Horse Disease Free RVC इंटरनेशनल लेवल पर भारत को एक बड़ी कामयाबी मिली है. अभी तक भारत घोड़ों से जुड़े इंटरनेशनल गेम्स पोलो आदि में हिस्सा नहीं ले पाता था. इसके पीछे कई बड़ी अड़चन थीं. लेकिन महीनों की मेहनत के बाद अब ये सभी अड़चन दूर हो गई हैं. भारत के घोड़े भी अब खेलों में हिस्सा लेने विदेश जा सकेंगे. विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) ने इसकी अनुमति दे दी है. इतना ही नहीं घोड़ों के संबंध में होने वाले एक्सपोर्ट मार्केट के रास्ते भी खुल जाएंगे. गौरतलब रहे भारत को ये कामयाबी रिमाउंट पशु चिकित्सा कोर (RVC) केंद्र और कॉलेज, मेरठ छावनी की बदौलत मिली है.
WOAH ने हाल ही में आरवीसी को घोड़ों की बीमारी के संबंध में मान्यता दी है. इस सेंटर को घोड़ों की बीमारियों के संबंध में डीजीज फ्री घोषित किया गया है. यानि की आरवीसी के घोड़ों में ऐसी कोई बीमारी नहीं है जो सभी घोड़ों को होती हैं. जिसमे प्रमुख रूप से ग्लैंडर्स, सुर्रा और इक्विन इन्फ्लूएंजा समेत आधा दर्जन बड़ी बीमारियां हैं.
एनिमल हसबेंडरी कमिश्नर डॉ. अभिजीत मित्रा ने किसान तक को बताया कि इस तरह के मामले में एक जोन बनाया जाता है. इसे अश्व रोग मुक्त कम्पार्टमेंट (EDFC) कहा जाता है. इस जोन में आने वाले घोड़ों को बीमारी मुक्त रखने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं. जैसे बायो सिक्योरिटी का पालन किया जाता है. वक्त-वक्त पर वैक्सीनेशन किया जाता है. इसके अलावा भी WOAH की गाइड लाइन के मुताबिक कई नियमों का पालन किया जाता है. ऐसा कोई एक-दो महीने में नहीं होता है. ये कई चरण की प्रक्रिेया है. समय-समय पर टीम निरीक्षण भी करती हैं. और फिर कई चरण की प्रक्रिया के बाद एक वक्त ऐसा आता है जब उस खास जोन के घोड़ों में कोई बीमारी नहीं पाई जाती है. बीमारियों का अटैक भी सामने नहीं आता है. उसके बाद जोन डीजीज फ्री होने की फाइल WOAH को भेजी जाती है. तब कहीं जाकर जोन को डीजीज फ्री घोषित किया जाता है. अब खेलों के साथ-साथ इस जोन का फायदा घोड़ों को एक्सपोर्ट करने में भी उठाया जा सकेगा.
डॉ. अभिजीत ने बताया कि इस जोन के बन जाने से अब घोड़ों से जुड़े कई क्षेत्रों में इसका फायदा मिलेगा. जैसे खेलों में खरीद-फरोख्त में, प्रजनन (ब्रीडिंग) में और बायो सिक्योरिटी के साथ-साथ डीजीज फ्री कम्पार्टमेंट को मजबूत करने में इसका बड़ा फायदा मिलेगा. अभी तक घोड़ों के मामले में इक्विन संक्रामक एनीमिया, इक्विन इन्फ्लूएंजा, इक्विन पिरोप्लाज्मोसिस, ग्लैंडर्स और सुर्रा बीमारी का सामना करना पड़ता था. हालांकि अफ्रीकी हॉर्स सिकनेस के मामले में भारत साल 2014 में भी बड़ी कामयाबी हासिल कर चुका है.
डॉ. अभिजीत की मानें तो इसी तरह के डीजीज फ्री कम्पार्टमेंट जाने बनाने के लिए पोल्ट्री से जुड़ी बीमारियों और दुधारू पशुओं में खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) बीमारी पर काम कर रहा है. उम्मीद है करीब नौ राज्यों को जल्द ही एफएमडी फ्री घोषित कर दिया जाएगा.
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