Guinea Fowl Farming: गिनी फाउल पालन में मीट-अंडे ही नहीं, रंग-बिरंगे पंखों से भी होती है इनकम 

Guinea Fowl Farming: गिनी फाउल पालन में मीट-अंडे ही नहीं, रंग-बिरंगे पंखों से भी होती है इनकम 

Guinea Fowl Rearing मुर्गी और टर्की पालन तो आपने खूब सुना और देखा होगा, लेकिन पोल्ट्री में इसके साथ ही गिनी फाउल का पालन करने वालों की संख्या भी बढ़ रही है. बहुत सारे लोग गिनी फाउल का ब्रीडिंग सेंटर चलाकर चूजे बेच रहे हैं. गिनी फाउल पालन करने वालों की संख्या बढ़ रही है तो उन्हें चूजों की जरूरत होती है.  

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Guinea Fowl Farming: गिनी फाउल पालन में मीट-अंडे ही नहीं, रंग-बिरंगे पंखों से भी होती है इनकम गिनी फाउल पालन से किसानों की बढ़ती है कमाई

Guinea Fowl Rearing गिनी फाउल पालन से एक नहीं तीन तरह से मुनाफा होता है. बाजार में जहां गिनी फाउल के मीट और अंडे की डिमांड है तो वहीं उसके पंखों की भी खूब मांग है. गिनी फाउल एक्सपर्ट का कहना है कि साल के 12 महीने गिनी फाउल के मीट और अंडों की डिमांड रहती है. और खासतौर पर क्रिसमस और न्यू ईयर के दौरान गिनी फाउल के मीट की डिमांड और ज्यादा बढ़ जाती है. अंडे तो हर मौसम में खाए जाते हैं. हाथ से बना सजावटी सामान तैयार करने वाले पंख खरीदने के लिए खुद ही फार्म पर आ जाते हैं. 

गिनी फाउल पालन कैसे मुनाफा कराता है 

गिनी फाउल पालन मीट, अंडों और पंखों के लिए होता है. 

मीट-

कम फैट वाला, स्वादिष्ट और बाजारों में ज्यादा डिमांड वाला है.

अंडे-

गिनी फाउल एक साल में 100 से 120 अंडे तक देती है. 
गिनी फाउल 18 से 20 हफ्ते की उम्र पर अंडे देने लगती है. 

पंख-

हैंडी क्रॉफ्ट और सजावट में गिनी फाउल के पंखों का इस्तेमाल किया जाता है. 

आवास-

गिनी फाउल का एक सुरक्षित, सूखा और अच्छा हवादार पिंजरा चाहिए होता है. 
एक गिनी फाउल को रहने के लिए कम से कम 2-3 वर्ग फुट जगह की जरूरत होती है.

पोषण- 

गिनी फाउल को बैलेंस डाइट की जरूरत होती है. 
अंडा और मीट उत्पादन के लिए अनाज, प्रोटीन, विटामिन और खनिज वाला फीड खि‍लाया जाता है. 

हैल्थ मैनेजमेंट- 

नियमित टीकाकरण, कराना, हैल्था प्रेक्टिहस अपनाना और बीमारियों के लक्षण पकड़ने के लिए पक्षि‍यों पर पैनी नजर रखना. 

प्रजनन- 

चूज़ों को सफलतापूर्वक पालने और अपने झुंड को बढ़ाने के लिए प्रजनन चक्र, हीट चक्र और चूजों को पालने की ट्रेनिंग लें. 

मार्केटिंग-

गिनी फाउल का बाजार खासतौर से रेस्तरां, किसान बाज़ार और मीट की दुकानें होती हैं. 
मीट के लिए एक गिनी फाउल 12 से 14 सप्ताह में पौने दो किलो तक का हो जाता है. 
गिनी प्राकृतिक कीट नियंत्रक है जो खेत में टिक्स और कीड़ों को कम करने में मदद करती है. 

निष्कर्ष-

बेशक भारत में मुर्गे-मुर्गियों की डिमांड बहुत ज्यादा है. लेकिन होटल और मीट बाजार में गिनी फाउल की भी अच्छी डिमांड है. इसके साथ ही खुले बाजार में अंडे भी खूब बिकते हैं. इसी को देखते हुए गिनी फाउल का पालन बढ़ता जा रहा है. सरकारी केन्द्र गिनी पालन की ट्रेनिंग भी कराते हैं. 

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