18वीं सदी के प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा था- "अगर आप एक कॉकरोच को मारते हैं, तो आपको हीरो कहा जाएगा, लेकिन अगर आप तितली को मारते हैं, तो आप विलेन कहलाएंगे." इसका मतलब यह है कि समाज में नैतिकता के मानक अक्सर किसी चीज की सुंदरता पर आधारित होते हैं, न कि उसके असल गुणों पर. कॉकरोच को हम गंदा और सेहत के लिए हानिकारक मानते हैं, जबकि तितली को सुंदर. लेकिन अब समय आ गया है कि हम कॉकरोच को सिर्फ वो कैसा दिखता है उसपर न आंकें, क्योंकि यह हमारी सेहत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. जी हां जिस कॉकरोच को देख है अक्सर मुह बनाया करते हैं अब वहीं कॉकरोच हमारी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है.
कॉकरोच की एक खास प्रजाति होती है जिसका नाम है डिप्लोप्टेरा फंक्टाटा (Diploptera punctata). यह प्रजाति अंडे नहीं देती बल्कि बच्चे जन्म देती है, और उन्हें दूध जैसा पोषक तरल देती है. इस तरल में प्रोटीन क्रिस्टल होते हैं, जो शारीरिक विकास और ऊर्जा के लिए जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं.
यह दूध पीले रंग का होता है और इसमें प्रोटीन, अमीनो एसिड, हेल्दी शुगर शामिल होते हैं. रिसर्च के मुताबिक, यह पारंपरिक दूध (गाय, भैंस या इंसान का दूध) की तुलना में तीन गुना ज्यादा कैलोरी देता है.
हालांकि अभी इस दूध पर ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है, लेकिन कुछ स्टडीज़ के अनुसार इसमें मौजूद पोषक तत्व इस प्रकार हैं:
लैक्टोज फ्री, जिससे यह लैक्टोज इन्टॉलरेंट लोगों के लिए भी उपयुक्त हो सकता है.
अब सवाल आता है की क्या कॉकरोच का दूध पीना इंसनों के लिए सुरक्षित है या नहीं. इसका जवाब है नहीं.
कॉकरोच बहुत कम मात्रा में यह दूध बनाते हैं, जिससे इसका उत्पादन बहुत मुश्किल है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, यह दूध एक तरह का सुपरफूड हो सकता है क्योंकि इसमें बहुत अधिक ऊर्जा और पोषण होता है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि भविष्य में जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए इसका उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, जिससे यह आम लोगों के लिए उपलब्ध हो सकेगा.
कॉकरोच भले ही हमें घिनौने लगते हों, लेकिन उनका दूध आने वाले समय में हमारे पोषण का एक नया स्रोत बन सकता है. नीत्शे की बात आज के वैज्ञानिक तथ्यों पर सटीक बैठती है सौंदर्य नहीं, गुणों को पहचानिए. भले ही यह विचार अभी नया और अजीब लगे, लेकिन जब बात सेहत की हो, तो हमें नजरिए बदलने की जरूरत है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today