश्मीर में केसर की अच्छी खेती हो रही है. किसानों ने समय के साथ तकनीक बदली है, तो साथ में उन्हें मौसम का भी साथ मिल रहा है. किसानों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है केसर को जीआई टैग मिलने से.पहले किसान को प्रति किलोग्राम केसर के लिए एक से सवा लाख रुपये तक मिलते थे, जबकि आज दो से ढाई लाख रुपये प्रति किलो रेट मिल रहा है.

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Saffron Farming: केसर किसानों के सुधरे हालात, GI Tag मिलते ही दोगुने हो गए दामअपने केसर के खेत में बैठे किसान मजीद वाणी फोटोः किसान तक

कश्मीर के केसर (Saffron) दुनिया भर में मशहूर हैं. यहां के केसर की खास स्वाद और खुशबू की वजह से पूरे विश्व में मांग होती है. केसर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद होती है. फिलहाल कश्मीर में बर्फ गिर रही है और केसर खेतों में लगा हुआ है. ऐसे में यह बर्फबारी किसानों के लिए कितनी राहत देने वाली है, केसर की खेती में तकनीकी तौर पर क्या बदलाव हुए हैं, कश्मीर के केसर को जीआई टैग (GI Tag) मिल जाने के बाद उनकी बिक्री में कितनी आसानी हुई है, इन तमाम मुद्दों पर कश्मीर के किसान मजीद वाणी से किसान तक ने बात की. 

कश्मीर की खेती को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने बताया कि इसकी खेती दो-तीन महीने की होती है, खेत तैयार करने के बाद अगस्त के अंत तक इसकी बुवाई करते हैं. इसके बाद कार्म लगाते हैं, फिर अक्टूबर अंत तक फूल आते हैं, पर एक बार बुवाई करने के बाद 10 साल तक इसकी फसल ले सकते हैं. केसर की फसल की साल में दो बार गुड़ाई करनी पड़ती है. उन्होंने बताया कि  बर्फबारी से केसर की खेती को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है. दिबंसर-जनवरी ऐसा समय होता है जब पत्ते उग रहे होते हैं, इसके बाद यह अप्रैल तक हरा-भरा रहता है.

जीआई टैग मिलने का हुआ है फायदा

मजीद वाणी ने बताया कि एक वक्त था जब सही दाम पर केसर नहीं बेच पाने के कारण यहां के केसर किसान इसकी खेती से दूर जा रहे थे. वह दूसरी खेती को अपना रहे थे, पर जब से जीआई टैग मिला है, उसके बाद से किसान केसर पार्क में जाकर अपने केसर बेच रहे हैं. इससे उन्हें अच्छी कमाई हो रही है. पहले किसान को प्रति किलोग्राम केसर के लिए एक से सवा लाख रुपये तक मिलते थे, वहीं आज दो से ढाई लाख रुपये प्रति किलो रेट मिल रहा है. प्रति कनाल किसान का उत्पादन 160 से 260 ग्राम तक हो रहा है. प्रति ग्राम 200 रुपये की दर से दाम मिलता है. अगर समय समय पर बारिश होती है तो उत्पादन और भी अधिक बढ़ जाता है. 

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तकनीक में आया है बदलाव

कश्मीर के केसर किसान ने कहा कि समय के साथ तकनीक में बदलाव आया है. पहले किसान पारंपरिक खेती करते थे, जैसे वो बैलों से बुवाई करते थे. खाद नहीं डालते थे और सिंचाई तो बिल्कुल हीं नहीं करते थे. पर अब नई तकनीक में इसमें बदलाव आया है. किसान अब केसर की लाइन सोइंग करते हैं और हाथ से लगाते हैं. इसके अलावा सिंचाई के लिए स्प्रिंक्लर का भी इस्तेमाल करते हैं. अधिक उत्पादन हासिल करने के लिए अब वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि पूरी प्रक्रिया जैविक ही होती है. पर अब केसर को सुखाने के लिए ड्रायर का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि पहले धूप में ही सूखाने का काम किया जाता था. 

इनडोर केसर की खेती 

बदलते वक्त के साथ जनसंख्या भी बढ़ रही है औऱ खेती योग्य जमीन भी कम हो रही है. ऐसे में इनडोर केसर फार्मिंग केसर की खेती का एक बेहतरीन विकल्प है. इसमें जिनके पास सिर्फ घर है, वो भी केसर की खेती आसानी से कर सकते हैं. इसकी मांग भी अच्छी होती है और क्वालिटी भी खेत वाले केसर की तरह ही होची है. मजीद वाणी से कहा कि पिछले कुछ सालों से इसके लिए किसानों को वो प्रशिक्षित कर रहे हैं. किसानों को सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलने से किसान केसर की खेती करने को लेकर उत्साहति हैं. 

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