एक आइडिया आपका जीवन बदल सकता है. कुछ ऐसा ही हुआ है राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के गांव झाडोल के एमपी नारायणन के साथ. एमपी नारायणन मधुमक्खी पालन से शहद उत्पादन कर न केवल सालाना लाखों रुपये का कारोबार कर रहे हैं, बल्कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 100 से अधिक लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. अपने इस आइडिया के बारे में एमपी नारायणन बताते हैं कि मार्च 2020 में कोरोना के समय जब पूरे विश्व में लॉकडाउन लगा, उस समय भीलवाड़ा जिले के सुवाणा ब्लॉक के बिरधोल में उनके दो प्राइवेट स्कूल चल रहे थे. इन दोनों स्कूल में 500 से अधिक बच्चे पढ़ाई करते थे. अच्छी-खासी जिंदगी चल रही थी. लेकिन अचानक लॉकडाउन लगने से स्कूल बंद हो गए और उन पर कर्ज का भार बढ़ गया. ऐसी मुश्किल स्थिति में मधुमक्खीपालन बड़ा सहारा बना.
एमपी नारायणन को मधुमक्खीपालन का आइडिया कैसे आया, इसका किस्सा दिलचस्प है. एक दिन वे जंगल से गुजरते हुए अपने खेत की तरफ जा रहे थे. तभी मधुमक्खियों ने उन पर हमला कर दिया. इससे बचने के लिए उन्होंने मधुमक्खी के छत्ते को हटाने का सोचा. ऐसा किया भी और इसी क्रम में उन्हें बड़ी मात्रा में शहद मिला. शहद की मात्रा इतनी थी कि उसे बेचा भी जा सकता था. इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर बिक्री का ऑफर किया. लॉकडाउन के बीच उनके शहद की डिमांड आ गई. इसके बाद एमपी नारायणन ने शहद का बिजनेस करने का प्लान बना लिया और इस काम में लग गए.
लॉकडाउन में एमपी नारायणन को पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए उन्हें मधुमक्खीपालन और शहद का व्यवसाय अच्छा लगा. इसके लिए उन्हें मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग लेने की जरूरत पड़ी. उन्होंने भीलवाड़ा के कृषि विज्ञान केंद्र के निर्देशन में झालावाड़ जाकर मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली. इसके बाद शहद उत्पादन में लग गए. आज स्थिति ये है कि एमपी नारायणन अपना शहद पूरे देश के लगभग सभी महानगरों में सप्लाई कर रहे हैं. इतना ही नहीं, अब तक वे 100 किसानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं जिनमें से 50 तो मधुमक्खी पालन से शहद उत्पादन भी करने लगे हैं. ऐसे लोगों को रोजगार में मदद मिल रही है.
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एमपी नारायणन ने शुरुआती दौर में मधुमक्खी पालन की शुरुआत पांच बक्से में की थी और आज इनके पास 300 बॉक्स हैं. एक बॉक्स में पांच से सात हजार मधुमक्खियां होती हैं. एक रानी और बाकी अन्य नर होते हैं. एक बॉक्स में 7 दिन में शहद तैयार हो जाता है. मौसम और फसलों पर फूल की उपलब्धता के अनुसार वे सालाना 10 से 15000 किलो शहद का उत्पादन करते हैं जो 150 रुपये से लेकर 600 रुपये प्रति किलो तक बिकता है. इस तरह सारा खर्चा निकाल कर वे सालाना आठ से 10 लाख रुपये महीने शुद्ध कमाई कर लेते हैं. नारायणन कहते हैं कि सरसों के इस सीजन में मास्टर हनी की विदेशों में बहुत डिमांड होने से वे शहद निर्यात भी करते हैं. यह सफेद रंग का होता है और जम जाता है जिससे नासमझ लोग इसमें शक्कर की मिलावट मान लेते हैं, जबकि हकीकत में यह शुद्ध शहद होता है. इसमें मिलावट का कोई चांस नहीं होता.
एमपी नारायणन अब तक राजस्थान के ब्यावर, पाली, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ के साथ देश के मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा के 100 से अधिक किसानों को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दे चुके हैं. इनमें से 50 तो मधुमक्खी पालन के माध्यम से शहद का उत्पादन भी करने लगे हैं. नारायणन ने बताया कि भीलवाड़ा जिले में सिंचाई के प्रचुर साधन नहीं होने से खेतों में साल भर फसल नहीं रहती है. ऐसे में यह बी बॉक्स अन्य जिलों में ले जाने पड़ते हैं. इन्होंने चित्तौड़गढ़ जिले के राशमी मातृकुंडिया टोंक जिले के मालपुरा, भरतपुर, झालावाड़, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर सहित कई जिलों में बी बॉक्स शहद उत्पादन की है. इस बार तो इन्होंने जम्मू कश्मीर में भी बी बॉक्स लगाए हैं.
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नारायणन शहद उत्पादन और बिक्री के माध्यम से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 100 से अधिक लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं जो कभी खुद बेरोजगार हो गए थे. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के उप कुलपति डॉक्टर अजीत कुमार और निदेशक अनुसंधान डॉ शांति कुमार शर्मा के अनुसार, मधुमक्खी पर्यावरण के लिए बेहद उपयोगी है. मधुमक्खी पालन के बी बॉक्स जिन खेतों के पास रखे जाते हैं उनके पास की फसल के उत्पादन में 10 से 25 प्रतिशत तक उपज बढ़ जाती है. जितनी भी क्रॉस पोलिनेटेड फसलें होती हैं, उन पर इन मधुमक्खियों के कारण पराग कण आसानी से एक चले जाते हैं. इनमें आम, बैंगन, टमाटर, सरसों, कीकर, अजवाइन, तुलसी, जामुन, रिजका और धनिया आदि फसलों के पास बी बॉक्स रखना लाभप्रद होता है.(प्रमोद तिवारी की रिपोर्ट)
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