विश्वस्तर पर जब भी कोई बीमारी फैलती है तो वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) उससे जुड़ी इमरजैंसी घोषित करता है. अगर आंकड़ों पर जाएं तो बीते कुछ साल में डब्ल्यूएचओ विश्वस्तर पर पब्लिक हेल्थ से जुड़ी छह इमरजैंसी घोषित कर चुका है. एक्सपर्ट का कहना है कि इसमे से पांच इमरजैंसी के पीछे पशुओं से जुड़ी बीमारियां थी. इस तरह की बीमारियों को जूनोटिक बीमारी कहा जाता है. मतलब पशुओं से इंसानों में होने वाली बीमारी. ऐसी ही बीमारियों पर काबू पाने के लिए भारत में भी तैयारी चल रही है.
देश में इस तैयारी को नेशनल वन हेल्थ मिशन (NOHM) नाम दिया गया है. इसे जी-20 महामारी कोष के सहयोग से चलाया जा रहा है. महामारी कोष से इसके लिए 25 मिलियन डालर करीब 220 करोड़ रुपये मिले हैं. केन्द्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय (डीएएचडी) द्वारा देश में ये मिशन चलाया जा रहा है. इस तरह की बीमारियों पर काबू पाने के लिए तीन लेवल की तैयारी चल रही है.
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एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो कोविड, स्वाइन फ्लू, एशियन फ्लू, इबोला, जीका वायरस, एवियन इंफ्लूंजा समेत और भी न जानें ऐसी कितनी महामारी हैं जो पशु-पक्षियों से इंसानों में आई हैं. हालांकि एक रिपोर्ट के मुताबिक 1.7 मिलियन वायरस जंगल में फैले होते हैं. इसमे से बहुत सारे ऐसे हैं जो जूनोटिक हैं. जूनोटिक के ही दुनिया में हर साल एक बिलियन केस सामने आते हैं और इससे एक मिलियन मौत हो जाती हैं. लेकिन अब वर्ल्ड लेवल पर इस पर काबू पाने की कवायद शुरू हो गई है. हालांकि शुरुआती दौर में यह पहले पांच राज्यों से शुरू किया गया था, लेकिन अब इसकी तैयारी देशभर में चल रही है.
एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो एनओएचएम के तहत सात बड़े काम किए जाएंगे. जिसमे पहले नंबर पर नेशनल और स्टेट लेवल पर महामारी की जांच को संयुक्त टीम बनेगी. महामारी फैलने पर संयुक्त टीम रेस्पांस करेगी.
नेशनल लाइव स्टॉक मिशन की तरह से सभी पशुओं के रोग की निगरानी का सिस्टम तैयार किया जाएगा.
मिशन के रेग्यूलेटरी सिस्टम को मजबूत बनाने पर काम होगा. जैसे नंदी ऑनलाइन पोर्टल और फील्ड परीक्षण दिशा-निर्देश हैं.
महामारी फैलने से पहले लोगों को उसके बारे में चेतावनी देने के लिए सिस्टम बनाने पर काम होगा.
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नेशनल डिजास्टर मैंनेजमेंट अथॉरिटी के साथ मिलकर जल्द से जल्द महामारी की गंभीरता को कम करना.
प्राथमिक रोगों के टीके और उसका इलाज विकसित करने के लिए तय अनुसंधान कर उसे तैयार करना.
रोग का पता लगाने के तय समय और संवेदनशीलता में सुधार के लिए जीनोमिक और पर्यावरण निगरानी फार्मूले तैयार करना जैसे काम होंगे.
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