Guidelines for Analog Paneer डेयरी प्रोडक्ट की आड़ में एनालॉग प्रोडक्ट बेचे जा रहे हैं. कीमत भी डेयरी प्रोडक्ट की वसूली जा रही है. खासतौर से पनीर बेचने के दौरान इसी तरह का फर्जीवाड़ा किया जा रहा है. डेयरी एक्सपर्ट की मानें तो डेयरी प्रोडक्ट के मुकाबले एनालॉग पनीर और दूसरे प्रोडक्ट को तैयार करने में लागत कम आती है. अगर पनीर की ही बात करें तो दूध से बने पनीर के मुकाबले एनालॉग पनीर प्रति किलो 100 से 150 रुपये की कम लागत पर तैयार हो जाता है. बाजार में हो रही इसी धोखाधड़ी को देखते हुए खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक (FSSAI) ने कड़ा कदम उठाया है. हाल ही में इस संबंध में FSSAI ने एक लैटर भी जारी किया है.
FSSAI ने नकेल कसते हुए कहा है कि हर एक एनलॉग प्रोडक्ट की पैकिंग पर बताना होगा कि एक एनलॉग प्रोडक्ट है. साथ ही जो प्रोडक्ट होगा जैसे पनीर है तो पैकिंग पर एक साइन बनाना होगा कि ये एनालॉग पनीर है. ऐसा न करने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी. डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि इस धोखाधड़ी के चलते डेयरी प्रोडक्ट बदनाम हो रहे हैं. दूध से बने प्रोडक्ट और एनालॉग प्रोडक्ट के स्वाद में खासा फर्क है.
जानकारों की मानें तो दूध से बने पनीर में सिर्फ और सिर्फ दूध का ही इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि ये बहुत ही सॉफ्ट होता है. मुंह में रखने के बाद इसे ज्यादा चबाने की जरूरत नहीं पड़ती है. जबकि एनालॉग पनीर को खाते वक्त ज्यादा चबाना पड़ता है. एनालॉग पनीर की डिश बनाते वक्त ग्रेवी की मदद से इसे मुलायम करने की कोशिश भी करते हैं. एनालॉग पनीर को तैयार करने के लिए वनस्पति तेल और दूध पाउडर इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही सोया, नारियल तेल और जड़ वाली सब्जियों सहित पौधे-आधारित सामग्री भी मिलाई जाती है. टैपिओका, खमीर और एसिड जैसे गाढ़े पदार्थ भी मिलाए जाते हैं.
दूध से बने पनीर की कीमत जहां 400 रुपये किलो होती है तो वहीं एनालॉग पनीर 250 रुपये किलो के भाव होता है. ऐसे में अगर किसी को एनालॉग पनीर बेचना है तो उसे पैकिंग पर बताना होगा कि ये एनालॉग पनीर है. साथ ही इंग्रीडेंटस और रेट भी लिखने होंगे. अगर कोई खुले में बेचता है तो उसे दूध से बने पनीर की कीमत से कम पर बेचना होगा. कुल मिलाकर अपने ग्राहक को जानकारी देनी होगी कि एनालॉग पनीर दूध से बने पनीर से सस्ता है. इसके अलावा, होटल, रेस्तरां और पका हुआ भोजन बेचने वाले कैटरर्स को भी नोटिस बोर्ड पर एनालॉग पनीर के बारे में जानकारी देनी होगी.
ये भी पढ़ें- Fish Farming: कोयले की बंद खदानों में इस तकनीक से मछली पालन कर कमा रहे लाखों रुपये महीना
ये भी पढ़ें- Cage Fisheries: 61 साल बाद 56 गांव अपनी जमीन पर कर रहे मछली पालन, जानें वजह
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today