गोट एक्सपर्ट की मानें तो बकरियां एक बार में दो से तीन बच्चे तक देती हैं. मतलब साल में चार से छह. लेकिन बकरियों की एक नस्ल ऐसी भी है जो साल में आठ बच्चे तक देती है. खास नस्ल की ये बकरी एक बार में तीन से चार बच्चे तक दे रही है. और खास बात ये है कि मीट के लिए इस नस्ल की बहुत डिमांड है. बाजार में इस नस्ल को सोनपरी के नाम से जाना जाता है. अपनी इन्हीं खूबियों के चलते सोनपरी के रजिस्ट्रेशन की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं.
सोनपरी मूल रूप से सोनभद्र की नस्ल है. लेकिन वाराणसी, मिर्जापुर, यूपी के अलावा झारखंड और छत्तीसगढ़ में भी सोनपरी खूब पाली जा रही है. एक्सपर्ट बताते हैं कि सोनपरी नस्ल के बकरे-बकरी बैरारी और ब्लैक बंगाल की मिक्स नस्ल है. बैरारी और ब्लैक बंगाल की मिक्स होने की वजह से ही इसे मीट के लिए बहुत पसंद किया जाता है.
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सोनपरी नस्ल पर रिसर्च करने वालीं साइंटिस्ट डॉ. चेतना गंगवार बताती हैं कि सोनपरी बकरी की एक सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये 22 फीसद केस में चार बच्चे तक देती है. और सामान्य तौर पर ये दो और तीन बच्चे तक देती है. जबकि दूसरी नस्ल की बकरियां कुछ खास केस में ही तीन बच्चे तक देती हैं. बकरी पालक सोनपरी को इसलिए भी पसंद करते हैं कि सोनपरी में रोगों से लड़ने की क्षमता दूसरों के मुकाबले ज्यादा है. सोनपरी नस्ल में ब्लैक बंगाल के अंश है तो इसके मीट का टेस्ट भी अलग है. इस नस्ल के एक से डेढ़ साल की उम्र के बकरे का वजन 24 से 28 किलो तक हो जाता है.
डॉ. चेतना गंगवार ने बताया कि अगर आप बाजार में सोनपरी नस्ल के बकरे-बकरी खरीदने जा रहे हैं तो कुछ खास और सामान्य तरीकों से इसकी पहचान कर सकते हैं. पहली बात ये कि ये दिखने में गहरे भूरे रंग की होती है. पीठ यानि रीढ़ की हड्डी पर गर्दन से लेकर पूंछ तक काले रंग के उभरे हुए बाल होते हैं. गले पर काले उभरे हुए बालों की रिंग (गोला) होती है. सींग नुकीले पीछे की ओर होते हैं. ये मध्यम आकार की बकरी है. पूंछ के पास थाई पर भी ब्राउन और ब्लैक कलर के उभरे हुए बाल होते हैं.
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