भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई द्वारा ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के तहत केंद्रीय पूल के 30 लाख टन गेहूं को बाजार में बेचने की घोषणा के बावजूद इसकी कीमतों में अब तक कोई खास नरमी नहीं दिखी है. कमोडिटी विशेषज्ञ इसकी दो बड़ी वजह बता रहे हैं. एक वजह तो यह है कि इस सेल का रिजर्व प्राइस भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से ऊपर है. दूसरा कारण मांग और आपूर्ति का गणित है. जिसके अनुसार भारत में इतने गेहूं की खपत तो महज दस दिन में ही हो जाती है. ऐसे में उनका कहना है कि सरकार की इस कोशिश से दाम पर खास फर्क नहीं पड़ेगा. इसका दाम एमएसपी से काफी ऊपर ही रहने का अनुमान है.
गेहूं के दाम का यह गणित अप्रैल में शुरू होने वाली सरकारी खरीद पर बहुत बुरा असर डालेगा. सरकार बफर स्टॉक यानी केंद्रीय पूल के लिए गेहूं की खरीद करती है. ताकि देश में जब भी कोई खाद्य संबंधी समस्या पैदा हो तो उस वक्त नागरिकों को असुविधा न हो. इसी से गरीब कल्याण की योजनाओं के तहत दिए जाने वाले गेहूं का वितरण भी सस्ते दर पर या मुफ्त में किया जाता है. यह खरीद एमएसपी पर होती है. लेकिन इस साल गेहूं का भाव एमएसपी से बहुत अधिक है.
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कमोडिटी एक्सपर्ट इंद्रजीत पॉल का कहना है कि सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 (अप्रैल-जून) के लिए गेहूं की एमएसपी 2125 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की हुई है. जबकि वो खुले बाजार में जो 3 मिलियन टन गेहूं बेचने जा रही है उसका रिजर्व प्राइस ही 2350 रुपये प्रति क्विंटल है. यानी एमएसपी से 225 रुपये प्रति क्विंटल अधिक. मालभाड़ा जोड़कर यह दाम 2600 से 2700 रुपये पड़ेगा.
भारत में हर साल करीब 1050 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खपत होती है. यानी हर रोज 2.87 लाख टन. ऐसे में 30 लाख टन का मतलब सिर्फ 10-11 दिन की खपत के बराबर गेहूं की सेल रियायती दर पर होगी. जबकि अभी नया गेहूं आने में दो महीने लगेंगे. इसलिए मैं समझता हूं कि इस कोशिश से दाम बहुत ज्यादा कम नहीं होगा. महंगाई रोकने के लिए सरकार की यह मंशा ठीक है. हालांकि, अगले सप्ताह तक जब गेहूं की नीलामी शुरू हो जाएगी तब दाम पर कुछ असर दिखने से इनकार नहीं किया जा सकता.
फिलहाल, खुदरा बाजार में गेहूं और आटे की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं. इसलिए सरकार उसको कंट्रोल करने के लिए सभी विकल्प तलाश रही है. बताया गया है कि ई-नीलामी के माध्यम से अधिकतम 3,000 टन प्रति खरीदार आटा मिलों, थोक खरीदारों आदि को गेहूं की पेशकश की जाएगी. ओएमएसएस के तहत, सरकार एफसीआई को थोक उपभोक्ताओं और व्यापारियों को समय-समय पर खुले बाजार में पूर्व निर्धारित कीमतों पर विशेष रूप से गेहूं और चावल बेचने की अनुमति देती है.
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रबी मार्केटिंग सीजन (RMS) 2021-22 में सरकार ने एमएसपी पर रिकॉर्ड 433.44 लाख टन गेहूं खरीदा था. गेहूं की इतनी सरकारी खरीद पहले कभी नहीं हुई थी. लेकिन, आरएमएस 2022-23 में 444 लाख टन गेहूं खरीद के लक्ष्य के विपरीत सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद सिर्फ 187.92 लाख टन की ही खरीद कर सकी. क्योंकि फसल वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) में गेहूं का उत्पादन हीट वेब चलने की वजह से लगभग 3 फीसदी घटकर 106.8 मीट्रिक टन रह गया.
कृषि मंत्रालय की एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया कि प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में मार्च-अप्रैल के दौरान भीषण लू के कारण गेहूं की उत्पादकता में प्रति हेक्टेयर 14 किलोग्राम की कमी आई. साल 2021-22 में गेहूं की उत्पादकता में प्रति हेक्टेयर 3521 किलोग्राम प्रति थी जो 2021-22 में घटकर प्रति हेक्टेयर 3507 किलोग्राम पर रह गई.
दूसरी ओर, रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से गेहूं को नया अंतरराष्ट्रीय बाजार मिला और हमने इसके फायदे का सौदा मानते हुए रिकॉर्ड एक्सपोर्ट किया. गेहूं के इंटनेशनल व्यापार में रूस और यूक्रेन की लगभग 25 फीसदी हिस्सेदारी है. इन दोनों वजहों से दाम बढ़ गया और ज्यादातर किसानों ने खुले मार्केट में एमएसपी से अधिक दाम होने की वजह से व्यापारियों को गेहूं बेच दिया.
भारत ने रिकॉर्ड 72,44,842 टन गेहूं का एक्सपोर्ट किया. जबकि, 2020-21 में सिर्फ 21,54,973 टन गेहूं ही एक्सपोर्ट किया गया था. भारत ने जो गेहूं एक्सपोर्ट किया था उसका दाम 27000 रुपये प्रति टन के आसपास था.
साल 2023 में सरकार के लिए स्थितियां और विकट हैं. गेहूं का दाम आसमान पर है. इसके अच्छे भाव के रहते एमएसपी पर कोई किसान सरकार को गेहूं बेचने क्यों जाएगा? सरकार खरीद नहीं करेगी तो गरीब कल्याण योजनाओं के लिए वितरण कहां से होगा. इसलिए सरकार की कोशिश यही है कि किसी भी तरह से इसका दाम अप्रैल तक एमएसपी के आसपास आ जाए.
कमोडिटी मार्केट के जानकारों का कहना है कि ओपन मार्केट सेल के बाद 31 मार्च 2023 को सरकारी स्टॉक में करीब 90 लाख टन गेहूं बचेगा. जबकि डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन की रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च 2022 को सरकार के पास 189.90 लाख टन गेहूं मौजूद था. यानी इस साल सरकार को सेंट्रल पूल के लिए गेहूं की जरूरत पिछले साल से कहीं ज्यादा है. वो सरकारी स्टॉक को लेकर पिछले वर्ष की तरह कंफर्टेबल नहीं है. यह बात अलग है कि 1 अप्रैल को गेहूं का बफर स्टॉक अपने उस वक्त के नॉर्म्स यानी 74.60 लाख टन से अधिक ही रहेगा. बहरहाल, सरकार के लिए इस साल पीडीएस में देने के लिए किसानों से गेहूं खरीदना आसान नहीं दिख रहा है.
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