बकरियों को बढ़ने के लिए कई घटकों की आवश्यकता होती है, जो भोजन से मिलता है. विकास, दूध और मांस उत्पादन, प्रजनन और अन्य सभी शारीरिक कार्यों के लिए उचित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. संतुलित आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन जैसे प्रमुख पोषक तत्व जरूर मात्रा में मौजूद होते हैं. यदि आहार में किसी भी पोषक तत्व की कमी होती है, तो इसका असर बकरियों के उत्पादन, प्रजनन क्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है.
पोषक तत्वों की कमी से होने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में पूरी जानकारी होना आवश्यक है. भोजन की कमी से होने वाले रोग मुख्य रूप से अधिक दूध और मांस देने वाले पशुओं में होते हैं. गर्भावस्था और दूध उत्पादन के दौरान इन घटकों की आवश्यकता अधिक बढ़ जाती है. अगर ऐसी स्थिति में बकरी पालक आवश्यकतानुसार संतुलित आहार नहीं देते हैं, तो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगते हैं और कभी-कभी बकरियां मर भी जाती हैं. इन जरूरी पोषक तत्वों को आसानी से पचाने और शारीरिक विकास के लिए बकरियों का पेट चार भागों में बटा हुआ होता है. ऐसा क्यों आइए जानते हैं.
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बकरियों के पेट के चार भाग होते है जिनके नाम है रूमेन, रेटीकुलम, ओमेसम एवं एवामेसम. बकरी जुगाली करने वाली पशु है जो घास व कृषि अवशेष जिसे दूध और मांस के रूप में तब्दील करते है. बकरी सामने के पैर को खड़ा कर चारा खाती है, जिसे ब्राउसिंग कहते है. बकरियों को हर समय कुछ न कुछ खाते रहने की आदत होती है. सामान्यतः बकरियां एक दिन में साढ़े तीन से लेकर चार किलो तक हरा चारा खाती है.
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बकरियों को हरा चारा खिलाकर अनाज को बचाया जा सकता है. आम तौर पर यह माना जाता है कि जब बकरियां पौधों को चरती हैं तो उनकी वृद्धि रुक जाती है. यह धारणा गलत है क्योंकि बकरियां किसी पौधे को पूरा नहीं चरतीं बल्कि कुछ पत्तियों को चुनकर खाती हैं. इससे पौधे की शाखाओं में सामान्य से ज़्यादा वृद्धि होती है. कुछ इलाकों में बकरियों को खास तौर पर चने के खेतों में चरने के लिए बुलाया जाता है ताकि शाखाएं ज़्यादा से ज़्यादा फैल सकें और चने का उत्पादन बढ़ सके.
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