Dairy Product: ट्रेसेबिलिटी सिस्टम से बदलेगी डेयरी सेक्टर की तस्वीर, जानें कैसे हुआ तैयार

Dairy Product: ट्रेसेबिलिटी सिस्टम से बदलेगी डेयरी सेक्टर की तस्वीर, जानें कैसे हुआ तैयार

नकली दूध और मिलावटी घी भी बाजार में बिक रहा है. परेशान करने वाली बात ये है कि धीरे-धीरे इनका बाजार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में डेयरी प्रोडक्ट के ग्राहक चाहते हैं कि वो जो घी या पनीर खरीद रहे हैं उसके बारे में पूरी जानकारी मिले. जैसे गाय के दूध से बना है या भैंस के. गाय-भैंस बीमार तो नहीं है, उसका वैक्सीनेशन तो हुआ है. 

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Dairy Product: ट्रेसेबिलिटी सिस्टम से बदलेगी डेयरी सेक्टर की तस्वीर, जानें कैसे हुआ तैयारजानें घी असली है या नकली

डेयरी सेक्टर में ट्रेसेबिलिटी सिस्टम की शुरुआत हो गई है. सबसे पहले इस सिस्टम का इस्तेमाल मदर डेयरी और उत्तराखंड डेयरी फेडरेशन ने किया है. दोनों ही डेयरी ने इसे पहली बार गिर और बद्री गाय के दूध से बने घी के साथ जोड़ा है. डेयरी एक्सपर्ट की मानें तो ट्रेसेबिलिटी सिस्टम डेयरी सेक्टर की तस्वीर बदलने वाला सिस्टम साबित होगा. ग्राहक और डेयरी कंपनियों दोनों को ही इसका बड़ा फायदा होगा. ग्राहक को जहां इसकी मदद से खरीदे गए डेयरी प्रोडक्ट की पूरी जानकारी मिलेगी, वहीं कंपनी इसकी मदद से अपने प्रोडक्ट के संबंध में ग्राहकों का भरोसा जीत सकेगी. 

मिलावटी घी और नकली दूध की बढ़ती दस्तक ने ट्रेसेबिलिटी सिस्टम को डेयरी कंपनियों और ग्राहकों के लिए जरूरी बना दिया है. नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड (NDDB) की मदद से इसे तैयार किया गया है. इस सिस्टम की मदद से ग्राहक के लिए डेयरी प्रोडक्ट की पूरी जानकारी पाना बहुत ही आसान है. 

ऐसे काम करता है ट्रेसेबिलिटी सिस्टम

एआई एक्सपर्ट मनोज पवार ने बताया कि अगर आपने कोई भी डेयरी प्रोडक्ट खरीदा है तो उस पर एक क्यूआर कोड बना होगा. आपको अपने मोबाइल से उस क्यूआर कोड को स्कैन करना है. जैसे ही आप क्यूआर कोड को स्कैन करेंगे तो प्रोडक्ट की पूरी डिटेल सामने आ जाएगी. जैसे आपने घी खरीदा है तो इसकी डिटेल में ये बताया जाएगा कि घी किस नस्ल की गाय के दूध से बना है. गाय कहां की है, बीमार है या नहीं, कौन-कौन सी वैक्सीन लग चुकी है. गाय का फैमिली ट्री क्या है. 

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ऐसे बनाया जाता है ट्रेसेबिलिटी सिस्टम

पशु की खरीद-फरोख्त और सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए आज पशुओं को एक खास पहचान दिलाना बहुत जरूरी हो गया है. पशुओं में फैलने वाली महामारी की रोकथाम के लिहाज से भी ये बहुत जरूरी है. पशुओं की पहचान यानि उनका रजिस्ट्रेशन कराना अब कोई मुश्किल काम नहीं रह गया है. नजदीक के पशु चिकित्सा केन्द्र पर रजिस्ट्रेशन कराने की जानकारी देकर पशुओं की टैगिंग कराई जा सकती है. इस तरह के टैग आपने अक्सर गाय-भैंस के कान में रंग-बिरंगे से देखे होंगे. 

आमतौर पर इन्हें देखकर यही सवाल उठता है कि आखिर इसका फायदा क्या है. क्या ये सिर्फ पशुओं की पहचान और उनकी गिनती भर के लिए ही हैं. असल में पशुओं के कान में लगे ये टैग इंसानों की तरह से ही पशुओं का आधार कार्ड है. इस टैग में 12 नंबर होते हैं. टैग पर लिखे नंबर को बेवसाइट में डालते ही गाय-भैंस का पूरा चिठ्ठा खुल जाता है. इसमे पशु से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी होती है. पशुओं के कान में लगने वाले इस टैग नंबर से पशुओं का इलाज, टीकाकरण से लेकर सरकारी योजनाओं का फायदा, बीमा आदि सभी तरह का काम अब बस टैग नंबर से हो जाता है. इतना ही नहीं पशु के चोरी होने पर इस नंबर की मदद से पशु के मिलने की संभावना भी ज्यादा रहती है.

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  • विश्वसनीय और जरूरी डाटाबेस के लिए पशु की पहचान वाला रिकॉर्ड बहुत जरूरी होता है. 
  • पशुओं के बीच महामारी रोकने के लिए भी पशुओं का डाटाबेस जमा किया जा रहा है. 
  • पशु डाटाबेस के लिए ईयर टैग सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला तरीका है. 
  • ईयर टैग में खास 12 नंबर की डिजिट होती है जिसकी मदद से पशुओं का ब्योरा मिलता है. 
  • कोई चाहकर भी ईयर टैग की 12 नंबर की डिजिट की नकल नहीं कर सकता है. 
  • अगर ठीक से लगा है तो टैग लगने से कोई परेशानी नहीं होती है और सालों-साल लगा रहता है. 
  • पशु के कान में टैग लगने के साथ ही उसकी इनाफ (INAPH) सूचना प्रणाली पर नस्ल, आयु, गर्भावस्था, दूध उत्पादन, पशुपालक का पूरा ब्योरा दर्ज हो जाता है. 
  • पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर पशु पहचान की व्यवस्था संचालित करने के लिए नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड (NDDB) को नामित किया है.
  • NDDB देश में स्थित सभी ईयर टैग उपभोक्ता और उत्पादन संस्थाओं के लिए 12 डिजिट का ये खास नंबर तैयार करती है. 
  • खास पहचान नंबर लेने के लिए उपभोक्ता और उत्पादन करने वाली संस्थाएं जरूरत के मुताबिक क्रय आदेश (PO) की कॉपी संलग्न कर NDDB को आवेदन कर सकती हैं. 

 

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