लीचियों के लिए प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर में चीकू की खेती आपको हैरत में डाल सकती है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि बिहार में ऐसी खेती कभी देखी नहीं गई. लेकिन यहां के एक किसान ने रीति बदली है और वे चीकू की खेती कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं. मुजफ्फरपुर के ये किसान परंपरागत खेती से अलग थाई चीकू की खेती से प्रति वर्ष साढ़े तीन लाख रुपये की आमदनी कर रहे हैं. इस किसान का नाम है अनिल कुमार.
मुजफ्फरपुर के अनिल कुमार ने एक एकड़ में थाई चीकू लगाया है. इनके खेत में बढ़िया फल लगा हुआ है. उसे देखने के लिए दूर-दूर से किसान खेत में आकर देख और समझ रहे हैं कि परंपरागत खेती से अलग चीकू की खेती कैसे होती है. बीते कई वर्षों से मौसम अनुकूल नहीं रहने के कारण लीची की खेती प्रभावित हो रही है. इससे तंग आकर अनिल कुमार ने एक एकड़ में थाई चीकू का पौधा लगाया जिसमें फल बीते साल आना शुरू हो गया. इस साल से फलों की संख्या बढ़ गई है. अनिल कुमार कहते हैं कि प्रति पेड़ 40 से 50 किलो चीकू मिल जाएगा जिसकी बाजार कीमत 50 रुपये प्रति किलो है. चीकू में हर साल फल लगते हैं. इस लिहाज से हर साल कमाई होने की भरपूर संभावना है.
थाई चीकू की खेती करने वाले अनिल कुमार ने बताया कि परंपरागत खेती कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ से प्रभावित हो जाती है. पिछले कई वर्षों से मौसम अनुकूल नहीं रहने से चीली नहीं हो पा रही थी. इसलिए किसान अनिल कुमार ने धान-गेहूं की खेती वाले जमीन में थाई चीकू लगाया. पिछले साल इसमें फल आया और इस साल भी फलों में तेजी है. अनिल कुमार कहते हैं, इस साल 40 से 50 किलो प्रति पेड़ फल आया है, अच्छी आमदनी होने की उम्मीद है. इस नई खेती को देखने के लिए दूर-दूर से किसान आ रहे हैं.
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चीकू की खेती देखने आए पश्चिमी चंपारण के किसान नरेंद्र कुमार कहते हैं कि इसकी नई खेती काफी बढ़िया है और वे अब दो एकड़ में चीकू लगाएंगे. खेती देखने आए मनियारी के किसान भी चीकू लगाने की बात कह रहे हैं. अनिल कुमार ने बताया कि एक एकड़ में 400 चीकू के पेड़ लगाए जा सकते हैं. अभी दो साल में उन्होंने एक पड़े से लगभग एक हजार रुपये की कमाई की है और तीन साल बाद यह कमाई डबल होकर दो हजार रुपये तक पहुंच जाएगी.
चीकू के एक पेड़ 40 साल तक चलता है. इसका मतलब हुआ कि एक पेड़ से 40 साल तक आराम से आमदनी पाई जा सकती है. सब खर्च काट दें तो एक एकड़ में किसान को तीन लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है. खास बात ये है कि रेह वाली मिट्टी में भी चीकू को आसानी से उगाई जा सकती है. इस मिट्टी में भी चीकू के फल खूब अच्छे होते हैं. चीकू की खेती के लिए मिट्टी का पीएच साढ़े पांच से साढ़े सात होना चाहिए. अनिल कुमार चीकू की खेती पूरी तरह से ऑर्गेनिक कर रहे हैं जिसमें दो बार गोबर का खाद डाला जाता है.
चीकू के पूरे फसलचक्र के दौरान एक बार फरवरी-मार्च में और दूसरी बार जून-जुलाई में गोबर की खाद डाली जाती है. एक एकड़ में किसान को साढ़े चार लाख की आमदनी होती है जिसमें डेढ़ लाख का खर्च काट दें तो तीन लाख की कमाई कहीं नहीं जाएगी. मुजफ्फरपुर का वातावरण और यहां की मिट्टी चीकू की खेती के लिए अनूकुल है. यही वजह है कि कई किसान इसकी खेती करने के लिए प्रेरित हो रहे हैं. किसान अनिल कुमार कहते हैं कि आने वाले दो-तीन साल में बिहार थाई चीकू का बहुत बड़ा मार्केट होगा.
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चीकू की मार्केटिंग के बारे में अनिल कुमार कहते हैं कि उन्हें फल लेकर बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि व्यापारी बागान में आकर खरीदारी कर लेते हैं. शुरू में एक पेड़ में 50 किलो तो बाद में 100 किलो तक उपज मिलती है. इसका फल मार्च तक पक जाता है जिसके बाद तुड़ाई शुरू की जाती है.(मणिभूषण शर्मा की रिपोर्ट)
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