जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है. सभी पार्टियां पहले दौर के होने वाली मतदान को लेकर जोर लगा रही हैं. वहीं, जम्मू-कश्मीर में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव न केवल राजनीतिक, सुरक्षा के लिहाज, बल्कि इलाके में सामाजिक ताने-बाने को नया आयाम देने के लिए भी ऐतिहासिक होने जा रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इस चुनाव में पहली बार वाल्मीकि समाज के लगभग 350 परिवार के 10 हजार लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इस समाज को जम्मू- कश्मीर में स्पेशल स्टेट्स आर्टिकल 370 और 35ए के तहत दशकों तक मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया था.
वाल्मीकि समुदाय के कई लोगों के लिए ये वोट के अधिकार से बढ़कर कहीं ज्यादा है. ये अधिकार उनके सपनों को पूरा करने वाला है, क्योंकि धारा 370 और 35ए के वक्त वाल्मीकि समाज के युवा सरकारी नौकरी की परीक्षाओं के पात्र नहीं थे. ऐसा इसलिए कि उनके पास अनुच्छेद 370 के तहत आवश्यक स्थायी निवास प्रमाणपत्र यानी (PRC) नहीं था., जिसकी वजह से वहां रह रहे वाल्मीकि समाज के युवा वोट देने के साथ-साथ सरकारी नौकरी के पात्र नहीं थे.
विधानसभा चुनाव में पहली बार वोट डालने पर खुशी जाहिर करते हुए वाल्मीकि समाज सभा के अध्यक्ष घारु भट्टी ने बताया कि आजाद भारत में 65 साल बाद उन्हें विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार मिल रहा है. वो 45 साल के हैं और विधानसभा चुनाव में पहली बार वोट डालेंगे. उन्होंने कहा कि देखिए, हम कितना लेट हो गए. पर देर आए, दुरुस्त आए. उन्होंने इसका पूरा श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी दिया और कहा कि जम्मू-कश्मीर में कई सालों से लोकतंत्र अधिकारों का हनन हो रहा था.
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वहीं, मीना भट्टी ने बताया कि वो वाल्मीकि समाज की पहली महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने इस मुद्दे को उठाया. मीना लॉ की छात्रा हैं जो समुदाय के कई लोगों को प्रेरणा दे रही हैं. उन्होंने समान अधिकारों के लिए लड़ने के अपने अनुभव को साझा किया और बताया कि कैसे वह अब युवा लड़कियों को उनके सपनों को पूरा करने के लिए मार्गदर्शन कर रही हैं.
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं. वाल्मीकि समुदाय अपनी नई पहचान और पहली बार वोट देने के अधिकार का जश्न मना रहा है. दशकों तक, वे अनुच्छेद 370 के प्रतिबंधों से बंधे हुए थे, जम्मू-कश्मीर के समाज में पूरी तरह से एकीकृत नहीं हो पाए थे. अब वे न केवल मतदान कर रहे हैं, बल्कि बेहतर भविष्य का सपना भी देख रहे हैं, जहां उनके बच्चे पुराने कानूनों की बाधाओं के बिना अपनी आकांक्षाओं को प्राप्त कर सकें.
बता दें कि वाल्मीकि समाज के लोगों के पूर्वजों को साल 1975 में तत्कालीन सरकार द्वारा महामारी के दौरान सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने के लिए पंजाब से जम्मू लाया गया था. उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, उन्हें कभी-भी स्थायी निवासी का दर्जा नहीं दिया गया, जिससे उन्हें मतदान और जम्मू-कश्मीर के निवासियों को मिलने वाले अन्य अधिकारों से वंचित कर दिया गया. दशकों तक वाल्मीकि समाज दोयम श्रेणी के नागरिक के रूप में रहते थे जो क्षेत्र की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने में असमर्थ थे. हालांकि, 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद वाल्मीकि समाज के सदस्यों को 2020 में अधिवास प्रमाण पत्र दिए गए थे. (श्रीनगर से शिवानी शर्मा की रिपोर्ट)
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