दिल्ली के मंत्री गोपाल राय ने कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की और कहा कि विभाग के अधिकारी और पदाधिकारी जाकर खेतों का निरीक्षण करेंगे और किसानों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया जाएगा. इससे पराली की समस्या कम करने में मदद मिलेगी.
स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार देवी समलेश्वरी को नबन्ना अर्पित करने के बाद यहां पर स्थानीय लोग जुहार करते हैं. जुहार का मतलब मिलना-जुलना होता है. यह एक ऐसी बेहतरीन परंपरा है जिसमें आपसी भेदभाव मिटाकर लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और बुजुर्गों का सम्मान करते हैं.
गौरतलब है कि राज्य के गोदाम में अभी भी पिछले रबी सीजन का धान रखा हुआ है. अब नई फसल आने वाली है. ऐसे में पुराने स्टॉक को खाली करने के लिए वैश्विक निविदाएं निकाली गई थीं. इसके बाद 10 कंपनियों ने बोली लगाई थी.
दरअसल कुछ दिन पहले विभाग में ड्रिप इरिगेशन स्कैम का मामला सामने आया था. जिसमें जांच के बाद कार्रवाई भी गई थी. नाबार्ड के तहत संचालित थर्ड पार्टी वेरिफिकेशन एजेंसी नाबार्ड कंसलटेंसी सर्विसेज के भी कुछ कर्मचारियों पर विभागीय कार्रवाई हुई थी.
कभी कभार कम बारिश की स्थिति और अनियमित म़ॉनसून धान को छोड़कर दूसरे फसलों के लिए लाभदायक होती है. इन फसलों के साथ सबसे अच्छी बात यह होती है कि इन्हें बुवाई के लिए कम बारिश की जरुरत होती है और बाद में कम नमी में भी इसकी पैदावार अच्छी हो जाती है.
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक सरायकेला खरसावां जिले में 2005 से 2013 तक बड़े पैमाने में तसर की खेती होती थी. बड़े पैमाने पर यहां से सिल्क की साड़ियों का निर्यात विश्व के एक दर्जन से अधिक देशों में होता था.
जिन किसानों के खेत नदी के किनारे थे उन किसानों ने किसी तरह से सिंचाई करके धान की रोपाई की है. मेरा खेत भी नदी के किनारे हैं इसका फायदा मुझे हुआ औऱ मैने सिंचाई करके धान की रोपाई की है.
2015 में समस्तीपुर के राजेंद्र कृषि विश्विदियालय में गए और वहां पर मशरुम उत्पादन के बारे में जानकारी हासिल की और अच्छे से प्रशिक्षण प्राप्त किया. हालाकिं 2015 में गैस ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड में सेल्स मैनेजर के पद पर उनकी नौकरी लग गई और वो नौकरी में चले गए.
जानवरों के आतंक से किसान तबाह हो रहे हैं. पर इनकी सुनने वाला कोई नहीं है. ना ही वन विभाग और ना ही कृषि विभाग की तरफ से इन किसानों को किसी प्रकार की मदद मिल रही है. किसानों को हो रहे नुकसान की भारपाई भी नहीं हो पा रही है.
दरअसल पश्चिमी ओडिशा में कुल चार ऐसे जिले हैं जिन्हें सूखे के लिए जाना जाता है. उनमे कालाहांडी, बालांगीर, नुआपाड़ा और बरगड़ है. इसके अलावा भी कुछ अन्य जिले हैं जहां पर बारिश नहीं होने के कारण फसलों को नुकसान हुआ है.