पशुपालन और डेयरी सेक्टर में हरा चारा एक बड़ी परेशानी बनता जा रहा है. एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो आज हरा चारा उगाना उतना मुश्किल काम नहीं रहा है जितना उसे स्टोर करना मुश्किल हो गया है. अगर चारा थोड़ा सा भी खराब है तो उत्पादन बढ़ना तो दूर पशु बीमार तक हो जाते हैं. माइकोटोक्सिन बीमारी एक ऐसी ही समस्या है. पशुपालकों और डेयरी सेक्टर की इसी परेशानी को दूर करने के मकसद से मंगलवार को एक सेमिनार आयोजित की गई थी. जहां चारा रिसर्च और चारे से जुड़े दूसरे एक्सपर्ट ने चारे के संबंध में कई खास टिप्स दीं.
सेमिनार का आयोजन गुरु अंगद देव वेटरनरी और एनीमल साइंस यूनवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना के डेयरी, चारा विभाग की ओर से किया गया था. इस मौके पर एक्सटेंशन एजुकेशन डायरेक्टर डॉ. प्रकाश सिंह बराड़ ने कहा कि यूनिवर्सिटी और राज्य डेयरी विकास विभाग को डेयरी किसानों की इस परेशानी को दूर करने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है. उनका कहना है कि इस तरह के सेमिनार से रिसर्च सेंटर द्वारा विकसित की गईं टेक्नोलॉजी से अवगत रहने में मदद मिलती है, जबकि साइंटिस्ट को पशुपालक और किसानों के सामने आने वाली नई चुनौतियों को समझने का मौका मिलता है.
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डेयरी विकास विभाग के संयुक्त निदेशक एस. कश्मीर सिंह ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण चारा में डेयरी क्षेत्र के विकास की नींव है. उन्होंने किसानों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें खुद को यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की जा रही नवीनतम तकनीकों से लैस रहना चाहिए. चारा अनुसंधान विशेषज्ञ डॉ. हरिंदर सिंह ने चारे में घास की प्रोसेसिंग और पशुधन उत्पादन में इसके उपयोग के अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने घास की तैयारी के दौरान कटाई और सुखाने के साथ-साथ फसलों और उनकी किस्मों के चयन के बारे में जानकारी दी. डॉ. नवजोत सिंह बराड़ ने चारा फसलों के उत्पादन के लिए चारा फसलों की खेती के तरीकों, सिंचाई, उर्वरक और पौधों की सुरक्षा के उपायों के बारे में बताया.
डॉ. परमिंदर सिंह ने दूध उत्पादन में साइलेज के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने अच्छी गुणवत्ता वाले साइलेज के उत्पादन के लिए लागू उन्नत तकनीकों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि साइलेज में गुणवत्ता-विरोधी कारक एक बड़ी चिंता का विषय हैं और किसानों को साइलेज बनाने में सामान्य गलतियों को सुधारने के तरीकों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए. डॉ जे एस लांबा ने दुधारू पशुओं को खिलाने के लिए निम्न गुणवत्ता वाले चारे की पौष्टिकता में सुधार के तरीके बताए.
सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कुमार का कहना है कि हरा चारा स्टोर करने के लिए हमेशा पतले तने वाली फसल का चुनाव करें. क्योंकि पतले तने वाली फसल जल्दी सूखेगी. कई बार ज्यादा लम्बे वक्त तक सुखाने के चलते भी चारे में फंगस की शिकायत आने लगती है. जिस चारे को स्टोर करना है उसे पकने से कुछ दिन पहले ही काट लें. इसके बाद उसे धूप में सुखाने रख दें. लेकिन चारे को सुखाने के लिए कभी भी उसे जमीन पर डालकर न सुखाएं. चारा सुखाने के लिए जमीन से कुछ ऊंचाई पर जाली वगैरह रखकर उसके ऊपर चारे को डाल दें.
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इसे लटका कर भी सुखाया जा सकता है. क्योंकि जमीन पर डालने से चारे पर मिट्टी लगने का खतरा रहेगा जो फंगस आदि की वजह बन सकती है. जब चारे में 15 से 18 फीसद के आसपास नमी रह जाए, यानि चारे का तना टूटने लगे तो उसे सूखी जगह पर रख दें. इस बात का ख्याल रहे कि अगर चारे में नमी ज्यादा रह गई तो उसमे फंगस आदि लग जाएंगे और चारा खराब हो जाएगा. इतना ही नहीं इस खराब चारे को गलती से भी पशु ने खा लिया तो वो बीमार हो जाएगा.
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