कुछ वक्त पहले तक बांस यानि बैम्बू सिर्फ जंगल में ही नजर आता था. लेकिन आज होटल-रेस्टोरेंट से लेकर घर के ड्राइंग रूम में चारों तरफ बांस ही बांस नजर आने लगा है. जबकि बीते कुछ वक्त पहले तक बांस का इस्तेमाल सिर्फ कुछ खास जगहों पर ही होता था. अब तो बाजार में बांस के चम्मच से आइसक्रीम खाई जा रही है. जिसने प्लास्टिबक को कम कर दिया है. बाजार और मेले-हॉट में जगह-जगह बांस के बने शोपीस आइटम बिकने लगे हैं. इंटीरियर के कारोबार में भी बांस फिट हो चुका है.
इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के साइंटिस्ट डॉ. रोहित मिश्रा का कहना है कि देश के सभी राज्यों में बांस की अलग-अलग किस्म पैदा होती है. इस वक्त देश में बांस की करीब 100 से ज्यादा किस्म हैं. सभी का इस्तेमाल खासतौर पर कमर्शियल यूज में हो रहा है.
डॉ. रोहित मिश्रा का कहना है कि खूबसूरत दिखाने के लिए बांस के पौधे घर में भी खूब सजाए जा रहे हैं. इन्हें ऑर्नामेंटल बैम्बू कहा जाता है. इसकी छह वैराइटी आती हैं. फूलों के मुकाबले इनकी केयर भी कम करनी होती है. पानी भी कम ही इस्तेमाल होता है. जैसे एक बांस की बेल आती है. इसे डाइनाक्लोबा के नाम से जाना जाता है. एक घास जैसा बांस भी आता है. इसे सासा ओरीकोमा कहते हैं. डेंट्रोकैलिमा जाइगेंटियस बांस की बात करें तो बांस की वैराइटी में ये सबसे मोटा और ऊंचा बांस है. इसकी लम्बाई 80 फीट तक होती है.
आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. रोहित मिश्रा ने किसान तक से बातचीत में बताया कि कुछ वक्त पहले की बात करें तो चाउमीन, आइसक्रीम, और जूस-शेक को मिलाने के लिए प्लास्टिक के चम्मच-कांटे और स्टिक का इस्तेमाल होता था. अच्छी बात ये है कि प्रदूषण फैलाने वाले प्लास्टिक के वो आइटम अब बाजार से काफी हद तक बाहर हो गए हैं. उनकी जगह बांस ने ले ली है. स्ट्री्ट फूड में अब बांस के बने चम्मच-कांटे और स्टिक इस्तेमाल हो रहे हैं. इतना ही नहीं जिस अगरबत्ती के कारोबार में लकड़ी की बनी स्टिक इस्तेमाल की जाती थी, वहां भी अब बांस की स्टिक अगरबत्ती में लगाई जा रही हैं. मोसो बांस अगरबत्ती के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इसकी एक बड़ी खासियत ये भी है कि यह जलने पर कम कार्बन मोनो ऑक्साइड छोड़ता है, मतलब प्रदूषण कम होता है.
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