Innovative Farmer: देसी जुगाड़ का कमाल, एक खर्चा, डबल कमाई... किसान ने बनाया तैरता हुआ बत्तख घर

Innovative Farmer: देसी जुगाड़ का कमाल, एक खर्चा, डबल कमाई... किसान ने बनाया तैरता हुआ बत्तख घर

केरल के किसान स्टेनली बेबी ने समस्या से भागने के बजाय उसका समाधान खोजा है. बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा को उन्होंने अपनी ताकत बना लिया है. बाढ़ के दौरान बत्तखों के घर अक्सर डूब जाते थे. इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने तैरता हुआ बत्तख घर का आविष्कार किया है.

floating duck housefloating duck house
क‍िसान तक
  • नई दिल्ली,
  • Nov 28, 2025,
  • Updated Nov 28, 2025, 4:07 PM IST

भारत में खेती अक्सर मौसम की मार झेलती है, कभी सूखा तो कभी बाढ़. लेकिन, एक समझदार किसान वही है जो आपदा में भी अवसर तलाश ले. केरल के अलाप्पुझा जिले के रहने वाले स्टेनली बेबी ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है. बाढ़ की समस्या से परेशान होकर उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि अपनी सूझबूझ से एक ऐसा 'तैरता हुआ बत्तख घर तैयार किया, जो न केवल बाढ़ में सुरक्षित रहता है बल्कि मछली पालन की लागत को भी कम करता है.

केरल का कुट्टनाड क्षेत्र अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां के किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है—जल स्तर का बढ़ना. स्टेनली बेबी का खेत भी एक ऐसे क्षेत्र में था जहां अक्सर बाढ़ का खतरा बना रहता था. वे बत्तख पालन और मछली पालन करना चाहते थे, लेकिन सामान्य बत्तख के घर बाढ़ आने पर डूब जाते थे, जिससे बत्तखों की जान को खतरा हो जाता था और आर्थिक नुकसान होता था. स्टेनली ने सोचा कि क्यों न बत्तखों के लिए एक ऐसा घर बनाया जाए जो पानी के ऊपर तैर सके. यहीं से 'तैरता हुआ बत्तख घर' के विचार का जन्म हुआ.

बाढ़ का डर खत्म! केरल के किसान का कमाल 

स्टेनली बेबी का यह नवाचार इंजीनियरिंग और देसी जुगाड़ का बेहतरीन उदाहरण है. उन्होंने मछली के तालाब के ठीक ऊपर बत्तखों के रहने का इंतजाम किया. इस शेल्टर को बनाने के लिए उन्होंने जीआई पाइप, पीवीसी पाइप और ट्रैफर्ड शीट का इस्तेमाल किया. इसका आकार 8 x 5 x 7 फीट रखा गया. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल था—यह तैरेगा कैसे?

इसके लिए उन्होंने बत्तख के चारों कोनों पर सील बंद प्लास्टिक के ड्रम लगाए. हवा से भरे ये खाली ड्रम को बत्तख घर पानी में डूबने नहीं देते. जैसे-जैसे तालाब या बाढ़ का पानी ऊपर चढ़ता है, यह बत्तख घर भी पानी के साथ ऊपर उठता रहता है. इसे एक लंबी रस्सी से बांध कर रखा जाता है. मन में सवाल आता है कि अगर घर पानी के बीच में तैर रहा है, तो बत्तखों को दाना कैसे देंगे या अंडे कैसे निकालेंगे? इसका समाधान भी बहुत सरल है. रस्सी की मदद से इस शेल्टर को खींचकर किनारे पर लाया जाता है, बत्तखों को दाना दिया जाता है, अंडे इकट्ठे किए जाते हैं और फिर बत्तख घर को वापस तालाब के बीच में छोड़ दिया जाता है.

देसी जुगाड़ का कमाल, एक खर्चा, डबल कमाई 

इस मॉडल की सबसे बड़ी खूबी 'एकीकृत कृषि प्रणाली' है. स्टेनली ने बत्तख के घर का फर्श बनाते समय बहुत ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया. फर्श बनाने के लिए 3/4 इंच के पीवीसी पाइपों का इस्तेमाल किया गया और उनके बीच में 1.5 सेंटीमीटर का गैप छोड़ दिया गया. यह गैप इसलिए छोड़ा गया ताकि बत्तखों की बीट (मल) आसानी से नीचे तालाब में गिर सकें. यह बत्तख की बीट तालाब में पल रही मछलियों के लिए उत्तम भोजन बन जाती है.

इससे दो फायदे होते हैं- बत्तख का घर अपने आप साफ रहता है. किसान को मछलियों के लिए बाजार से महंगा दाना खरीदने की जरूरत कम पड़ती है, क्योंकि बत्तखों की बीट मछलियों के लिए प्रोटीन का काम करती है. इसे ही असली 'जीरो वेस्ट' खेती कहते हैं.

बाढ़ को मात, मुनाफे के साथ जुड़े किसान 

स्टेनली बेबी का यह प्रयोग सिर्फ उनके तक ही सीमित नहीं रहा. इसकी चर्चा दूर-दूर तक फैल गई. कुट्टनाड तालुका और आसपास के क्षेत्रों के लगभग 50 से अधिक किसानों ने स्टेनली के खेत का दौरा करने के बाद इस तकनीक को अपने खेतों में लागू किया है. आज उनका खेत एक 'लर्निंग सेंटर' बन चुका है.

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि तटीय क्षेत्रों या बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए यह तकनीक वरदान साबित हो सकती है क्योंकि जमीनी स्तर पर इसकी सफलता ने यह साबित कर दिया है कि यह मॉडल व्यावहारिक है. इस तरह के नवाचार न केवल लागत कम करते हैं बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी हैं. स्टेनली बेबी जैसे किसान यह साबित करते हैं कि खेती में डिग्री से ज्यादा अनुभव और अवलोकन की जरूरत होती है.

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